Friday, October 11, 2024
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बहादुर शाह प्रथम: भारत का छठा मुगल शासक, जिसने कभी दिल्ली का मुंह नहीं देखा

नेहा राठौर

साल के  सबसे छोटे महीने की आखिरी तारीख यानी 28 फरवरी को उस मुगल शासक का निधन हुआ था, जिसने भारत पर राज तो किया पर अपने शासनकाल में कभी राजधानी दिल्ली में प्रवेश नहीं किया। लोग अक्सर बहादुर शाह प्रथम और बहादुर शाह जफ़र में फर्क नहीं कर पाते हैं। वे दोनों को एक ही व्यक्ति मानते है, लेकिन ऐसा नहीं है। बहादुर शाह प्रथम भारत का छठा मुगल शासक था और बहादुर शाह जफ़र भारत का आखिरी मुगल शासक था।

बहादुर शाह का जन्म 14 अक्टूबर, 1643 को बुरहानपुर में हुआ था। वह मुगल सम्राट औरंगज़ेब के तीन बेटों में से एक थे। बहादुर शाह का असली नाम मुहम्मद मुअज़्ज़्म था। उसके भाइयों के नाम मुहम्मद काम बख्श और मुहम्मद आज़म शाह थे। औरंगज़ेब की मृत्यु के पहले मुअज़्ज़्म उसी के साथ युद्ध क्षेत्र में था। बहादुर शाह अपने पिता की मृत्यु के पहले तक काबुल का और उसके दोनों भाई दक्कन और गुजरात के गवर्नर थे।

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औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारियों में युद्ध छिड़ गया। तीनों भाइयों को गद्दी के लालच ने घेर लिया था। गद्दी की जंग में तीनों ने जनता को लुभाना शुरू कर दिया था। काम बख्श ने अपने नाम के सिक्कों का खनन शुरू किया और आज़म ने आगरा में मार्च करने और खुद को उत्तराधिकारी घोषित करने का फैसला किया।

बहादुर शाह की उपाधि

उधर, औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुअज़्ज़्म सिधे दिल्ली जाने की बजाय अपने भाई को मारने जाजू पहुंचा। जाजू की लड़ाई में उसने मुहम्मद आज़म और उसके बेटे अली तबर को मार डाला। 1707 में 63 साल की उम्र में मुअज़्ज़्म का राजतिलक किया गया और उन्हें बहादुर शाह की उपाधि दी गई। उसके बाद वह काम बख्श को मारने हैदराबाद गया और उसे मारने के बाद वह सीधे पंजाब में सिखों के विद्रोह को रोकने चला गया और वहीं 28 फरवरी 1712 को उसकी मौत हो गई। उसके बाद उसे मेहरौली में मोती दरगाह के आंगन में दफ़नाया गया।

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बाहुदर शाह को शाह आलम प्रथम नाम से भी जाना जाता है। बहादुर शाह बढ़ती उम्र के कारण अपने आस-पास की खबरों से बेख़बर रहता था, इसलिए उसे शाह बेख़बर भी कहा जाता था। उसने 1707 से 1712 तक राज किया और उस दौरान उसने एक बार भी राजधानी में कदम नहीं रखा। औरंगज़ेब डरता था कि कहीं जैसे उसने अपने पिता शाहजांह के साथ किया उसके बेटे उसके साथ ऐसा न कर दे, इसीलिए उसने कभी अपने बच्चों को राजकाज के काम में शामिल नहीं किया और बुढ़ापे में भी गद्दी झोड़ने को तैयार नहीं था। इसी कारण उसके खुद के बेटे उसकी जान के दुश्मन बन गए। 

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