Saturday, April 27, 2024
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श्रीलंकाई तमिलों के प्रति समर्पितः एम करुणानिधि

चेन्नई श्रीलंकाई तमिलों के स्वदेश लौटने के मुद्दे पर एम करूणानिधि और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम के बीच वाकयुद्ध आज भी जारी रहा और द्रमुख प्रमुख ने श्रीलंकाई तमिलों के कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। करूणानिधि ने कहा कि उन्होंने 1956 में द्रमुक महापरिषद की बैठक में श्रीलंकाई तमिलों के पक्ष में एक प्रस्ताव रखा था, साथ ही पनीरसेल्वम से सवाल किया कि क्या उन्हें पता है कि उन्होंने (करूणानिधि) इस मुद्दे पर कितने विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया है। द्रमुख प्रमुख ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में पूर्व में अन्नाद्रमुख सुप्रीमो जयललिता की ओर से राजीव गांधी हत्या मामले में लिट्टे नेता वी प्रभाकरण (अब मृत) के प्रत्यर्पण की मांग करने वाले राज्य विधानसभा में पेश प्रस्ताव का मामला उठाया था लेकिन पनीरसेल्वम ने अपने बयान में इन विषयों को शामिल नहीं किया। करूणानिधि ने वरिष्ठ श्रीलंकाई तमिल नेता एस जे वी चेलवानायकम के पुत्र चंद्रहासन के बयान का जिक्र किया कि बहुसंख्यक शरणार्थी घर लौटना चाहते और वे कितने समय तक तमिलनाडु में अतिथि बन कर रहेंगे। करूणानिधि ने अपने बयान में कहा कि रिपोर्टों में इस बारे में कराये गए सर्वेक्षणों में पाया गया है कि तमिलनाडु में 70 प्रतिशत श्रीलंकाई शरणार्थी घर वापस लौटना चाहते हैं जबकि 20 प्रतिशत ने ऐसी सशर्त इच्छा जताई है। केवल 10 प्रतिशत रूकना चाहते हैं। उन्होंने जोर दिया कि 30 जनवरी को दिल्ली में श्रीलंकाई शरणार्थियों के घर लौटने के मुद्दे पर भारत और श्रीलंका के बीच बैठक में तमिलनाडु के हिस्सा नहीं लेने के बारे में उनका बयान आलोचना भरा था और उन्होंने केवल इतना कहा था कि राज्य सरकार को इसमें हिस्सा लेना और विचार व्यक्त करना चाहिए था। पनीरसेल्वम ने पूर्व में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर बैठक टालने की मांग करते हुए कहा था कि यह जल्दबाजी होगी क्योंकि स्थिति तमिल शरणार्थियों के घर लौटने के लिए उपयुक्त नहीं है। करूणानिधि ने इस पहल की आलोचना करते हुए कहा था कि श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन के परिदृश्य में श्रीलंकाई तमिलों की स्थिति पर बोलने का शानदार मौका गंवा दिया गया। दो दिन पहले पनीरसेल्वम ने अपनी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाने के लिए करूणानिधि की आलोचना करते हुए कहा था कि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार ने लिट्टे के खिलाफ श्रीलंका को सैन्य साजो-सामान और विशेषज्ञता से मदद दी जिसकी द्रमुक घटक रही थी।


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