Wednesday, May 15, 2024
Homeअन्यJubilee Special :  हरिशंकर परसाई ने लेखन में व्यंग्य की विधा को...

Jubilee Special :  हरिशंकर परसाई ने लेखन में व्यंग्य की विधा को चुना

नीरज कुमार 
मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में 22 अगस्त, 1922 को जन्मे हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) की प्रारम्भिक शिक्षा जमानी नामक गांव में हुई थी । गांव से शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे नागपुर चले आए थे। नागपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने एम. ए. अंग्रेजी की परीक्षा पास की. कुछ दिनों तक उन्होंने अध्यापन कार्य भी किया। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्र लेखन प्रारंभ कर दिया। उन्होंने जबलपुर से साहित्यिक पत्रिका ‘वसुधा’ का प्रकाशन भी किया, परन्तु घाटा होने के कारण इसे बंद करना पड़ा।

सामान्य-जन को प्रगतिशील जीवन-मूल्यों के प्रति सचेत एवं समाज-राजनीति में व्याप्त पाखण्ड को उद्घाटित करने का जितना कार्य यथार्थवादी लेखक प्रेमचंद ने किया उतना कार्य पिछले पचास सालों में प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) को छोड़कर हिन्दी के किसी लेखक या रचनाकार ने नहीं किया।
स्वतन्त्रता से पहले सामाजिक और राजनैतिक विफलताओं के लिए हम प्रेमचंद को याद करते हैं, लेकिन स्वतन्त्रता के बाद जब भी हमारे जीवन मूल्यों के विघटन का इतिहास लिखा जाएगा तो वहां हरिशंकर परसाई का साहित्य सन्दर्भ-सामग्री का काम करेगा।

देश के जागरूक प्रहरी के रूप में पहचाने जाने वाले हरिशंकर परसाई ने लेखन में व्यंग्य की विधा को चुना, क्योंकि वे जानते थे कि समसामयिक जीवन की व्याख्या, उनका विश्लेषण और उनकी भर्त्सना एवं विडम्बना के लिए व्यंग्य से बड़ा कारगर हथियार और दूसरा हो नहीं सकता, उनकी भाषा-शैली में ख़ास किस्म का अपनापन है, जिसे पढ़कर हम ठीक वैसे ही नहीं रह जाते जैसे हम कोई सामान्य सी किताब पढ़ते हैं।

हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai ) की खूबी थी कि वह खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को बहुत ही जल्दी पकड़ लेते थे। परसाई ने उस समय के सामाजिक और राजनैतिक विफलताओं पर विवेकपूर्ण कटाक्ष किए।
उनकी अधिकतर रचनाएं सामाजिक राजनीति, साहित्य, भ्रष्टाचार, आजादी के बाद का ढोंग, आज के जीवन का अन्तर्विरोध, पाखंड और विसंगतियों पर आधारित है।  उनके लेखन का तरीका मात्र हंसाता नहीं वरन् आपको सोचने को बाध्य कर देता है। परसाई ने सामाजिक और राजनीतिक यथार्थ की जितनी समझ और तमीज पैदा की उतनी हमारे युग में कोई और लेखक नहीं कर सका है। अपनी हास्य व्यंग्य रचनाओं से सब कुछ कह देने वाले हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai ) ने 10 अगस्त, 1995 को दुनिया छोड़ दी।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments