नेहा राठौर
कृषि क़ानूनों के खिलाफ 18 फरवरी को किसानों ने रेल रोको आंदोलन शुरू किया। यह आंदोलन दोपहर के 12 बजे से शाम के 4 बजे तक चला। इस रेल रोको आंदोलन का लक्ष्य सरकार तक क़ानूनों के प्रति विरोध की आवाज़ को पहुंचाना था। इसमें महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इस आंदोलन में कुरक्षेत्र में गीता जयंती एक्सप्रेस ट्रेन को भी रोका गया। इस प्रदर्शन का हरियाणा-पंजाब में ज्यादा असर दिखा गया।
दोनों राज्यों के कई बड़े शहरों में प्रदर्शनकारी ट्रैक पर बैठे हैं। इधर, राजस्थान में जयपुर और आस-पास के इलाकों में भी ट्रेनें रोकी गई। जयपुर में जगतपुरा रेलवे स्टेशन पर प्रदर्शन का ज्यादा असर देखा गया। इसके अलावा अलवर, बूंदी, कोटा, झुंझुनू और हनुमानगढ़ में भी प्रदर्शनकारियों ने ट्रेनें रोकी गई। आंदोलन को देखते हुए रेलवे ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही रेलवे सुरक्षाबलों की 20 अतिरिक्त कंपनियां को भी तैनात किया था।
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किसान आंदोलन में यह पहली बार नहीं है, जब कोई रेल रोको अभियान चलाया जा रहा है, इससे पहले भी इस आंदोलन में कई ऐसी रैलियां और अभियान किए जा चुके है। जिससे कई बार लोगों को और देश को नुकसान का सामना करना पड़ा है। किसानों का यह विरोध आंदोलन धीरे-धीरे हिंसक प्रदर्शन बनता जा रहा है।
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ट्रेैक्टर रैली: रेल रोको आंदोलन से पहले किसानों ने 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर ट्रैक्टर रैली निकाली थी, जिसमें कई पुलिस वाले घायल हुए थे और लाल किले की प्राचीर को नुकसान पहुंचा था। इस हिंसा में आंदोलनकारियों ने लाल किले पर किसानों और निशान साहिब का झंड़ा फहराया था। किसानों की ट्रेक्टर रैली ने लाल किले के अलावा दिल्ली के मुकबरा चौक, ITO, आदि पर हुड़दंग मचाया।
अनशन: किसान इससे पहले अनशन पर भी बैठ चुके है. जिसमें अन्ना हजारे भी शामिल होने वाले थे, लेकिन उन्हें आने से रोक दिया गया। इस अनशन में हर बॉर्डर पर 15 किसान रोज अनशन करके प्रदर्शन किया था।
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भारत बंद: इस आंदोलन के चलते किसानों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का ऐलान किया था, जिस कारण लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। भारत बंद का असर देश के कई राज्यों में देखने को मिला।
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चक्का जाम: किसानों ने 6 फरवरी को देशव्यापी चक्का जाम किया गया था, इसमें किसानों ने नेशनल और स्टेट हाइवेज पर और प्रमुख सड़कों पर गाड़ियों की आवाजाही को रोक दिया गया था। इस जाम का ऐलान संयुक्त किसान मोर्चा ने किया था। 26 जनवरी की हिंसा के वजह से इस जाम में दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड़ को अलग रखा गया था।
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बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि क़ानूनों के विरोध में पिछले 84 दिनों से किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा जमा रखा है। उनकी मांग है कि सरकार कृषि क़ानूनों को वापस ले और एमएसपी पर कानून बनाए ताकि कोई भी प्राइवेट कंपनी उन्हें ठग न पाए। आंदोलन की समाप्ती को लेकर किसानों ने सरकार को पहले ही साफ कर दिया है कि जब तक कानून वापसी नहीं तब तक घर वापसी नहीं।
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