Friday, May 17, 2024
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कल्याण जैन के न रहने पर!

राजकुमार जैन

 

अग्रज कल्याण जैन को हिंदुस्तान के सोशलिस्टो में, पूरे मुल्क में जाना जाता था। मध्यप्रदेश का जिक्र आने पर सोशलिस्ट और कल्याण जैन एक दूसरे के पर्याय बन जाते थे। तमाम उम्र बिना रुके, थके, डिगे कल्याण भाई हर जुल्म ज्यादती, बेइंसाफी गैर बराबरी, सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ते ही रहे।
समाजवादी परचम को फहराने का जज्बा इतना जबरदस्त की 85 साल की उम्र होने के बावजूद जब पिछले दिनों समाजवादी समागम की तरफ से इंदौर में सम्मेलन आयोजित किया गया, पूरी शिद्दत से वह सम्मेलन में शिरकत करने के साथ-साथ जब जलूस महात्मा गांधी के स्टैचू पर सजदा करने के लिए निकाला गया, सम्मेलन स्थल से काफी दूर बारिश के कारण सड़क पर जगह-जगह पानी भरने से कीचड़ से रपटने का अंदेशा, कल्याण भाई को मना करने के बावजूद वे हाथ में झंडा लेकर ‘इंकलाब जिंदाबाद गांधी लोहिया जयप्रकाश’ के नारे लगाते हुए पैदल चल रहे थे। कोई गुमान नहीं कि वह आदमी उस शहर की अजीम शख्सियत नगर निगम, विधानसभा, लोकसभा का सदस्य रह चुका है। परंतु एक कार्यकर्ता की तरह धीमी आवाज में इंकलाब के नारे लगाता हुआ जुलूस के आगे नहीं भीड़ के बीच में चल रहा था।
मेरी उनसे पहली मुलाकात 1968 में डॉ राम मनोहर लोहिया के इंतकाल के बाद समाजवादी युवजन सभा का राष्ट्रीय अधिवेशन इंदौर में आयोजित था, जिसमें किशन पटनायक अध्यक्ष तथा जनेश्वर मिश्रा महासचिव चुने गए थे। मुझे भी उसकी राष्ट्रीय समिति का सदस्य बनने का गौरव प्रदान हुआ था। उसी में कल्याण भाई से मुलाकात हुई थी। सोशलिस्ट तहरीक की इस लंबी यात्रा में कल्याण भाई की अनेकों यादें हैं। पार्टी के सम्मेलनों, जलसे जुलूसो मे लगातार बातचीत, विचार-विमर्श आंदोलन कैसे आगे बढ़े पर चर्चा होती रहती थी।
एक ऐसा नेता जिसकी रग रग में समाजवाद का सपना भरा रहता था।आज के माहौल में जब पार्टी, विचारधारा को सत्ता की चाह मैं कपड़े की तरह बदलने का दस्तूर जारी है लेकिन कल्याण भाई की 1960 से शुरू हुई समाजवादी यात्रा का अंतिम पड़ाव भी सोशलिस्ट झंडे के हलचक्र के निशान के साथ हुआ। हमें फख्र है उन पर, कि सोशलिस्ट तहरीक में ऐसे नायाब नेता रहे हैं।
मैं अपनी सिराज ए अकीदत पेश करता हूं।

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