रैन बसेरे हैं बेघरों का आसरा, सुप्रीम कोर्ट लोगों के पुनर्वास के प्रति गंभीर
Night shelters are shelter for homeless, Supreme Court serious about rehabilitation of people
पिछले दिनों दिल्ली के सराय काले खान में एक रैन बसेरा को ध्वस्त कर दिया गया था। यह मुद्दा जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने इसपर काफी गंभीर टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समाज को अब पुनर्वास के सवाल पर विचार करना होगा। अब सवाल यह है कि रैन बसेरों की गर्मियों में क्या आवश्यकता है और रैन बसरे नहीं होंगे तो क्या बदल जाएगा। इसी की पड़ताल करती रिपोर्ट-
कोर्ट में जानकारी दी गई कि सराय काले खां में एक रैन बसेरा को अधिकारियों ने एक दिन पहले ही ध्वस्त कर दिया है। एडवोकेट प्रशांत भूषण ने जस्टिस हृषिकेश रॉय और दीपांकर दत्ता की बेंच के समक्ष मामले का जिक्र किया है। बता दें कि प्रशांत भूषण ने शुरू में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष तत्काल सुनवाई के लिए मामले का जिक्र किया था।
अब सवाल यह है कि रैन बसेरों को लेकर कोर्ट इतना संजीदा क्यों है। दरअसल रने बसेरों का अस्तित्व कोर्ट और सरकार के आदेश के बाद ही है। सुप्रीम कोर्ट और सरकार ने फुटपाथ पर सोने वाले लोगों के लिए रैन बसेरों का इंतजाम करने के निर्देश दिए हैं लेकिन दिल्ली ही नही बाकी शहरों में भी रैन बसेरों की हालत खराब है। सुप्रीम कोर्ट ने हर राज्य के मुख्य सचिवों को रैन बसेरों को ठीक करवाने के निर्देश दिए हैं। इसके अनुसार, वहां जरूरत की सुविधा मुहैया करने को कहा जा चुका है। बावजूद इसके इन जर्जर रैन बसेरों की कहानी निक्कमे अधिकारियों और बेसहारों के प्रति संवेदनहीन बन चुके सरकार का चेहरा पेश करती है। ज्यादातर रैन बसेरों में पर्याप्त सुविधाएं नहीं होती। कहीं गंदगी जमा होती है तो कहीं साइकिल स्टैंड जैसे दूसरे इस्तेमाल किए जाते हैं। ऐसे में बेसहारों के लिए खोले गए इन रैन बसरों को खुद सहारे की जरूरत है।
वैसे तो कोहरे में लिपटी सर्द रातों में इन रैन बसेरों की महत्ता बढ़ जाती है। सूरज जैसे दिन को तन्हा छोड़ कर देशाटन पर चला गया है और ठंड के आगे गोया रात के हौसले पस्त हो गए हो। जब रईस लोग रात को मौज मस्ती के लिए किसी होटल का रुख़ करते हैं, ठंड में ठिठुरी ज़िंदगी इन रैनबसेरों में दाख़िल होती है। पर गर्मियों में तेज धूप से बचने के लिए लोग इसका सहारा लेते हैं। ऐसे में रैन बसेरा गिराया जाना यकीनन चिंता का विषय है।
Comments are closed.