आज का दिन

मधु लिमये: जिन्होंने सबको संसद में बोलना सिखाया

By अपनी पत्रिका

January 08, 2021

आज का दिन / नेहा राठौर  Jan 8 , 2021

8 जनवरी हम आज बात कर रहे है, समाजवादी आंदोलन के नेताओं में से एक मधु लिमये की, यह वही शक्ख है जिनसे समाजवादी नेताओं को भी डर लगा रहता था। साठ- सत्तर के दशक का एक ऐसा इंसान, जो कागजों का बंडल बगल में दबाए जब भी संसद में आता था तो ट्रेजरी बेंच पर बैठने वालें भी दांत पीसने लगते थे कि न जाने आज किसकी शामत आने वाली है।

8 जनवरी यानी आज मधु लिमये की पूण्य तिथि है। मधु लिमये का जन्म 1 मई 1922 को हुआ था। वे आपने जीवन में कई बार जेल गए। स्वाधीनता संग्राम में चार साल यानी 1940 से 1944 तक, गोवा मुक्ती आंदोलन में पुर्तगालियों के अधीन 19 महीने और आपातकाल में भी 19 महीने जेल में रहे। लिमये ने अपने जीवन के कई साल अलग-अलग जेलों में बिताए। वह लोकसभा के सदस्य भी थे, लेकिन लिमये इंदिरा गांधी के पांचवा सत्र बढ़ाए जाने के विरोध में थे। इसलिए उन्होंने उस समय लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।

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लिमये को प्रश्न काल और शून्य काल का अनन्य स्वामी माना जाता है। उन्होनें सबको सिखाया कि संसद में कैसे बहस की जाती है। जब भी संसद में लिमये बोलते थे तो सब उन्हें एकटक देखते रहते थे। सबके मन में जिज्ञासा रहती थी कि लिमये अब क्या नया निकालेगें अपने पिटारे से और वो किसके सिर पर फुटेगा। इसीलिए कई लोग उनके खिलाफ थे।

लिमये के बारे में बस इतना ही नहीं है, आगर उनकी रूचियों की सूची बनाई जाए तो बहुत लंबी तैयार होगी। सबसे ऊपर संगीत आता है। लिमये संस्कृत भाषा के ज्ञाता थे। लिमये महाभारत पर तो अपना अधिकार ही समझते थे। वह संगीत व नृत्य की बारीकियों को बहुत अच्छे से समझते थे। फ़िज़ूलखर्ची के खिलाफ थे। वे संसद सदस्यों के लिए दी जाने वाली पेंशन के भी खिलाफ थे। उन्होंने अपनी पत्नी से भी यही कहा कि मेरे मरने के बाद तुम भी पेंशन नहीं लेना। वह कहते थे कि उनकी पत्नी हमेशा दूसरी श्रेणी के वाहन में ही यात्रा करती थीं। लिमये इतने नैतिकतावादी थे कि जैसे ही इंदिरा गांधी के संसद के पांच साल पूरे हुए तभी उन्होनें अपनी पत्नी को जेल में बैठे- बैठे पत्र लिखा और कहा की अभी के अभी सरकारी आवास को खाली करो। 8 जनवरी 1995 को उन्होंने आख़िरी सांस ली।  

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