नांगलोई की जनता पूछे : पेंशन कांड की जाँच ही चलती रहेगी या करवाई भी होगी ?

नॉर्थ दिल्ली के वार्ड नंबर -31 में फ़र्ज़ी पेंशन पर बड़ा खुलासा होने के बाद कोई कार्रवाई तो दूर अभी तक जाँच के नतीजों का भी कुछ अता पता नहीं है। जिस आरटीआई कार्यकर्ता ने बड़े स्तर पर चल रहे फर्ज़ीवाड़े का खुलासा किया वो अधिकारियों के दफ्तर के चक्कर लगा लगा कर थक गये लेकिन निगम के अधिकारी हैं की जाँच का हवाला देते हुए टाइमपास ही करते दिखते हैं।  गौरतलब है की जून महीने में आरटीआई के माध्यम से ये हैरान कर देने वाला खुलासा हुआ था की वार्ड नंबर – 31 में नगर निगम की ओर से कुल 722 पेंशन धारकों की सूची में से 500 से भी ज्यादा पेंशन फ़र्ज़ी हैं। इस बाबत जब पेंशन फॉर्म पर दिये गए नाम पते पर तथ्यों की जाँच की गई तो चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई। कई वृद्धावस्था पेंशन छोटे बच्चों और युवाओं के नाम पर बनाये गए थे वो भी बाकायदा नकली पहचान पत्र बना कर। शारीरिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ  व्यक्ति का दिव्यांग पेंशन , तो अपने पति के साथ हँसी ख़ुशी रह रही महिला का वृद्धावस्था पेंशन। ये सब कुछ उत्तरी दिल्ली के वार्ड नंबर -31 में चल रहा था जिसकी निगम पार्षद भाजपा नेता चतर सिंह रचौया की पत्नी भूमि चतर सिंह रचौया हैं।  हरेक फॉर्म अधिकारियों के पास जाने से पहले निगम पार्षद के टेबल से भी गुजरती है , और इतने बड़े स्तर पर अगर फर्ज़ीवाड़ा चल रहा था तो लोगों का निगम पार्षद की भूमिका पर सवाल उठाना भी लाज़मी है।  सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है की वो सैंकड़ों लोग जिनके नाम पर पेंशन बने हुए थे उनतक कभी सरकारी मदद राशि पहुँची ही नहीं। दरअसल पेंशन की रकम किसी पेंशन माफ़िया तक पहुँच रही थी जिसने बड़े शातिर तरीके से पाँच सौ से भी ज्यादा फ़र्ज़ी पेंशन बनवा लिए थे। 
‘पेंशन माफिया ‘ इसलिये क्योंकि बतौर आरटीआई कार्यकर्ता राजेन्द्र खर्रा , जब पेंशन का आवेदन फॉर्म निकाल कर देखा तो सैंकड़ों पेंशन फॉर्म पर एक जैसी की हैंडराइटिंग थी।  इसका मतलब ये सैंकड़ों फॉर्म किसी एक या दो व्यक्ति के द्वारा ही भरे गए होंगे और उसी ने एक आठ साल के बच्चे के नाम पर किसी मृत बुजुर्ग व्यक्ति की फोटो चिपकाने जैसे फर्ज़ी काम भी किये होंगे।  
लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है की ये पेंशन माफिया आखिर है कौन और डेढ़ महीने में जाँच की टीम इस तक पहुँच क्यों नहीं सकी ? 
राजेन्द्र खर्रा ने अपनी पत्रिका से बात चीत में बताया की वो अधिकारियों के दरवाजे लगातार खटखटाते रहे हैं लेकिन अभी तक कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला।  
अब इसे विडम्बना कहें या दुर्भाग्य की एक बुजुर्ग आरटीआई कार्यकर्ता इसी नगर निगम से केवल अपनी बुद्धि और सामजिक जागरूकता के दम पर ऐसी सूचनाएँ निकाल लेता है जो की उत्तरी दिल्ली नगर निगम के वार्ड नम्बर -31 में व्याप्त भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े को पूर्णतः प्रमाणित करती हैं लेकिन योग्य जाँच अधिकारियों की टीम इतने सारे सबूत मिलने के बाद भी डेढ़ महीने से जाँच में ही लगी है। 
अब तो नांगलोई इलाके में रहने वाले लोग भी कहने लगे हैं की निगम के चुनाव तक भ्रष्टाचार के इस महाकांड पर कोई नतीजा नहीं निकलेगा। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी और उसके स्थानीय विधायक भी पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं और इस बारे में मीडिया से भी बात करने से बचते रहे हैं। 
चंद दिनों की सजगता में ही गड़बड़झाला जगजाहिर भी हो गया और प्रमाणित भी लेकिन दो महीनों का समय बीत जाने के बाद भी जाँच किसी नतीजे पर न पहुँच सकी।
एक ओर जहाँ नगर निगम फण्ड के अभाव की वजह से विकास कार्य न होने का हवाला देती है वहीँ दूसरी ओर फर्ज़ी पेंशन बना कर पेंशन माफिया जनता के लाखों रुपये डकार जाता है। क्षेत्र के लोगों का भी कहना है की फण्ड के आभाव से ग्रस्त निगम को ऐसी गंभीर मुद्दे पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिये क्योंकि इसमें खुद नेतागण भी शामिल हो सकते हैं।

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