आज का दिन

हरिवंशराय बच्चन की दांस्ता: प्रसिद्धि के शिखर तक

By अपनी पत्रिका

January 18, 2021

नेहा राठौर( 18 जनवरी ) 

मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन मेरा परिचय, स्वमं की लिखी मधुबाला कविता की इन कुछ पंक्तियों में खुद को समेटने वाले कवि हरिवंश राय बच्चन का आज ही के दिन यानी 18 जनवरी 2003 को निधन हुआ था। हरिवंश राय बच्चन हिंदी भाषा के कवि और लेखक थे। वह उत्तम छायावाद के कवियों में से से एक थे। वे कविता की दुनिया में बच्चन के नाम प्रसिद्ध है।

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कविता से फिल्मों के गाने लिखने तक का किया काम

हरिवंश राय बच्चन का जन्म इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ की पट्टी तहसील के अमोढ़ गांव में 27 नवंबर 1902 में हुआ था। जन्म के कुछ सालों बाद ही वह इलाहाबाद में आकर किराए पर रहने लगे। उन्होंने अपनी बी.ए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से  की थी और उसके बाद उन्होंने एम.ए एडमिशन लिया लेकिन एक साल की ही परीक्षा दी जिसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। फिर उन्होंने अपनी एम.ए 1938-1939 में पूरी की। उन्होंने दो शादी की थी।

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पहली पत्नी का नाम श्यामा और दूसरी पत्नी का नाम तेजी था। वे एक अंग्रेजी साहित्य के कवि डी डब्लू यीट्स की कविता पर सर्ट करने के लिए कैम्ब्रिज भी गए थे।उन्हें दुनिया में प्रसिद्ध के 1935 में प्रकाशित कविता मधुशाल से मिली। जिसकी पंक्तियां कुछ इस प्रकार है:

“ मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,      प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,    पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,        सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१। “

उसके बाद अगले ही साल उनकी अगली कविता मधुबाला प्रकाशित हुई। बच्चन ने 1941 से 1952 तक इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी प्रवक्ता के रूप में काम किया और इसी के साथ वह इलाहाबाद आकाशवाणी के साथ भी जुड़े रहे। बच्चन साहब ने फिल्मों के लिए भी लिखना शुरू किया। उन्होंने 1981 की सिलसिला फिल्म में रंग बरसे चुनर वाली गाना लिखा था, जिसे उनके बेटे अमिताभ बच्चन ने गाया था और इस पर अभिनय भी किया था।

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उनके प्रसिद्ध लेखों में उनकी आत्मकथा क्या भूलू क्या याद करु, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर और दसद्वार से सोपान तक है। लेकिन प्रसिद्धि उन्हें मधुशाला के छपने पर मिली। इसके अलावा 1966 में उन्हें राज्य सभा में सदस्य के रूप में चुना गया।  1979 में उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 2002 के सर्दियों में उनका स्वस्थ्य बिगड़ने लगा। 2003 के जनवरी से उनको सांस लेने में दिक्कत होने लगी। कठिनाइयां बढ़ने के कारण उनकी मृत्यु 18 जनवरी 2003 में सांस की बीमारी के वजह से मुंबई में हो गयी।

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