खड़ा करेंगे नया क्षेत्रीय विकल्प, जी.के.वासन, तमिल मनिला कांग्रेस

नई दिल्ली। कांग्रेस से अलग होकर तमिल मनिला कांग्रेस बनाकर तमिनाडू की राजनीति में उबाल लाने वाले जी.के.वासन काफी सहज, सरल और मिलनसार स्वभाव के नेता हैं। तमिलनाडू के विकास को लेकर उनके पास सुस्पष्ट नीति और सोच है। पिछले दिनों दिल्ली में अपनी पत्रिका के संपादक राजेन्द्र स्वामी की उनसे लम्बी बातचीत हुई। प्रस्तुत है वार्ता के प्रमुख अंश

आपने कांग्रेस से अलह होकर तमिल मनीला कांग्रेस (टीएमसी) को पुनर्जीवित किया है। इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
वास्तव में यह एक नई पार्टी है, जिसका नाम पुराना है। नेरे पिताजी स्व. जी के मूपनार ने 1996 में इसके संस्थापक अध्यक्ष थे।
केंद्र में सत्तानशीन भाजपा का राज्य में कोई आधार नहीं है। कांग्रेस और डीएमके को जनता ने नकार दिया है। एआईडीएमके भी अपना जनाधार खो रही है। ऐसी स्थिति में क्या आपको लगता है कि आपकी पार्टी एक विकल्प प्रस्तुत कर पाएगी?
मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि 48 वर्ष से अधिक समय से द्रविड़ पार्टियां प्रदेश में राज्य कर रही हैं। दोनों ही द्रविड़ पार्टियां इतने लंबे समय से सत्ता में रहते हुए अनेक मुद्दों पर अनेक विवादों में घिर गई हैं। इससे राज्य का युवा और सामान्य जनता दोनों ही इन दोनों ही दलों से ऊब चुके हैं और परिवर्तन चाहते हैं। यही सही समय है कि नए क्षेत्रीय दल खड़े हों और 2016 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले लोगों का विश्वास जीतें।
आप अभी तक कांग्रेस के नेता रहे हैं। आपके पिता भी कांग्रेस के प्रभावी नेताओं में थे। प्रदेश में डीएमके, एआईडीएम के विपक्ष के तौर पर एक गैरभाजपा विकल्प के रूप में कांग्रेस को मजबूत क्यों नहीं कर रहे हैं? क्या इससे विपक्ष कमजोर नहीं होगा?
वर्ष 2001 में जब मेरे पिता स्व. जी के मूपनार की मृत्यु हुई थी, उनकी पार्टी में एक सांसद और 29 विधायक थे। उनकी मृत्यु के बाद मैं उसका अध्यक्ष बना और एक वर्ष तक मैंने इसे एक क्षेत्रीय दल के रूप में चलाया। उस समय एआईडीएमके सत्ता में थी। दूसरे स्थान पर डीएमके थी और तीसरे स्थान पर हम थे। उस समय कांग्रेस तो छठे या सातवें स्थान पर थी। हमने एक उदार और बड़ी पहल की कि सेकुलरवाद हमारा प्रमुख एजेंडा होना चाहिए और हमें तमिलनाडू में कामराज शासन को पुनर्जीवित करना था। इसके लिए कांग्रेस और टीएमसी को एक बड़े प्लेटफार्म पर आना चाहिए और लक्ष्य प्राप्त करना चाहिए, इस विशाल उद्देश्य को सामने रख कर हमने वर्ष 2002 में कांग्रेस में विलय किया। प्रदेश की तीसरी बड़ी पार्टी होने के बावजूद हमने इतना बड़ा फैसला लिया था। उस समय यह सुनिश्चित नहीं था कि कांग्रेस दोबारा वापसी करेगी या नहीं, या फिर भाजपा सत्ता में आएगी। हमने कभी इसकी चिंता नहीं की। हमने केवल राष्ट्रीय हित और सेकुलरवाद के बारे में सोचा। हमने इस विलय को 12 बारह वर्षों तक चलाया। जहां प्रदेश में कांग्रेस का एक भी सांसद नहीं था, हमने उसे दस सांसद दिए। फिर हमने उसे 33 विधायक दिए। हम कांग्रेस में एक मजबूत ताकत थे और उसे प्रदेश में पुनर्वापसी करने में मदद कर रहे थे। लेकिन कांग्रेस की नीतियां और व्यवहार प्रदेश नेताओं और कार्यकर्ताओं के अनुकूल नहीं बन पा रहा था। इससे कार्यकर्ता एक बार फिर से अलग होने का बड़ा निर्णय लेने के लिए विवश हो गए।
अब आपके प्रमुख मुद्दे क्या होंगे?
देखिए, हम सत्तारूढ पार्टी नहीं हैं। हम कभी सत्ता में भी नहीं रहे हैं। लेकिन देश को हम एक बात बताना चाहते हैं कि कामराज के शासन में तमिलनाडू देश में प्रमुख राज्यों में से एक था। कृषि, उद्योग और शिक्षा में हम पहले नम्बर पर थे। कामराज ने प्रदेश को एक ईमानदार और साफ-सुथरी सरकार दी थी। उन्होंने जो 50 वर्ष पहले किया था, आज प्रदेश को उसकी ही जरूरत है।हम भी शासन में वही ईमानदारी और पारदर्शिता लाना चाहते हैं। दविड़ों के 48 साल के शासन के बाद भी तमिलनाडू में बिजली की समस्या बनी ही हुई है।
आपने बिजली की बात की। तमिलनाडू के कुडनकुलम में नाभीकीय बिजली उत्पादन का विरोध किया जा रहा है। आप क्या सोचते हैं?
पहली बात तो यह है कि हम प्रदेश में ही नहीं, पूरे देश में और अधिक बिजली उत्पादन करने के पक्ष में हैं। अधिक बिजली का अर्थ है अधिक सिंचाई, अधिक उद्योग-धंधे, अधिक पानी और अधिक विकास। इन सबका मूल बिजली ही है। परंतु दूसरी ओर कुडनकुलम जैसे प्रयोगों को शुरू करने से पहले आमजन की सुरक्षा भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। प्रदेश और केंद्र दोनों ही सरकारों का यह दायित्व है कि वे लोगों के मन से डर को दूर करें। लोगों का विश्वास जीतें और तब इसे शुरू करें।
अब्दुल कलाम जैसे वैज्ञानिक कह रहे हैं कि इसमें सुरक्षा संबंधी कोई खतरा नहीं है। क्या उन पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं है?
नहीं, ऐसा नहीं है। प्रदर्शनकारियों के समूह को विश्वास दिलाया गया तो वे शांत हो गए और प्लांट फिर से काम कर रहा है। इसलिए आगे जब भी ऐसे प्लांट शुरू करने हों, लोगों को जागरूक करना चाहिए और उन्हें यह भरोसा दिलाना चाहिए कि उनकी सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। यह केंद्र और प्रदेश सरकार का दायित्व है।
जयललिता सरकार को आप कितने नम्बर देना चाहेंगे?
अनेक उतार-चढ़ाव हैं। दुग्ध-उत्पादों के मूल्यों में बढ़ोत्तरी, बिजली के दर में वृद्धि आदि से आम जनता प्रभावित हुई है और हम इसका कड़ा विरोध करते हैं। परंतु दूसरी ओर हम सरकार के अच्छे कार्यों की खुल कर तारीफ भी करते हैं।
आज देश में नरेंद्र मोदी को व्यापक समर्थन मिल रहा है। इसे आप किस तरह देखते हैं?
पहली बात तो यह है कि यह केवल छह महीने पुरानी सरकार है। किसी भी सरकार के कार्यों की वास्तविक समीक्षा केवल छह महीने में करना संभव नहीं है। हालांकि इन छह महीनों में उन्होंने लोगों को आकर्षित करने वाले कार्य करने की कोशिश की है, लेकिन वे गलत दिशा में चले गए जिसका लोगों पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ा है।

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कौन सी गलत दिशा में?
वे आर्थिक मोर्चे पर असफल रहे हैं। सरकार ने मूल्यों को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए। दूसरे नए सुधार नहीं किए गए। वे केवल यूपीए सरकार के किए सुधारों को आगे बढ़ा रहे हैं।
उनका दावा है कि मंहगाई दर शून्य पर आ गई है।
हां, ऐसा अब हुआ है। परंतु इसका कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड आयल की कीमतों आई गिरावट है, उनकी नीतियां नहीं। इसके साथ सरकार को भी कुछ उपाय करने चाहिए थे।
कौन से उपाय सरकार को और करने चाहिए थे?
ढेरों उपाय हैं। वित्त मंत्रालय है, रिजर्व बैंक है, अनेक समितियां हैं। उन्हें उचित निर्देश देने चाहिए थे।
आप अभी तक कांग्रेस के साथ रहे हैं। नई परिस्थितियों में यदि भाजपा सहयोग का प्रस्ताव दे तो क्या आप तैयार होंगे?
देखिए, हम एक ऐसी पार्टी हैं, जिसके लिए सेकलरवाद ही सब कुछ है। हम कांग्रेस से अलग जरूर हुए हैं, लेकिन प्रदेश में हमारा एजेंडा भाजपा से बिल्कुल अलग है। हमारा उद्देश्य कामराज के शासन को फिर से लाना है। कामराज कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे। वे प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की सोच के असफल होने के कारण उन्होंने कांग्रेस छोड़ा था। वे कांग्रेस के तरीकों से सहमत नहीं थे। हम भी उनके उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए संकल्पित हैं। इसलिए हमारी भूमिका और रास्ते कुछ और है और भाजपा के कुछ और। हम दोनों बिल्कुल अलग-अलग हैं।
श्रीलंका में रह रहे तमिलों का मुद्दा भी काफी महत्वपूर्ण है। श्रीलंका में अभी भी 70 हजार से अधिक तमिल विधवाएं पुनर्वास की बाट जोह रही हैं। आप क्या सोचते हैं?
श्रीलंकाई तमिलों का मामला तमिलनाडू और तमिल लोगों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा है। उनसे हमारा दूर का परंतु काफी गहरा संबंध है। जो वे भुगत चुके हैं, उसे लौटाया नहीं जा सकता। इसके लिए काफी संवेदनशील व्यवहार की आवश्यकता है। प्रदेश की जनता और श्रीलंकाई तमिलों को लगता है कि उनके लिए सरकार को जैसी नीति अपनानी चाहिए था, नहीं अपनाई गई। आवश्यक कदम नहीं उठाए गए। हमारी विदेश रणनीति और संबंध और मजबूत और ठोस होने चाहिए थे। हालांकि भारत सरकार ने तमिल लोगों की अनेक प्रकार से सहायताएं कीं, उन्हें कृषि उपकरण दिए, सड़कें बनवाईं, रेलवे लाइनें बिछाईं, घर दिए, उनके पुनर्वास के काफी उपाय किए। परंतु लोगों का मानना है कि जो किया गया वह सौ प्रतिशत नहीं था और समय पर भी नहीं था। एक वाक्य में कहें तो जो सुविधा सिंहली लोगों को मिल रही है, वह सारी सुविधाएं तमिलों को भी मिलनी चाहिए।
श्रीलंका और भारत के संबंधों में एक और महत्वूर्ण मुद्दा रामसेतु का है। आपका इस पर क्या मत है?
सेतुसमुद्रम् परियोजना से केवल प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए आर्थिक रूप से लाभदायक है। जिस परियोजना से देश को लाभ होने वाला है, जिससे समिलनाडू से दक्षिणी इलाकों को लाभ होने वाला है, जो परियोजना हजारों लोगों को रोजगार देने वाली है, जो परियोजना देशों को छोटे समुद्री मार्ग से जोडऩे में उपयोगी है तो यह सरकार का काम है कि ऐसी परियोजना को जल्द से जल्द पूरा करे। देश का एक वर्ग इस परियोजना को सांप्रदायिक रूप से देखता है। इस परियोजना को आठ वर्ष पहले ही पूरा होना था, परंतु यह आज तक नहीं हो पाया है। आज यह मामला कोर्ट में है। यह सरकार का काम है कि लोगों की भावनाओं और देश को होने वाले लाभ के बीच तालमेल बैठाते हुए सरकार को कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहिए, जिसमें कोई विवाद न हो।
यदि कुछ लोग इसे रामसेतु और राष्ट्रीय धरोहर मानते हैं और यदि इस परियोजना का एक विकल्प उपलब्ध है तो इसे अपनाने में क्या समस्या है?
इसमें पहले ही 7-8 साल लग चुके हैं। यदि कोई विकल्प है जो कोर्ट को और पर्यावरणविदों को स्वीकार हो तो वर्तमान सरकार के पास यह मौका है कि वह इस परियोजना को समय से पूरा करे। इसमें कोई समय और धन की और अधिक बर्बादी न करे।
जयललिता के गिरफ्तार होने के बाद प्रदेश की राजनीति में क्या स्थिति बन रही है?
गिरफ्तार होने से पहले सत्ता को सीधा संचालित कर रही थी, लेकिन अब वह पीछे से सत्ता संभाल रही है। वर्तमान मुख्यमंत्री उनकी कठपुतली है। अब यह जनता को तय करना है कि उसे क्या चाहिए। एआईडीएमके या डीएमके या फिर क्षेत्रीय दलों का तीसरा मोर्चा।
तो आप अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करेंगे?
एक नया दल होने के कारण मेरी पहली प्राथमिकता अपने दल को मजबूत बनाने का है। विधानसभा चुनावों से पहले हम देखेंगे कि क्या विकल्प हो सकते हैं।
आपने कांग्रेस की कार्यशैली को नजदीक से देखा है। क्या आपको लगता है कि इन आम चुनावों में जनता ने कांग्रेस और सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कार्यशैली को नकार दिया है?
बिल्कुल, यह एकदम साफ है कि जनता ने यूपीए सरकार को नकार दिया है। यदि कोई पार्टी 44 के आंकड़े तक सिमट जाती है तो यह साफ है कि जनता आपके साथ नहीं है। जनता ने आपके तरीकों को पसंद नहीं किया। आपको आत्ममंथन करना चाहिए।
प्रदेश राजनीति के लिए आपकी आगामी रणनीति क्या रहने वाली है?
पहली रणनीति है गांव, पंचायत और तालुक के स्तर पर पार्टी को मजबूत करना। लोगों से बात करना, उनकी समस्याओं को समझना हमारी रणनीति रहने वाली है।

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