Sahara Media : जब सहारा में पहुंचे थे पत्रकारिता के महारथी!

नामवर सिंह पर विष्णु खरे के लेख से सहारा में मच गया था बवाल 

Charan Singh  

सहारा से वैसे तो न जाने कितने पत्रकारों ने अपना करियर शुरू किया, कितनों ने करियर भी बनाया। कितनों का करियर ख़राब हो गया पर में एक दौर ऐसा भी आया कि राष्ट्रीय सहारा के दैनिक क्षेत्रीय संस्करणों को बंद कर सहारा समय के नाम से साप्ताहिक अख़बार निकाला गया वह भी बड़े तामझाम के साथ। यही सहारा का वह दौर था कि सहारा समय से जुड़ने पत्रकारिता जगत के महारथी नोएडा पहुंचे थे। इन लोगों को वहां पर न केवल विषम परिस्तिथि का सामना करना पड़ा था बल्कि जलालत भी झेलनी पड़ी थी। सहारा समय से जुड़े इन महारथियों में से मुख्य रूप से कुमार आनंद, मंगलेश डबराल और मनोहर नायक थे।

दरअसल 2004-05 के आसपास जब राष्ट्रीय सहारा के समूह गोविंद दीक्षित थे तो सहारा के चेयरमैन सुब्रत रॉय ने राष्ट्रीय सहारा को बंद करने के निर्णय ले लिया था। बताया जाता है निर्णय लिए जाने वाले मीटिंग में तत्कालीन समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह थे। तब अमर सिंह ने उन्हें उत्तर भारत में एक अख़बार की जरूरत है, कहकर सिटी संस्करण को रुकवा लिया था। जब ‘सहारा समय’ साप्ताहिक अख़बार निकलना शुरू हुआ तो उसके तीन कार्यकारी संपादक थे। कुमार आनंद, मंगलेश डबराल और मनोहर नायक। ये तीनों कार्यकारी संपादक समूह संपादक गोविंद दीक्षित को रिपोर्ट करते थे।  उस समय गोविंद दीक्षित को सहारा के चेयरमैन सुब्रत रॉय ने मीडिया की पूरी पॉवर दे रखी थी। गोविंद दीक्षित ही अखबार के सभी संस्करणों और पत्रिकाओं में छपी सामग्री के लिए जिम्मेदार और जवाबदेह  थे। सहारा समय के तीनों कार्यकारी संपादकों की पृष्ठभूमि देश के जाने माने अखबार जनसत्ता की थी।

दरअसल सहारा समय साप्ताहिक अख़बार को लेकर सुब्रत रॉय ने कुछ ज्यादा ही लम्बी योजना बना ली थी। हिंदी के बड़े आलोचक नामवर सिंह को भी सहारा समय से जोड़ा गया था। नामवर सिंह प्रिंट मीडिया के संपादकीय सलाहकार थे। उस समय सहारा में यह चर्चा थी कि हिंदी के चर्चित नामों के साथ अपनी अब तक की सबसे बड़ी टीम  तैयार करने में लगे हैं। सुब्रत रॉय यह सब निवेशकों को लुभाने के लिए करने जा रहे थे। सुब्रत रॉय देश में यह संदेश देना चाहते थे कि सहारा से पत्रकारिता और साहित्य क्षेत्र से भी नामी गिरामी लोग जुड़े हैं। उस समय सुब्रत रॉय हाउसिंग और रीयल एस्टेट सेक्टर में 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपये की पूंजी लगाने की बात करते थे।

यह वही समय था जब सुब्रत रॉय ने सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन और सहारा रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन कंपनी बनाकर लोगों को ठगने की योजना बनाई थी। ये दोनों वही कंपनी थी जिनके चलते ही सहारा सेबी विवाद चल रहा है। जिनके चलते सेबी ने सहारा पर शिकंजा कसा है। दरअसल उस समय सुब्रत रॉय ने हाउसिंग योजना में दस लाख से ज्यादा फ्लैट बुक कराने का टारगेट रखा था। यह तभी संभव था जब समाज में कंपनी की साख अच्छी हो। यह वजह रही कि राजनीतिक, खेल और फ़िल्मी हस्तियों के साथ ही सुब्रत रॉय पत्रकारिता और साहित्य जगत के नामी गिरामी लोग सहारा में ला रहे थे।

सुब्रत रॉय अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट के प्रति इतने उत्साहित थे कि जब ‘सहारा समय’, ‘सहारा टाइम’ और ‘आलमी सहारा’ साप्ताहिक संस्करणों का विमोचन हुआ तो उस दिन नोएडा सेक्टर-11 के सहारा परिसर में एक भव्य आयोजन किया था। क्योंकि सहारा समय में पत्रकारिता जगत के नामी गिरामी लोग थे तो साल भर के अंदर सहारा समय साप्ताहिक की हिंदी क्षेत्र में जबरदस्त पहचान बन गई। सामान्य ज्ञान के लिए उस समय युवा सहारा समय ढूंढ-ढूंढ पढ़ते थे। जैसा कि सहारा में काम से ज्यादा राजनीति होती है, ऐसा ही उस समय भी चल रहा था। समूह संपादक गोविंद दीक्षित और सहारा समय को लीड कर रहे कुमार आनंद के बीच 36 का आंकड़ा था। हर रोज बड़ा बवाल होने की आशंका बनी रहती थी। स्थिति यह थी कि दोनों एक-दूसरे नीचा दिखाने में लगे रहते थे। सुब्रत रॉय के करीबी रहने की वजह से गोविंद दीक्षित, कुमार आनंद पर भारी पड़ रहे थे।

दरअसल कुमार आनंद मजबूत राजनीतिक संपर्कों के बावजूद सहारा के अंदरुनी सहयोग नहीं जुटा पा  रहे थे। सहारा समय में सब कुछ अच्छा चल रहा था कि जनसत्ता में विष्णु खरे के नाम से नामवर सिंह को लेकर सुब्रत रॉय के यहां पानी भरने का हेडिंग लगाकर एक लेख प्रकाशित कर दिया गया। उस लेख में सुब्रत रॉय को रावण बताया गया था। विष्णु खरे का यह लेख छपते ही सहारा ग्रुप में बवाल हो गया। समूह संपादक गोविंद दीक्षित को सुब्रत रॉय ने तलब कर लिया। अगले ही दिन गोविंद दीक्षित ने सहारा समय से जुड़े लोगों की तगड़ी क्लास ली। गोविंद दीक्षित ने सहारा समय के स्टाफ से पूछा कि विष्णु खरे के लेख कौन छाप रहा है ? उस मीटिंग में गोविंद दीक्षित ने विष्णु खरे के लेख सहारा समय में छापने पर प्रतिबंध लगाने की बात कही। कुमार आनंद ने सुझाव दिया क्यों न ऐसे लेखकों की एक सूची बनाकर सारे प्रभारियों को सौंप दी जाए, जिन्हें हमें अपने प्रकाशनों में नहीं छापना है।


आनन फानन में ऐसे लेखकों-पत्रकारों की सूची बनाकर हर डेस्क इंचार्ज को सौंप दी गई, जिनके लेख या खबर सहारा समय नहीं जाने थे। इस सूची में हिदायत दी गई थी कि ये लेखक हमारे सहारा समय के प्रकाशनों में नहीं छपेंगे। वही होता जैसा की सहारा में होता आया है तुरंत इस सूची की एक प्रति जनसत्ता अखबार में पहुंचा गई। सहारा में इस बात का पता अगली सुबह तब चला जब जनसत्ता अखबार के फ्रंट पेज पर बॉटम न्यूज के रूप में ‘सहारा ने जारी की हिंदी लेखकों की ब्लैक लिस्ट’ हेडिंग के साथ प्रकाशित कर दी गई।

जनसत्ता में यह खबर क्या छपी कि सहारा ग्रुप में हड़कंप मच गया। सुब्रत रॉय ने कल्पना भी नहीं की होगी कि जिन नामी गिरामी लोगों पर वह मोटा खर्च कर रहे हैं वे लोग उनका नाम बड़ा करने के बजाय एक बड़ी बदनामी का सबब जाएंगे। तब इस सूची बनाने पर भी जमकर सवाल उठे थे।

बताया जाता है कि तब शक की सुईं मंगलेश डबराल, मनोहर नायक, अरिहन जैन, मनोज चतुर्वेदी, वेंकटेश, प्रेम और चंद्रभूषण ओर घूमी थी। दरअसल शुक्रवार की रात सहारा समय साप्ताहिक अख़बार प्रेस में जाता था। उस दिन पूरे दिन ऑफिस में अफरा तफरी रही। पहले गोविंद दीक्षित ने घोषणा की कि जो इस खेल में लिप्त पाया गया, उसको तत्काल नौकरी छोड़कर जाना होगा। जनसत्ता प्रकरण में गोविंद दीक्षित को समूह संपादक पद से हटाया भी गया और कुछ दिन बाद फिर से बहाल भी कर दिया गया। गोविंद दीक्षित ने फिर से आने के तुरंत बाद एक नोटिस जारी कर कुमार आनंद, मंगलेश डबराल और मनोहर नायक की सेवाएं समाप्त कर दीं और  नामवर सिंह का धन्यवाद ज्ञापित कर दिया। सहारा समय साप्ताहिक बंद कर फिर से राष्ट्रीय सहारा के क्षेत्रीय संस्करण शुरू कर दिए गए।  कुछ समय बाद गोविंद दीक्षित को भी समूह पद से हटाकर रणविजय सिंह को समूह संपादक बना दिया गया।

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