Monday, May 20, 2024
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Menstrual hygiene : मेंसुरल हाईजीन, फ्री सैनिटरी पैड.. सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों में यूनिफॉर्म पॉलिसी बनाने का दिया निर्देश

Supreme Court On Menstrual Hygiene: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (10 अप्रैल) को केंद्र सरकार को मेंसुरल (मासिक धर्म) हाईजीन पर एक समान राष्ट्रीय नीति लागू करने का निर्देश दिया है. इसमें छात्रों को मुफ्त सैनिटरी पैड दिया जाना भी शामिल है. भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिंहा और जेपी पारदीवाला की पीठ ने सभी राज्यों से स्कूलों में गर्ल्स टॉयलेट की उपलब्धता और मेंसुरल प्रोडक्ट/सैनिटरी पैड की आपूर्ति के बारे में जानकारी देने को कहा है.

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘केंद्र को सभी राज्यों के साथ मिलकर यह देखना चाहिए कि एक समान राष्ट्रीय नीति लागू की जाए ताकि राज्य समायोजन के साथ इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके. हम सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के सचिव, स्वास्थ्य मंत्रालय को निर्देश देते हैं कि वे चार सप्ताह के भीतर मेंसुरल हाईजीन पॉलिसी को अपने स्वयं के कोष से लागू करें.’

 

केंद्र सरकार ने कोर्ट में रखा पक्ष

भारत सरकार की तरफ से पेश हुईं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को बताया कि यदि राज्य मौजूदा नीतियों के बारे में जानकारी मुहैया कराएं तो केंद्र एक समान मॉडल पेश कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कक्षा 6 से 12 तक पढ़ने वाली प्रत्येक बालिका को मुफ्त सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने और सरकारी और आवासीय विद्यालयों में लड़कियों के शौचालयों के प्रावधान के निर्देश देने की मांग की गई है.

वकील वरिंदर कुमार शर्मा के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि अपर्याप्त मेंसुरल हाईजीन प्रबंधन शिक्षा के लिए एक बड़ी बाधा है. स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच की कमी, मासिक धर्म उत्पादों और मासिक धर्म से जुड़े सामाजिक व्यवहार के कारण कई लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं.

 

याचिका पर कोर्ट ने दिया निर्देश

 

याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा गठित मिशन संचालन समूह को राष्ट्रीय दिशानिर्देशों का पुनर्मूल्यांकन करने का निर्देश दिया. इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए कोर्ट ने स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव को भी नामित किया.

इसके पहले एक अप्रैल को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और जल शक्ति मंत्रालय ने हलफनामा दायर कर कोर्ट को सूचित किया था कि मौजूदा नीतियों को लागू करना राज्यों का काम है.

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