कहीं जीतकर भी हार तो नहीं जाएगी आम आदमी पार्टी

Aam Aadmi Party will not lose even after winning anywhere

नई दिल्ली, 23 फरवरी। मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव भले ही शांतिपूर्वक हो गया हो पर एमसीडी की स्टैडिंग कमेटी का चुनाव शांतिपूर्वक निपटे इसकी संभवना कम ही है। दिल्ली विधानसभा में स्थायी समिति का चुनाव हंगामे की भेंट चढ़ रहा है। सदन में हाथापाई और  एक-दूसरे पर बोतल फेंकने के बाद सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। आखर क्या है स्टैडिंग कमेटी और क्यों हो रही है इसके लिए इतनी मारा मारी, आइए समझते हैं-

राजधानी दिल्ली में इस समय एमसीडी चर्चा में है। महापौर और उप-महापौर पद पर आप की शैली ओबेरॉय और आले मोहम्मद ने किसी तरह जीत दर्ज कर ली पर सदन की कार्यवाही शुरू हुई तो  रातभर नारेबाजी और शोरगुल का दौर चला। चुनाव नहीं हो पाया और कार्रवाई दूसरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई।

अब दिल्लीवालों के मन में शायद यह सवाल कौंध रहा होगा कि जब मेयर का चुनाव हो गया तब सदस्य के इलेक्शन में इतना बवाल क्यों? अंग्रेजी में स्थायी समिति को स्टैंडिग कमेटी कहते हैं। आखिर दिल्ली एमसीडी की स्टैंडिंग कमेटी कितनी महत्वपूर्ण होती है, जो मेयर चुनाव से भी ज्यादा ड्रामा इसमें देखने को मिला।  स्थायी समिति को जानने से पहले जान लीजिए कि एमसीडी क्या काम करती है और मेयर की पावर क्या होती है। एमसीडी जन्म प्रमाणपत्र, मृत्यु प्रमाणपत्र, संपत्ति कर, बिल्डिंग का प्लान, साफ-सफाई, मच्छरों की रोकथाम, सड़क पर आवारा पशु जैसी सुविधाएं और समस्याओं के समाधान के लिए काम करती है। दिल्ली नगर निगम का प्रमुख मेयर होता है लेकिन सिर्फ नाम का। कॉर्पोरेशन के हेड के तौर पर मेयर को बहुत सीमित शक्तियां मिलती हैं जिसमें से सबसे प्रमुख है सदन की बैठक बुलाना।

वास्तव में दिल्ली एमसीडी में स्टैंडिंग कमेटी ही सच मायने में प्रभावी तरीके से कॉर्पोरेशन का कामकाज और प्रबंधन करती है। जैसे यही स्थायी समिति प्रोजेक्ट्स को वित्तीय मंजूरी देती है। नीतियों को लागू करने से पहले चर्चा, उसे अंतिम रूप देने में भी स्थायी समिति का महत्वपूर्ण रोल होता है। यूं समझिए कि एमसीडी की यह मुख्य डिसीजन-मेकिंग बॉडी यानी फैसला लेने वाला समूह होता है। इसमें 18 सदस्य होते हैं। फिलहाल स्थायी समिति के छह सदस्यों का चुनाव होना था।

कमेटी में एक चेयरपर्सन और डेप्युटी चेयरपर्सन होता है। इन्हें स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों में से चुना जाता है। किसी भी राजनीतिक दल के लिए स्टैंडिंग कमेटी में स्पष्ट बहुमत होना मायने रखता है। इससे पॉलिसी और वित्तीय फैसले लेने में आसानी होती है। निगम इतिहास में यह पहली बार था जब मेयर चुनने के लिए बुलाई गई बैठक पूरी रात चली। स्थायी समिति का चुनाव महत्वपूर्ण बन गया क्योंकि आप ने 6 पद पर चार प्रत्याशी उतार रखे थे जबकि भाजपा ने तीन प्रत्याशी उतारे थे। भाजपा अगर तीन प्रत्याशी जीतती है तो वह अध्यक्ष के लिए फाइट में आ जाएगी। ऐसे में आप की कोशिश होगी कि उसके खाते में चार पद आ जाएं और भाजपा तीन पद जीतना चाहेगी। मेयर चुनाव के बाद छह सदस्यों को एमसीडी हाउस में सीधे चुना जाता है। दिल्ली में एमसीडी 12 जोन में बंटी है। हर जोन में एक वार्ड कमेटी होती है जिसमें क्षेत्र के सभी पार्षद और नामित एल्डरमैन शामिल होते हैं। स्टैंडिंग कमेटी में जोन प्रतिनिधि भी होते हैं।

सदन में कुल 274 वोट है , इनमें 250 पार्षद , 7 लोकसभा और 3 राज्यसभा सांसद , 14 विधायक है।  अगर इनमें एलजी साहब द्वारा मनोनीत 10 निगम पार्षद भी जोड़ दिए जाएं तो संख्या हो जाती है 284। 274 वोटों की संख्या पर बहुमत का आंकड़ा 137। इसमें तो आप पार्टी ने बाजी मार ली पर अब स्टैडिंग कमेटी की नैया अटक गई है। अब थोड़ा वोट का गणित और शक्ति के बंटवारे को समझ लेते हैं। 12 जोन में बीजेपी के पास चार जोन में स्पष्ट बहुमत है वो है केशव पुरम जोन,  नजफगढ़ जोन, शाहदरा नॉर्थ और शाहदरा साउथ। वहीं आम आदमी पार्टी के पास 8 जोन में बहुमत है , ये आठ जोन है सेंट्रल , सिटी यानी सदर पहाड़गंज , सिविल लाइन , करोल बाग़ , नरेला , रोहिणी , साउथ और वेस्ट। लेकिन इन जोन में 3 जोन ऐसे है जहाँ बीजेपी ने खेल किया है।  आम आदमी पार्टी का आरोप है की दिल्ली के एलजी बीजेपी कार्यकर्ता की तरह काम कर रहे है।  उन्होंने दिल्ली सरकार को बाईपास कर जो 10 निगम पार्षद मनोनीत किये है वे सभी बीजेपी कार्यकर्ता है। वे ऐसे जोन में नियुक्त किये है जहाँ जोन चुनाव में बीजेपी को लाभ पहुंच सके। ये जोन है सिविल लाइन, नरेला और सेंट्रल जोन। सिविल  जोन में आम आदमी पार्टी के 9 पार्षद है और बीजेपी के 6 पार्षद है। अब एलजी साहब ने इस जोन में 4  पार्षद मनोनीत कर दिया तो यहाँ बीजेपी के पार्षदों की संख्या 10 हो गयी। यानी अब यहाँ चेयरमैन और डिप्टी चैयरमैन भले ही बीजेपी न बन सका हो पर स्थायी समिति का सदस्य भी बीजेपी का ही बन सकता है।

नरेला जोन में आप के 10 पार्षद है और बीजेपी के 6 पार्षद है । यहाँ एलजी साहब ने 4 पार्षद मनोनीत किये है। यानी अब यहाँ बीजेपी की संख्या आप के बराबर यानी 10 हो गयी। नार्थ एमसीडी  का यह वही नरेला जोन है जहाँ आम आदमी पार्टी ने बीजेपी का बहुमत होते हुए भी अपना चेयरमैन बना लिया था। अब बीजेपी यहाँ उसी का बदला ले सकती है।  यानि यहाँ फैसला या तो टॉस से होगा या फिर अपना चैयरमैन बनाने के लिए दोनों पार्टियों को एक पार्षद का जुगाड़ करना पडेगा।

इसी तरह सेंट्रल जोन में आम आदमी पार्टी के 13 और बीजेपी के 10 पार्षद है। एलजी  साहब ने यहाँ 2 पार्षद मनोनीत किये है। यानी अब यहाँ बीजेपी की संख्या 12 हो गयी है। यहाँ कांग्रेस और अन्य के भी दो पार्षद है। यानी बीजेपी इनकी मदद से यहाँ भी जोन में अपनी सत्ता बना लेगी। स्थायी समिति का सदस्य हासिल कर लेगी। बेशक कांग्रेस को यहाँ कोई पद देना पड़े।

यही वजह है कि भाजपा और आप ने स्थायी समिति के सदस्यों का चुनाव प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया।  अगर भाजपा हारती है तो उसके पास दिल्ली में लोकल लेवल पर कुछ नहीं बचेगा। अगर बीजेपी स्थायी समिति में अपना दबदबा बनाने में सफल हो जाती है तो वह हारकर भी एमसीडी में जीत जाएगी क्योंकि दिल्ली में स्थायी समिति के बगैर एमसीडी कुछ नहीं है।

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