Sahara Protest : सहारा मीडिया के आंदोलन ने निकाल दी थी सुब्रत रॉय की हेकड़ी 

ठप कर दी गई थी प्रिंट मीडिया की सभी यूनिट और टीवी चैनल 

सी.एस. राजपूत    

एक समय था कि सहारा इंडिया के चेयरमैन सुब्रत रॉय सीना ठोककर कहा करते थे कि 10 लाख सदस्यों का परिवार होने के बावजूद सहारा में कोई बगावत नहीं हो सकती है। उन्होंने संस्था में पूरी तरह से परिवार वाला माहौल बना रखा है। उनकी संस्था में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। सुब्रत रॉय को लाल झंडे से बड़ी नफरत रही है। नेतागिरी के मामले में उन्होंने अपने को ही सहारा का एकमात्र नेता करार दे दिया था। इसे सुब्रत रॉय का अपने कर्मचारियों की ओर मुड़कर न देखना कहें या फिर सेबी की सख्ती कि 2015-16  में सहारा मीडिया में कर्मचारियों को वेतन मिलना लगभग बंद हो गया था। दरअसल 2014 में जब सुब्रत रॉय सहारा सेबी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तिहाड़ जेल में बंद कर दिए गये थे। सहारा मीडिया में कर्मचारियों को वेतन मिलना बंद हो गया। एक टोकन मनी बांध दी गई। 2015 में सहारा मीडिया में तीन आंदोलन हुए। पहला आंदोलन बृजपाल चौधरी और चरण सिंह की अगुआई में हुआ तो दूसरा गीता रावत और शशि राय के नेतृत्व में और तीसरा गीता रावत और मोहित श्रीवास्तव की अगुआई में।

नेता गिरी न करें सहारा में एक ही नेता है और वह मैं हूं 

जब सहारा मीडिया में बकाया वेतन को लेकर आंदोलन चल रहा था तो तिहाड़ जेल में बंद सुब्रत राय ने आंदोलनकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल वहां पर ही बुलाया। प्रतिनिधिमंडल में मुख्य रूप से गीता रावत, शशि रॉय, चरण सिंह, मोहित श्रीवास्तव, मुकुल रघुवंशी और उत्पल कौशिक थे।  सुब्रत रॉय ने उठकर इस प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया पर जब मीटिंग शुरू हुई तो उन्होंने तुरंत बोला कि आप लोग नेतागिरी न करें। सहारा में एक ही नेता है और वह मैं हूं। हालांकि दो घंटे तक चली इस मीटिंग में जब सुब्रत राय की एक न चली तो उन्होंने यह कहकर मीटिंग समाप्त कर दी कि उनके पास पैसा नहीं है। जिन सुब्रत  रॉय के सामने सहारा में कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता था उप पर सवालों की बौछार हुई थी। सुब्रत राय की जिंदगी में यह पहली मीटिंग थी जिसमें उनको अपने ही कर्मचारियों के सवालों का बौछारों का सामना करना पड़ रहा था। यह ऐसी मीटिंग थी जिसमें सहारा में व्याप्त व्यवस्था का खुलकर विरोध हुआ था। सुब्रत राय और उनके सिपहसालारों के  रवैये से नाराज आंदोलनकारियों ने नोएडा स्थित सहारा परिसर में टेंट गाड़ कर आंदोलन को तीव्र कर दिया। यह मीडिया जगत का ऐसा आंदोलन था जिसमें परिसर के अंदर ही टेंट गाड़ कर सुब्रत राय और उनके सिपहसालारों को ललकार दिया गया था।

एक समय था कि सहारा में कर्मचारी और एजेंट सुब्रत राय के खिलाफ एक शब्द नहीं बोल सकते थे। सहारा ग्रुप में पहले गुड सहारा और फिर सहारा प्रणाम को ही अभिवादन माना जाता रहा है। सहारा में सुब्रत राय ने विभिन्न हथकंडे अपनाकर कर्मचारियों और एजेंटों में अपनी छवि भगवान की बनवा रखी थी। राजनीति, बालीवुड और खेल जगत में अपना रुतबा मनवाने वाले और अपने को विश्व के सबसे बड़े परिवार का अभिभावक बताने वाले सुब्रत राय को जिंदगी का सबसे बड़ा झटका उस समय लगा जब सहारा मीडिया में बकाया वेतन भुगतान को लेकर उनके खिलाफ ही बगावत हो गई।

दरअसल 2015-16  में जब सहारा मीडिया में 4-5 महीने तक पूरा वेतन न मिला तो सहारा मीडिया के कर्मचारियों ने स्थानीय प्रबंधन पर वेतन देने का दबाव बनाया जब प्रबंधन ने उनकी एक न सुनी तो नोएडा स्थित सहारा मीडिया के परिसर में आंदोलन शुरू कर दिया गया। पहले सहारा टीवी के कर्मचारियों ने हिम्मत जुताई पर उनको समझा कर काम पर भेज दिया गया। उसके बाद प्रिंट मीडिया में उबाल आ गया और इस आंदोलन में बृजपाल चौधरी और चरण सिंह का ऐसा नाम उभरकर आया था जिन्होंने बकाया वेतन भुगतान को लेकर अपनी आवाज बुलंद की थी। मतलब यह आंदोलन राष्ट्रीय सहारा के संपादकीय विभाग की अगुवाई में हुआ था। बृजपाल चौधरी की अगुआई में चले इस आंदोलन में न केवल राष्ट्रीय सहारा नोएडा बल्कि लखनऊ, देहरादून, गोरखपुर, कानपुर यूनिट में काम रोक दिया गया था बल्कि सहारा समय चैनल के बुलेटिन भी रुकवा दिये गये थे। इस आंदोलन को पूरी तरह से कर्मचारियों का समर्थन प्राप्त था।

पांच दिन तक आंदोलन होने के बाद तिहाड़ जेल में बंद सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय ने तत्कालीन सीईओ राजेश कुमार को आंदोलन को तुड़वाने की जिम्मेदारी सौंपी। इसी बीच सुबह लगभग 9 बजे जब आंदोलनकारियों की संख्या कम थी तो नोएडा का पूरा पुलिस प्रशासन आंदोलन स्थल पर आ धमका और आंदोलनकारियों को धमकाने की कोशिश की। हालांकि नोकझोंक के बाद पुलिस प्रशासन वापस हो गया पर आंदोलनकारियों और प्रबंधन के बीच टकराव और बढ़ गया।

आंदोलन का नेतृत्व कर रहे चरण सिंह ने कहा कि अब तक घर की बात घर में थी। आप लोगों ने पुलिस को बुलाकर आंदोलन को बाहर पहुंचा दिया। उसके बाद नोएडा उप श्रमायुक्त के यहां बकाया वेतन न मिलने की वजह से आंदोलन करने की बात लिखवा दी गई। मामले को बढ़ता देख सीईओ राजेश कुमार ने ब्रजपाल चौधरी को सेट कर बिना किसी वेतन के सुब्रत राय के एक पत्र के आश्वासन पर आंदोलन को तुड़वा दिया। हालांकि हालात को देखकर ऐसा लग रहा था कि राजेश कुमार ने बृजपाल चौधरी को कोई डर दिखाया था। फिर भी उस समय सहारा मीडिया के कर्मचारियों में ब्रजपाल चौधरी के प्रति बहुत आक्रोश था। यही वजह रही कि दूसरे आंदोलन में उन्हें नहीं शामिल नहीं किया गया था।

अपने स्वभाव के अनुसार जब सुब्रत राय अपने आश्वासन पर खरे न उतरे तो कुछ ही दिन बाद फिर से सहारा मीडिया में आंदोलन शुरू हो गया। यह आंदोलन भी राष्ट्रीय सहारा के संपादकीय विभाग की अगुवाई में ही हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व गीता रावत और शशि राय ने किया। इस आंदोलन में कई दिनों तक राष्ट्रीय सहारा का मात्र एक ही संस्करण प्रकाशित किया गया। दिनभर कर्मचारी परिसर में आंदोलन करते थे और रात में दो-तीन दिन घंटे में एक संस्करण निकालने के बाद फिर से धरने पर बैठ जाते थे। इस आंदोलन को तुड़वाया मौजूदा एडिटर इन चीफ उपेंद्र राय ने।

दरअसल जब सुब्रत राय से तिहाड़ जेल में मिलने गये प्रतिनिधिमंडल ने सहारा मीडिया के परिसर में टेंट गाड़ कर आंदोलन शुरू कर दिया तो सुब्रत राय ने आंदोलन को तुड़वाने की जिम्मेदारी उपेंद्र राय को दी। उपेंद्र राय ने तत्कालीन राष्ट्रीय सहारा के समूह संपादक विजय राय को साथ लेकर कुछ आंदोलनकारियों को सेट कर मात्र एक माह के वेतन पर आंदोलन को तुड़वा दिया। इस आंदोलन ने सहारा समय के मुकुल राजवंशी और उत्पल कौशिक की बलि ले ली थी। मतलब इन दोनों को उपेंद्र राय ने नौकरी से निकाल दिया था। सहारा मीडिया में यह पहला समय था कि किसी कर्मचारी को नौकरी से निकाला गया था। हालांकि मुकुल राजवंशी और उत्पल कौशिक के टर्मिनेशन के विरोध में सहारा समय के कर्मचारी धरने पर बैठे पर राष्ट्रीय सहारा की ओर से उनको समर्थन न मिलने की वजह से वह जम न सके और उन्हें मना लिया गया। इस आंदोलन में एक बड़ी बात यह हुई थी कि शशि रॉय को वाराणसी यूनिट का संपादक बना दिया गया था। जो आंदोलन के साथ गद्दारी कही गई थी। हालांकि कुछ दिन बाद उसे संपादक के पद से हटा दिया गया था।

यह वह समय था कि सुब्रत राय ने राजेश कुमार को हटाकर उपेंद्र राय को सहारा मीडिया का सीईओ बना दिया था। उपेंद्र राय ने इस आंदोलन को तुड़वाने का शशि राय को वाराणसी यूनिट के संपादक के रूप में बड़ा रिवार्ड दिया था।  हालांकि उपेंद्र राय भी ज्यादा दिनों तक न टिक सके। जब वह अपने वादे के अनुसार हर महीने वेतन न दिलवा सके तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। बताया जाता है कि तब उपेंद्र राय ने कहा था कि वह खुद अपने घर से काफी पैसा वेतन देने में लगा चुके हैं।

जब सहारा श्री उन्हें पैसा दे ही नहीं रहे हैं तो फिर वह कहां से वेतन दें। उपेंद्र राय के इस्तीफे के बाद सहारा मीडिया की बागडोर गौतम सरकार को सौंप दी गई। प्रिंट मीडिया विजय राय और प्रशासनिक जिम्मेदारी सीबी सिंह के पास थी। जब मीडिया में 6-7 महीने का बकाया वेतन हो गया तो फिर से  सहारा मीडिया में आंदोलन शुरू हो गया। यह आंदोलन गीता रावत और मोहित श्रीवास्तव की अगुआई में हुआ। यह आंदोलन मई  2016  में शुरू हुआ था। शशि राय के समय में हुए आंदोलन में शुरू हुई यूनियन की कवायद को गीता रावत और मोहित श्रीवास्तव ने आगे बढ़ाया।

उत्तर प्रदेश कानपुर से सहारा मीडिया यूनियन के नाम से एक यूनियन रजिस्टर्ड कराने के प्रयास शुरू हुए। बताया जाता है कि यूनियन बनवाने की इस कवायद को विराम लगवाया सहारा समय के रमेश अवस्थी ने। दरअसल रमेश अवस्थी ने वाराणसी यूनिट में यूनियन के उपाध्यक्ष एसपी सिंह और मनोज श्रीवास्तव को विश्वास में ले लिया। तमाम प्रयास के बावजूद गीता रावत और मोहित श्रीवास्तव यूनियन का रजिस्ट्रेशन न करा सके। इसी बीच सुब्रत राय के माता जी छवि राय का निधन हो गया और उनके अंतिम संस्कार करने के लिए सुब्रत राय को दो हफ्ते की पैरोल मिल गई। इस पैरोल अवधि में सुब्रत राय ने दिल्ली में सहारा इंडिया की एक बड़ी मीटिंग रख दी।

सहारा मीडिया में चल रहे आंदोलन की अगुवाई कर रहे कर्मचारियों ने दिल्ली में सुब्रत राय के घेराव की योजना बनाई। हालांकि सुब्रत राय को घेरने की इस योजना को टालने के लिए विजय राय ने काफी प्रयास किया पर गीता रावत और मोहित श्रीवास्तव की अगुआई में चल रहे आंदोलन की टीम ने उनकी एक बात न मानी। तभी विजय राय ने इस कदम के गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी आंदोलनकारियों को दी थी। आंदोलनकारी कई बसों में भरकर सुब्रत राय को घेरने दिल्ली जरूर गये पर वहां पर भारी पुलिस व्यवस्था के चलते वे कुछ न कर सके। आंदोलनकारियों को पुलिस ने जंतर-मंतर पर प्रोटेस्ट करने को कहा और सहारा कर्मचारियों ने बकाया भुगतान और सहारा में व्याप्त कुव्यवस्था को लेकर सुबह से शाम तक जंतर-मंतर पर ही प्रोटेस्ट किया। यह वह समय था कि जब सहारा मीडिया में लगभग 2000 कर्मचारी आंदोलन पर थे। एक आंदोलनकारी ने सुब्रत रॉय चोर है का नारा क्या लगाया कि प्रबंधन ने एक वीडियो की क्लिपिंग सुब्रत रॉय के पास पहुंचा दी। यह इस वीडियो को बनाने में कुणाल का नाम सामने आया था।

विजय राय की चेतावनी अपना काम कर ही थी। लखनऊ में आंदोलन की अगुआई कर रहे कर्मचारियों को टर्मिनेट करने की भूमिका तैयार हो चुकी थी। आंदोलनकारियों में भय पैदा करने के लिए आंदोलन की अगुआई कर रहे गीता रावत, मोहित श्रीवास्तव, एसके तिवारी, आजाद शेखर समेत 17 कर्मचारियों को टर्मिनेट करने की लिस्ट लखनऊ में तैयार कर ली गई। टर्मिनेट होने वाले आंदोलनकारियों को रुकवाने के लिए नोएडा सहारा परिसर के गेट पर पुलिस को लगा दिया गया था। चरण सिंह को इसकी भनक भी लग गई थी पर जब उन्होंने गीता रावत और मोहित श्रीवास्तव को इस बात की जानकारी दी तो उन्होंने इस पर विश्वास न किया।

हालांकि आंदोलनकारियों ने सहारा मीडिया के प्रबंधन से पुलिस के गेट पर आने की वजह पूछी पर प्रबंधन ने नोएडा में चल रहे सीबीआई छापों के चलते सहारा परिसर के गेट पर भी पुलिस को लगाने की बात कही। जिसका अंदेशा था वही हुआ अगले दिन टर्मिनेट होने वाले कर्मचारियों में 5 नाम और जोड़कर 22 कर्मचारियों के टर्मिनेशन की लिस्ट गेट पर लगाकर उनकी नो एंट्री कर दी गई।
नोएडा सेक्टर 12 स्थित प्रियदर्शिनी पार्क में आंदोलनकारियों की एक मीटिंग हुई। सहारा मीडिया में अंदर काम कर रहे कर्मचारियों ने टर्मिनेट हुए कर्मचारियों को गेट पर बुलाया और नोएडा परिसर में काम कर रहे राष्ट्रीय सहारा और सहारा समय के सभी कर्मचारी गेट पर आ गये और काम रोक दिया गया। टर्मिनेट किये गये कर्मचारियों को वापस लेने के लिए फिर से आंदोलन शुरू हो गया। अब आंदोलन का स्वरूप बदल चुका था। अब आंदोलन सहारा परिसर के बाहर हो रहा था। नोएडा का पूरा पुलिस प्रशासन राष्ट्रीय सहारा के गेट पर मौजूद था।

पांच दिन तक अखबार और टीवी चैनल दोनों बंद रहे। फिर से विजय राय ने राष्ट्रीय सहारा के कुछ कर्मचारियों को अपने साथ लेकर एक चाल चली। बताया जाता है कि विजय राय के इस षड्यंत्र में पहले आंदोलन की अगुवाई करने वाले बृजपाल चौधरी भी शामिल थे। बताया जाता है कि राष्ट्रीय सहारा में रिपोर्टिंग कर रहे कर्मचारियों ने कला विभाग में काम करने वाले छवि सिंह, दिनेश कुमार समेत कई कर्मचारियों के साथ मिलकर अखबार निकाल दिया। अखबार निकलते ही आंदोलनकारियों में भगदड़ मच गई। धीरे-धीरे कर्मचारी परिसर में जाने लगे। काफी कर्मचारियों ने अंदर जाने से इनकार कर दिया पर टर्मिनेट हुए कर्मचारियों ने इन सभी को समझाकर काम पर भेज दिया।

हालांकि उस समय राष्ट्रीय सहारा के ही विजय शर्मा, अशोक शर्मा, मुफीज जिलानी समेत कई लोगों ने विजय राय के कहने पर टर्मिनेट होने वाले कर्मचारियों को वापस लेने के लिए सुब्रत राय से बात करने बात आगे बढ़ाई। हालांकि बाद में इन लोगों ने सुब्रत राय को भेजे पत्र में भाषा ठीक न होने की वजह से उनकी वापसी को नकार दिया। इस तरह सहारा मीडिया में हुए बड़े आंदोलन को समाप्त करा दिया गया। इस आंदोलन के बाद सहारा मीडिया में हालात बद से  बदतर होते चले गये। सहारा मीडिया में नियमित रूप से वेतन नहीं मिल पाया।

आज की तारीख में वेतन को लेकर सहारा मीडिया में बड़ा आक्रोश देखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि यदि इस महीने कर्मचारियों को वेतन न मिला तो फिर से सहारा मीडिया में बड़ा आंदोलन हो सकता है। उधर सहारा इंडिया के खिलाफ निवेशकों और एजेंटों ने मोर्चा संभाल रखा है। देशभर में आंदोलन चल रहा है। अभय देव शुक्ला के नेतृत्व में ऑल इंडिया जन आंदोलन न्याय संघर्ष मोर्चा आंदोलन कर रहा है तो मदन लाल आजाद ठगी पीड़ित जमाकर्ता परिवार के बैनर तले दूसरी भारत यात्रा पर हैं।  अमन श्रीवास्तव के नेतृत्व में अखिल भारतीय जन कल्याण मंच सहारा मीडिया के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहा है। भुगतान को लेकर देशभर के विभिन्न राज्यों के विभिन्न जिलों में सहारा के खिलाफ आंदोलन चल रहा है। अब देखना यह है कि केंद्र सरकार, सेबी, सुप्रीम कोर्ट के साथ ही आंदोलन कर रहे संगठन निवेशकों, एजेंटों और कर्मचारियों का पैसा दिलवा पाते हैं या फिर सुब्रत राय की तिकड़मबाजी मामले को ऐसे ही उलझाये रखती है।

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