Saturday, April 27, 2024
Homeअन्यरानी खेड़ा में कूड़ा घर बनाने का विरोध

रानी खेड़ा में कूड़ा घर बनाने का विरोध

विद्या नन्द मिश्रा।

रानी खेड़ा में दिल्ली नगर निगम के करीब 50 एकड़ खाली ज़मीन पर कूड़ा घर बनाने के फैसले से इलाके के लोगों में खासा नाराजगी है। एलजी और एमसीडी के इस फैसले के खिलाफ इलाके के लोग सड़कों पर उतर आये हैं। स्थानीय लोग और जन प्रतिनिधियों का कहना है कि वे किसी भी कीमत पर अपने इलाकों को प्रदुषित नहीं होने देंगे, भले ही इसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े। पिछले कुछ दिनों से तंबुओं में धरना प्रदर्शन पर बैठे इन लोगों का कहना है कि प्रदेश सरकार उनके इलाकों में कोई विकास कार्य नहीं किया है। साथ ही स्वच्छता की ओर भी कोई ध्यान नहीं दे रहा है और अब गंदगी फैलाने में लगी है, जो वे किसी भी कीमत पर नहीं होने देंगे। इतना ही नहीं लोगों ने सख्त लहजे में प्रदेश सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि इस मामले में अगर सरकार जल्द ही कोई फैसला नहीं लेती है, तो वे और उग्र प्रदर्शन करेंगे। लोगों का आरोप है कि सरकार ने विकास के नाम पर उनसे उनकी खेती की जमीनें अधिग्रहण कर उन्हें बेरोजगार कर दिया, इलाके में विकास के नाम पर अभी तक कुछ भी नहीं किया और अब वह कूड़ा घर बनाकर उन्हें सब तरह से बर्बाद करना चाह रही है। क्योंकि अगर कूड़ा घर यहां बन गया तो इससे काफी प्रदूषण फैलेगा और उसका असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ेगा, जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।  साथ ही लोगों ने सवाल करते हुए कहा कि सरकार सफाई तो शहर में करती है और गांवों को क्यों कूड़े के ढेर में बदलना चाह रही है।

 

उत्तर-पश्चमी दिल्ली के सांसद डॉ उदित राज ने बताया कि इस मुद्दे को लेकर वे जल्द ही कोई ठोस कदम उठाएंगे और सरकार से बातचीत करेंगे। वहीं पार्षद जयेन्द्र कुमार डबास ने कहा कि वह उप-राज्यपाल अनिल बैजल से मुलाकात कर उन्हें समस्याओं से अवगत कराया है। साथ ही कई नेताओं और अधिकारियों से भी इस सिलसिले में बातचीत की है। वहीं इस मौके पर विभिन्न दलों के नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने एक स्वर में प्रदर्शनकारियों की मांग पर स्वर मिलाते नजर आये। सभी ने माना कि रानी खेड़ा में कूड़ा घर बनने से यहां के पर्यावरण और लोगों पर काफी दुष्प्रभाव पड़ेगा।

वहीं लैंडफिल साइट और पर्यावरण एक्सपर्ट का कहना है कि लैंडफिल साइट को वैज्ञानिक तरीके से विकसित किये बिना कूड़ा नहीं रखा जा सकता। क्योंकि कूड़े से जो गंदा पानी निकलता है, वह जमीन के अंदर जाएगा और इससे ग्राउंड वॉटर दूषित होने की पूरी संभावना है। इसका प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ेगा। बताते चलें कि लैंडफिल साइट पर कूड़ा परत दर परत रखा जाता है और प्रत्येक परत पर एक ऐसा चादर बिछाया जाता है, जिससे  कि कूड़ा नीचे न जाए। इसके अलावा जहां लैंडफिल साइट बनाया जाता है,  उसके ग्राउंड लेवल पर भी काफी कोटिंग की जाती है। लेकिन फिर भी इन स्थानों पर प्रदुषण का काफी खतरा रहता है।

गौरतलब है कि 1 सितंबर 2017 को गाजीपुर लैंडफील्ड में कूड़े का ढेर गिरने से हुए हादसे में 2 लोगों की मौत हुई थी, जबकि करीब 5 लोगों को मलबे से किसी तरह सुरक्षित निकाला गया था। इस घटना के बाद जहां एलजी अनिल बैजल ने गाजीपुर साइट में कूड़ा डालने से पूरी तरह मना कर दिया और इस समस्या को लेकर ईस्ट एमसीडी और अन्य एमसीडी के अफसरों के साथ मीटिंग की, जिसमें रानीखेड़ा में एमसीडी की 50 एकड़ खाली जमीन पर कूड़े को डंप करने का फैसला लिया गया। वहीं राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने दिल्ली सरकार, पूर्वी दिल्ली नगर निगम और अन्य संबंधित पक्षों को कारण बताओ नोटिस जारी किया। एनजीटी प्रमुख न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिल्ली सरकार और स्थानीय निकायों को अपने वैधानिक कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करने पर पूछा  कि न्यायाधिकरण के समय-समय पर जारी आदेशों का पालन क्यों नहीं किया गया। हालांकि पूर्वी दिल्ली नगर निगम के अधिकारी की मानें तो गाजीपुर लैंडफिल में क्षमता से कहीं अधिक कूड़ा जमा हो चुका था। इस जगह पर वर्ष 1984 में कूड़ा फेंकना शुरू किया गया था और इसकी क्षमता करीब 15 साल पहले ही पूरी हो चुकी थी, लेकिन फिर भी यहां कूड़ा फेंका जा रहा था, जिसके कारण यहां कूड़े का पहाड़ सा बना गया और यह हादसा हुआ। वहीं इस मामले को लेकर राजनीति भी शुरु हो गई है आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता दिलीप पांडेय ने कहा कि गाजीपुर की लैडफिल साइट की ऊंचाई करीब 45 मीटर है , जो पर्यावरण के नियमों के खिलाफ है। उन्होंने इसके लिए बीजेपी शासित नगर निगम को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि बीजेपी निगम में करीब 10 वर्षों से काबिज है, लेकिन फिर भी कचरा प्रबंधन के लिए अब तक कोई ठोस नीति तैयार नहीं कर पायी है। साथ ही उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने 3 वर्ष पहले ही डीडीए को राजधानी के कचरा के निष्पादन के लिए एक वैकल्पिक जमीन देने का आदेश दिया था, लेकिन आज तक डीडीए ने निगम को जमीन उपलब्ध नहीं कराई, जबकि डीडीए केंद्र सरकार के अधीन आता है।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments