Friday, May 3, 2024
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किसानों ने लाल किले में मचाया हुड़दंग, किले में फसे रहे स्कूल के बच्चे

नेहा राठौर

तीनों कृषि कानून के विरोद्ध में पिछले दो महिने से दिल्ली की सीमा पर डटे हुए किसानों का प्रदर्शन गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली की सड़कों तक आ गया। यह प्रदर्शन देखते ही देखते हिंसक रूप में बदल गया। मंगलवार को गणतंत्र दिवस के दिन सुबह से लेकर देर शाम तक पूरी दिल्ली में किसानों के हिंसक प्रदर्शनों के चलते अराजकता की स्थिति बनी रही। किसानों ने ITO, लाल किला, नागलोई और मुकरबा चौक पर हिंसक प्रदर्शन किया, इस में बहुत लोग घायल हुए, जिसमें 83 पुलिस वाले थे और इस दौरान 2 किसानों की मौत भी हो गई।

लाल किले से किसानों ने उतारा तिरंगा

पुलिस ने किसानों को ITO और लाल किले पर राकने की कोशिश की लेकिन किसान पुलिस से भीड़ते हुए लाल किले के अंदर घुस गए, वहां पहुंचकर उन्होंने तिरंगे को उतार कर फेंक दिया, इसकी जगह उन्होंने वहां किसानों का झंड़ा और सिखों का पुज्य निशान साहिब का झंड़ा लगाया। इसके बाद बहुत मुश्किल से पुलिस ने किसानों को वहां से बाहर निकाला।

लाल किले में फसे बच्चे

इस उपद्रव में लाल किले में स्कुल के बच्चे और वो लोग जिन्होंने समारोह में भाग लिया था, उन्हें वहां से निकलने तक का मौका नहीं मिला। हिंसा होने कारण वह सब लाल किले में 7 घंटे तक फसे रहे। शाम को किसानों के जाने के बाद उन बच्चों और बाकी लोगों को वहां से निकाला गया और उन्हें खाना खिलाया गया।

बता दें कि तीनों कानूनों की वापसी को लेकर किसानों और सरकार के बीच कई बार बातचीत हुई, लेकिन कोई समाधान नहीं निकल पाया। प्रदर्शन करने के लिए किसानों ने गणतंत्र दिवस पर टैक्टर रैली निकालने की मांग की थी, उन्हें इसकी इज़ाजत भी दी गई थी, लेकिन 35 नियमों के साथ, पर किसानों ने इसके विपरीत अपनी रैली को अलग ही रंग में बदल दिया।

सिखों ने पुलिस पर चलाईं तलवारें

इस पूरी हिंसा में सिख समुदाय ने बढ़चढ़ कर प्रदर्शन किया। सिख किसानों ने हाथों में तलवारें लेकर पुलिस वालों पर हमला करने की कोशिश की। किसानों ने दिल्ली पुलिस द्वारा तय किये गए रास्ते को छोड़कर वर्जित रास्ते पर जाकर उपद्रव मचाया। रैली होने से पहले, गाजीपूर बॉर्डर पर यह तय किया गया था कि टैक्टर रैली आनंद विहार से पुल के नीचे वाले रास्ते से जाएगी और यंंह रैली लाल किले पर गणतंत्र दिवस समारोह खत्म होने के बाद निकाली जाएगी, इसके विपरित किसानों ने रैली को समय से पहले निकाला और अंनद विहार के पुल के ऊपर से, जहां पुलिस ने बेरीकेडस लगा रखे थे, उन बेरीकेडस को टैक्टर से हटाते हुए पुल पार कर आगे निकल गए।

पुलिस ने किसानों को रूकने के लिए आंसू गैस के गोले और लाठियों का इस्तेमाल किया, जिसके बाद गुस्से में किसानों ने DTC की 8 बसों को नुकसान पहुंचाया और पुलिस की गाड़ियों पर पत्थरबाजी की। किसानों ने पुलिस को वहां से भगाने के लिए तलवारों और पत्थरों का उपयोग किया। अपनी जान बचाने के लिए पुलिस वालों को वहां से भागना पड़ा।

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हिंसा का जिम्मेदार कौन ?

हिंसा को देखते हुए यहीं कहा जा रहा है कि इस उपद्रव की तैयारी पहले से ही की जा चुकी थी, जिसे गणतंत्र दिवस पर अंजाम दिया गया। किसानों के नेताओं ने इस हिंसा से अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि उनका इससे कोई लेना देना नहीं। बता दें कि इस हिंसा में गैंगस्टर लक्खा सिंह सिधाना का हाथ भी बताया जा रहा है।

इसके अलावा रैली से पहले किसान आंदोलन के बीच बार-बार एक नाम सुनाई दे रहा था जो कि सिख ऑफ जस्टिस ग्रुप का था। यह संगठन भारत में प्रतिबंधित है, बीते दिनों इस ग्रुप  ने एक बयान में कहा था कि भारत सरकार को किसानों को ट्रैक्टर रैली निकालने दी जाने चाहिए, वरना गणतंत्र दिवस के दिन अगर दिल्ली में हिंसा हुई तो उसके लिए सरकार ही जिम्मेदार होगी। इस बयान पर हिंसा में इस ग्रुप का नाम भी ऊपर आ रहा है।

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