सहकर पीड़ा आदमी, हो जाता है धाम ।
राम गए वनवास को, लौटे तो श्रीराम ।।
रात हलाला नेक है, उठते नहीं सवाल ।
राम नाम की दक्षिणा, पर क्यों कटे बवाल ।।
मंदिर-मस्जिद बांटते, नफरत के पैगाम ।
खड़े कोर्ट में बेवज़ह, अल्ला औ’ श्रीराम ।।
भूल गए हम साधना, भूल गए हैं राम ।
मंदिर-मस्जिद फेर में, उलझे आठों याम ।।
बन जाते हैं शाह वो, जिनको चाहे राम ।
बैठ तमाशा देखते, बड़े-बड़े जो नाम ।।
वक्त न जाने कौन तू, वक्त बड़ा बलवान ।
भेजे वन में राम को, हरिश्चंद्र श्मशान ।।
जपते ऐसे मंत्र वो, रोज सुबह औ’ शाम ।
कीच-गंद मन में भरी, और जुबाँ पे राम ।।
उगते सूरज को करे, दुनिया सदा सलाम ।
नया कलेंडर साल का, लगता जैसे राम ।।
राम राज के नाम पर, कैसे हुए सुधार ।
घर-घर दुःशासन खड़े, रावण है हर द्वार ।।
डॉ. सत्यवान सौरभ