Saturday, May 18, 2024
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ग पड़ी पंचायतें

 

गाँव-गाँव अब रो रहा, गांधी का स्वराज।
भंग पड़ी पंचायतें, रुके हुए सब काज।।
कहाँ बचे भगवान से, पंचायत के पंच।
झूठा निर्णय दे रहे, ‘सौरभ’ अब सरपंच।।
पंचायत के आज कल, बदल गए है पक्ष।
दाँव पेंच में उलझते, पंच के संग अध्यक्ष।।
पंचायत विषधर करे, हुई बहस पुरजोर।
हम से विष में आदमी, क्यों आगे हर ओर।।
रही नहीं पंचायतें, रहे नहीं वो गाँव।
फँसकर कोर्ट कचहरियां, घिस-घिस जाते पाँव।।
न्याय रूप भगवान का, चलता इनसे राज।
पंचायत हो सच अगर, बनते सबके काज।।
पंच राम का रूप थे, राम राज चहुँ ओर।
कहाँ गया वो राज अब, कहाँ सुनहरी भोर।।
जनहित करें न काम जो, वो कैसे सरपंच।
चढ़ना उनका पाप है, पंचायत के मंच।।
बिखर गई पंचायतें, रूठ गए है पंच।
भटक राह से है गए, स्वशासन के मंच।।

 डॉ. सत्यवान ‘सौरभ’

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