Monday, April 29, 2024
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कर्नाटक चुनाव 2023- फरि चला पीएम मोदी का जादू, हारती बाजी को बराबरी पर ला दिया मोदी के जनसभाओं और रैलीयों ने

कर्नाटक चुनाव पूरी तरह से कांग्रेस के हाथ में था पर अपने बयानों से सेल्फ गोल करके कांग्रेस ने बीजेपी के फिर से जिंदा होने का मौका दे दिया है। लगभग हार चुकी बाजी को अब बीजेपी बराबरी पर ला चुकी है। बीजेपी से अपने सबसे बड़ा असेत्र यानी पीएम नरेंद्र मोदी का तो भरपूर इस्तेमाल किया ही है साथ ही कांग्रेस के हिंदू विरोधी बयानों को भी जमकर भुनाया है। नतीजतन जो ओपिनयन पोल कल तक कांग्रेस की एकतरफा जीत का दावा कर रहे थे आज वही नतीजे 50-50 के दिखा रहे हैं।
कर्नाटक के चुनाव शोर में भाजपा नरेंद्र मोदी के करिश्मे पर आश्रित है। बतौर प्रमाण पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा का यह वाक्य सटीक है- कर्नाटक को मोदी जी के आशीर्वाद से वंचित नहीं होना चाहिए। निश्चित ही हिमाचल और उससे पहले के तमाम चुनावों में भी नरेंद्र मोदी आश्रित भाजपा थी। कर्नाटक में भी है। इसलिए यह भाजपा की चली आ रही पुरानी राजनीति का हिस्सा है। वहीं कांग्रेस, आप, राहुल-केजरीवाल भी जवाब में नरेंद्र मोदी की अदानी से दोस्ती, डिग्री और भ्रष्टाचार का शोर करते हुए दिखे।
जनवरी सन् २०२३ के बाद की राजनीति का फर्क। क्या पहले कभी कल्पना संभव थी कि लोकसभा में नरेंद्र मोदी और अदानी को लेकर नारे लगेंगे। संसद नहीं चलेगी। लोकसभा में नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए राहुल गांधी वह भाषण देंगे, जिसका जवाब देने के बजाय सरकार को रिकार्ड से भाषण उड़वाना होगा। राहुल गांधी की सांसदी खत्म कर दी जाएगी। ऐसे ही किसने कल्पना की थी कि अरविंद केजरीवाल विधानसभा में नरेंद्र मोदी और अदानी के रिश्तों पर वह बोलें, जिसे पूरे देश ने चटखारे लेते हुए सुना मगर मोदी-भाजपा के मुंह से रत्ती भर प्रतिक्रिया नहीं। इतना ही नहीं आजाद भारत के इतिहास में पहली बार भारत का प्रधानमंत्री अनपढ़ करार दिया जाता हुआ सुना गया।
उस नाते फरवरी की हिंडनबर्ग की रिपोर्ट राष्ट्रीय राजनीति का वह मोड़ है, जिससे गैर-भक्त हिंदू आबादी में नरेंद्र मोदी की वह इमेज बनी है, जिसके कारण नरेंद्र मोदी का नाम ही अब विपक्ष का हथियार है। यह पहली बार है। कर्नाटक में कांग्रेस, पूरे देश और खासकर सोशल मीडिया में अरविंद केजरीवाल और आप पार्टी ने नरेंद्र मोदी को भ्रष्ट और अनपढ़ बतलाने का जो शोर बनाया है वैसा आजाद भारत की ७५ साला राजनीति में पहले कभी नहीं हुआ। ‘गली-गली में शोर है इंदिरा गांधी चोर है’ का समय हो या इंदिरा गांधी का इमरजेंसी और राजीव गांधी की बोफोर्स बदनामी का वक्त, सबकी तुलना में सन् २०२३ में नरेंद्र मोदी के खिलाफ का जैसा नैरेटिव देश-विदेश में बना है, वह इतना अकल्पनीय है कि खुद मोदी को समझ नहीं आ रहा होगा कि सबकुछ कंट्रोल में होते हुए भी कैसे वे नफरत-विरोध का चेहरा हो गए।
कर्नाटक में भाजपा उन्हें ‘वरदान’ याकि भगवान करार देते हुए है वहीं विपक्ष की सभा में सुनाई दिया कि ‘नरेंद्र मोदी जहरीले सांप जैसे हैं आप सोचेंगे कि जहर है या नहीं? लेकिन आपने चख लिया तो फिर मर जाएंगे’। यों अपने इस कहे पर कांग्रेस अध्यक्ष खडग़े ने खेद जताया है। बावजूद इसके यह तो सोचने वाली बात है कि नरेंद्र मोदी के राज में भारत की राजनीति सन् २०२३ में किस एक्स्ट्रिम, भगवान या सांप के जुमले में पहुंची है।
तभी कर्नाटक और इसके बाद के विधानसभा चुनावों, सन् २०२४ के आम चुनाव सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी की नायक या खलनायक इमेज पर होगा। कर्नाटक में भाजपा यदि हारी तो वह मोदी के वहां जादू खत्म होने का प्रमाण होगा। मतलब भगवान के वरदान को कर्नाटक के लोगों ने ठुकराया।
जेपी नड्डा, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, शिवराजसिंह चौहान सब यदि कर्नाटक में नरेंद्र मोदी का नाम ले कर उनका वरदान लेने के लिए कर्नाटक की जनता को कह रहे हैं तो उनके कंट्रास्ट में भाजपा के तमाम नेता राहुल गांधी के नाम का रट्टा भी लगाए हुए हैं। यह भी बदली राजनीति की एक बानगी है। नौबत यह हो गई कि यदि राहुल गांधी नहीं हों तो भाजपा नेताओं के पास बोलने के लिए कुछ नहीं होगा। मोदी भी परोक्ष तौर पर राहुल गांधी से लोगों को सावधान करते हुए हैं तो अमित शाह कहते हैं-राहुल बाबा सुन लें , कांग्रेस जीती तो वंशवाद की राजनीति चरम पर होगी। कर्नाटक दंगों से पीड़ित होगा।राज्य का विकास ‘रिवर्स गियर’ में होगा। ऐसे ही शिवराज सिंह चौहान जनसभा में यह बताते हुए कि राहुल गांधी पचास साल के हो गए हैं मगर बुद्धि उनकी पांच साल की है।
मतलब राहुल गांधी को बेघर बना कर भी मोदी-शाह-भाजपा सबके लिए राहुल गांधी या तो दंगाई राक्षस हैं या बाबा और पप्पू और विकास को ठप्प कर देने वाले। भाजपा के पास अब मोदी सरकार, प्रदेश की भाजपा सरकार की उपलब्धि बताने के नाम पर सिर्फ एक जुमला है और वह है डबल इंजन। कर्नाटक में भाजपा अपनी प्रदेश सरकार के काम को या मुख्यमंत्री के चेहरा बेचती हुई नहीं है, बल्कि अमित शाह को उम्मीद है कि मुस्लिम आरक्षण को खत्म कर लिंगायत, एससी व एसटी के आरक्षण को हमने बढ़ाया है तो हमें वोट मिलेगा। और यदि कांग्रेस रेवड़ी घोषणाएं कर रही है तो जिस पार्टी की वारंटी खत्म हो चुकी है तो उसकी गारंटी (चुनावी वादों) का क्या मतलब है।
जाहिर है कांग्रेस की घोषणाओं के आगे भाजपा लाचार है। इस मामले में कांग्रेस सचमुच आप पार्टी से आगे बढ़ गई है। सभी घरों को २०० यूनिट फ्री बिजली, हर परिवार की महिला मुखिया को २,००० रुपए महीने की सहायता, ग्रेजुएट युवाओं के लिए ३,००० रुपए और डिप्लोमा धारकों (१८ से २५ वर्ष आयु वर्ग) को दो साल के लिए १,५०० रुपये जैसे तमाम वादे कांग्रेस ने किए है। इन्हीं को लेकर गुरूवार को नरेंद्र मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मुफ्तखोरी के कारण राज्य कर्ज में डूबे हुए हैं।
कभी मोदी ऐसी घोषणाओं से अच्छे दिन आने का लोगों को ख्वाब दिखाते थे और अब इस सबसे वे मुफ्तखोरी की बात कह रहे हैं। समझ सकते हैं २०२३ में रेवड़ी राजनीति भी कितनी बदलती हुई है और इस पर भाजपा कैसे रक्षात्मक है!
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