Mission 2024 : आखिर विपक्ष को कैसे लामबंद कर पाएंगे मोदी की महिमामंडन करने वाले नीतीश कुमार ?
एनडीए में रहते हुए मोदी को लेकर कोई नहीं है टक्कर में कह चुके हैं बिहार के मुख्यमंत्री, बीच बीच में मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ते रहते हैं शरद पवार, बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस की आलोचना करते हैं ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल और अखिलेश यादव, मायावती के बिना कोई खास मायने नहीं रखती विपक्ष की लामबंदी, 17-18 मई को पटना में होने वाली है बैठक
चरण सिंह राजपूत
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फिर से विपक्ष की लामबंदी में जुट गए हैं। इस बार वह अपने प्रदेश की राजधानी पटना में विपक्ष की एकजुटता के लिए कार्यक्रम करने जा रहे हैं।

17-18 मई को पटना में होने वाली इस बैठक में एनसीपी प्रमुख शरद पवार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव, राजद नेता तेजस्वी यादव, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, वामपंथी नेता सीताराम येचुरी और डी राजा के आने की बात की जा रही है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब नीतीश के चेहरा विपक्ष में सबसे दमदार माना जा रहा था और विपक्ष उन्हें विपक्ष के नेता मान भी रहा था तो नीतीश कुमार बीजेपी की गोद में जा बैठे थे ।
गैर संघवाद देने के बावजूद उन्हें बीजेपी के साथ मिलने कोई कोई हिचकिचाहट नहीं हुई थी और एनडीए में शामिल होने के बाद मोदी की तारीफ में कहा था कि कोई नहीं है टक्कर में। ऐसे में वही विपक्ष के नेता हैं और वही सत्ता पक्ष है। नीतीश कुमार नेताओं के जवाब कैसे देंगे ? कैसे अपने को विश्वसनीय साबित करेंगे। नेताओं को तो एक बार जवाब दे भी देंगे जनता को कैसे देंगे ? नीतीश कुमार का क्या विश्वास है कि फिर से बीजेपी से नहीं मिलेंगे ? उधर जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री और मुफ़्ती महबूबा की अपनी महत्वाकांक्षा है।
वैसे भी बसपा मुखिया मायावती भले ही चुप्पी साधे बैठी हों पर मायावती के बिना विपक्ष की लामबंदी कोई खास मायने नहीं रखती है।
ऐसा ही हाल एनसीपी मुखिया शरद पवार का है। वह कई बार प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ चुके हैं। गत बजट सत्र में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद एलआईसी का पैसा डूबने की सूचना और अडानी ग्रुप के शेयर गिरने के बाद जब लोकसभा में विपक्ष ने जेपीसी की मांग की तो शरद पवार ने जेपीसी की मांग पर ही उंगली उठा कर विपक्ष के दबाव को कम कर दिया था। उसके बाद गौतम अडानी व्यक्तिगत रूप से शरद पवार से मिले थे। अडानी और शरद पवार की क्या क्या बातें हुईं किसी को नहीं पता चला।
ऐसे ही ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल और अखिलेश यादव कांग्रेस के बीजेपी पर दबाव बनाने पर कांग्रेस की ही आलोचना करने लगते हैं। वैसे भी ये सभी नेता प्रधानमंत्री पद की महत्वांकाक्षा पाले बैठे हैं। जहां तक तीसरे मोर्चे के बात है तो 1996 के बाद कितनी बार तीसरे मोर्चे की कवायद शुरू की गई पर तीसरा मोर्चा अमल में न आ सका। यदि आया तो फिर सरकार न बना सका। पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तो न केवल मीडिया को हाईजैक करे बैठे हैं बल्कि ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स को हथियार बनाये हुए हैं।
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