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गांधी का अधूरा असहयोग आंदोलन

By अपनी पत्रिका

February 01, 2021

नेहा राठौर

भारत की आज़ादी के लिए गांधी जी ने कई आंदोलन किए। जिसमें पहला जन आंदोलन असहयोग आंदोलन था। आज ही के दिन 1 फरवरी 1922 को गांधी जी ने असहयोग आंदोलन तेज करने की जानकारी भारत के वायसराय को दी थी। गांधी को जानने वाले या उनके बारे में पढ़ने वाले लोग यह जानते होंगे कि यह आंदोलन रोलेट एक्ट के खिलाफ किया गया था। ज्यादातर लोग इस एक्ट से वाकिफ़ होंगे, लेकिन इस एक एक्ट ने भारत में कितनी तबाही मचाई यह कम ही जानते होंगे।

रोलेट एक्ट

प्रथम विश्वयुद्ध 1914-1918 के दौरान रोलेट एक्ट पास किया गया था। इस एक्ट में अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था और बिना किसी जांच के किसी को भी जेल में डालने की अनुमति दे दी थी। सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली एक समिति के आधार पर इस एक्ट के कठोर उपायों को जारी रखा गया था। इसके जवाब में गांधी जी ने देशभर में रॉलेट एक्ट के खिलाफ अभियान चलाया था।

जालियांवाला हत्याकांड

इस एक्ट के आने के बाद उत्तरी और पश्चिमी भारत के कस्बों में चारों तरफ दुकानों और स्कूलों के बंद होने के कारण जीवन लगभग ठहर सा गया था। इस का असर सबसे ज्यादा पंजाब में दिखा, वहां से बहुत से लोग युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से लड़े थे और अपनी इस सेवा के बदले इनाम का इंतजार कर रहे थे, लेकिन इस एक्ट ने सब पलटकर रख दिया था। आस पास वाले कांग्रेसी लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया था। धीरे – धीरे यह स्थिति बिगड़ती चली गई और एक अंग्रेज ब्रिगेडियर जनरल डायर ने पंजाब में 13 अप्रैल 1919 में वैशाखी वाले दिन जलियावाले बाग में जहां लोग सभा करने आए थे। वहां इक्ट्ठ लोगों पर गोलियों की बारिश कर दी। जिसे आज लोग जालियांवाला बाग हत्याकांड से जानते है। इस हत्या कांड में लगभग 1200 लोग ने अपनी जान गवाई थी और 1600-1700 लोग घायल हुए थे।

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असहयोग आंदोलन की शुरुआत

इस हत्या कांड के बाद ही गांधी जी ने 4 सितंबर 1920 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई। इसमें उन लोगों से आग्रह किया गया, जो लोग भारत से उपनिवेशवाद को खत्म करना चाहते थे कि वे स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालय न जाएं और न ही कर चुकाएं। सीधा सीधा सभी अंग्रेजों से संबंधों को तोड़ने को कहा गया। गांधी जी का मानना था कि अगर इस आंदोलन का ठीक ढ़ंग से पालन किया जाएगा तो एक साल में भारत स्वराज हांसिल कर लेगा। उन्हें यह भी लगता था कि अगर इस आंदोलन के साथ खिलाफ़त आंदोलन को भी जोड़ दिया जाए तो भारत के दो बड़े समुदाय हिंदू और मुसलमान मिलकर औपनिवेशिक शासन का अंत कर देंगे। जब यह आंदोलन अपनाया गया तो इसमें असहयोग और व्यास काल की नीति को अपनाया गया। इस आंदोलन को शहरी क्षेत्र के मध्यम वर्ग और ग्रामिण क्षेत्र में किसानों और आदिवासियों का समर्थन मिला। इस में श्रमिक वर्ग ने भी बढ़ चड़कर भाग लिया। इसलिए इसे जन आंदोलन भी कहा जाता है।

चौरी चौरा कांड

लेकिन जल्द ही इस आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया, औऱ उन्होंने यह आंदोलन अधूरा ही छोड़ दिया, जिससे कई नेता उनसे रूष्ठ हो गए। इस आंदोलन को अधूरा छोड़ने का कारण यह था कि फरवरी 1922 में किसानों के एक समूह ने संयुक्त प्रांत के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में एक पुलिस थाने में आग लगा दी थी। इस अग्निकांड में कई पुलिस वालों की जान चली गई और गांधी जी तो हमेशा से अहिंसा के खिलाफ थे। जैसे ही उन्हें इस बारे में पता चला तो उन्होंने इस आंदोलन को वापस ले लिया। इसके बाद गांधी जी को मार्च 1922 में हिंसा भड़काने और राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

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