पत्रिका संवाददाता, नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल कार्यालय के बीच कम हुई तल्खी एक बार फिर बढ़ती दिख रही है। इस बार टकराव की बुनियाद बनी है अफसरों की पगार। दरअसल, उपराज्पाल नजीब जंग ने दिल्ली सरकार के उस फैसले को मानने से इंकार कर दिया है, जिसमें दिल्ली अंडमान एंड निकोबार आइलैंड सर्विसेज (दानिक्स) अधिकारियों के वेतनमान में वृद्धि करने का फैसला किया गया था। उच्चपदस्थ सूत्रों ने बताया कि जंग ने दानिक्स अधिकारियों की तनख्वाह में समयबद्ध तरीके से वृद्धि किए जाने से संबंधित दिल्ली सरकार की फाइल दोबारा केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज दी है। मंत्रालय इससे पहले भी दिल्ली सरकार के इस फैसले को खारिज कर चुका है। आपको बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा फैसले को पलटे जाने के बाद भी दिल्ली मंत्रिमंडल ने पुराने फैसले पर दोबारा मुहर लगा दी थी और उसे मंजूरी के लिए उपराज्यपाल को भेज दिया था। दिल्ली सरकार ने बीते 11 अगस्त को लिए अपने फैसले में कहा है कि दानिक्स अधिकारियों के वेतनमान में उनकी सेवा के 13, 18 और 21 वर्ष पूरा करने के बाद आवश्यक रूप से वृद्धि की जानी चाहिए।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इससे पहले दिल्ली सरकार के फैसले को खारिज करते हुए लिखा था कि दानिक्स अधिकारियों के वेतनमान में किसी भी प्रकार की तब्दीली करने का हक दिल्ली सरकार को नहीं, बल्कि केंद्रीय गृह मंत्रालय को है। लिहाजा, दिल्ली सरकार का फैसला गलत है। इतना ही नहीं गृह मंत्रालय द्वारा यह भी कहा गया था कि इस मामले में कोई भी निर्णय केंद्रीय मंत्रिमंडल के माध्यम से ही लिया जाएगा। दिल्ली सरकार के फैसले से जहां करीब दो सौ दानिक्स अधिकारियों को राहत मिली थी, वहीं केंद्र सरकार के फैसले ने उनके सपनों को ध्वस्त कर दिया है। नियमानुसार इन्हें आठ साल की सेवा के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में प्रोन्नत कर दिया जाना चाहिए, लेकिन 27-28 वर्ष की सेवा के बाद कहीं जाकर इन्हें आईएएस बनाया जाता है। जाहिर तौर पर अपनी सेवा शर्तों को लेकर इनमें असंतोष रहा है। अपने वेतनमान को लेकर इनका यहां तक कहना है कि एक हेड क्लर्क की तनख्वाह एक दानिक्स अधिकारी के बराबर होती है। बताया जा रहा है कि केंद्र की दिक्कत यह है कि यदि इस फैसले को दिल्ली में लागू कर दिया गया तो अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में भी यही वेतनमान और अन्य सेवा-शर्तें लागू करनी पड़ेंगी।