नेहा राठौर
पिछले दो 82 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर हजारों किसान कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे है, जहां देश के कई लोग इस आंदोलन का विरोध कर रहे है, वहीं यह आंदोलन कई बेरोजगारों के लिए मददगार साबित हुआ है। किसानों ने कानून वापसी तक सीमा पर ही आंदोलन करने का निर्णय लिया है। ऐसे में आंदोलनकारी किसानों की रोजमर्जा की जरूरतों के लिए वहां कई दुकानों खोली गई है, जिसमें बहुत से लोगों को रोजगार भी मिला है।
राजधानी की सीमा पर लंगर सेवा
किसान आंदोलन के रूप में लोगों को रोजगार कामाने का अवसर मिला है। आंदोलन में खाना बनाना, बर्तन धोने और अन्य कामों के लिए 500 रुपये दिहाड़ी दी जाती है। इन बरोजगारों में वे लोग भी शामिल है, जिन्होंने कोरोना के कारण अपनी नौकरी गवा दी थी। सीमा पर काम करने वालों को दिहाड़ी दी जाती है। इस आंदोलन को दो महीने से ज्यादा हो गए है, ऐसे में हर कोई अपने हिसाब से आंदोलन का हिस्सा बनता जा रहा है। कोई लंगर सेवा देकर हिस्सा बन है, तो कोई यहां काम करके। दरअसल जब से आंदोलन शुरू हुआ है तब से यहा रोज लंगर होता है। यह लंगर सेवा पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के किसानों ने आंदोलन में शामिल लोगों के लिए शुरू की थी। इस सेवा के लिए सभी किसान अपने साथ महीनों के हिसाब से राशन लेकर आए हैं। इस आंदोलन में कुछ लोगों सिर्फ इस लिए काम कर रहे हैं ताकि अपने परिवार का पेट भर सकें।
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बावर्चियों और मजदूरों को मिला काम
किसानों के लिए कई जगह जगह लंगर सेवा चलाई जा रही है। लाखों लोगों का खाना किसान खुद ही आंदोलन स्थल पर बना रहे है और कई जगह तो बावर्चियों और मजदूरों की भी मदद ली जा रहीं है। गाज़ीपुर बॉर्डर पर तो कुछ जगह किसान खुद खाना बना रहे है और कई लंगरों पर बाहर से बावर्ची खाना बना रहे है, इसके लिए उन्हें रोजाना के हिसाब से पैसे दे दिए जाते हैं। यहां काम करने वालों की दिहाड़ी 300 से लेकर 500 तक हो जाती है। आंदोलन स्थल पर किसानों के लिए नाई की दुकानें भी खोली गई, इन्में काम करने वाले भी दिन भर में अच्छी आमदनी कमा लेते है।
दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन
केंद्र सरकार द्वारा तीनों नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान पिछले साल 26 नवंबर से राजधानी की सीमाओं पर अड़े हुए है। किसान संगठनों और सरकार के बीच इस बारे में 12 की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं निकला है। सरकार किसानों से कानूनों में संशोधन की बात कर चुकी है, लेकिन किसानों ने मानने को तैयार नहीं है। किसानों का कहना है कि जब तक कानून वापसी नहीं होंगे तब तक घर वापसी भी नहीं होगी।
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