Saturday, May 18, 2024
Homeअन्यहर जगह हिंदू राष्ट्रवाद को घुसाना संकुचित मानसिकता का द्योतक  

हर जगह हिंदू राष्ट्रवाद को घुसाना संकुचित मानसिकता का द्योतक  

“कल्याण ” मासिक पत्रिका काफी पुरानी और गोरखपुर से निकलने वाली साथ ही भारत की सबसे पुरानी धार्मिक पत्रिका है। इसको जिसने जिस चस्मा से देखा है उसको धार्मिक ही माना जाएगा। मैं तो ये पूछता हूं कि इस तरह की धार्मिक पुस्तक निकालना या फिर विभिन्न लेखकों के विचार उनके अपने होते हैं। इसमें क्या गलत है? हर जगह हिंदू राष्ट्रवाद को घुसाना संकुचित मानसिकता का द्योतक है। पुराने समय के आलेख का अस्पृश्यता और शूद्र को दिखाना क्या समाज को जोड़ने की बजाय तोड़ने की ओर इंगित करना नहीं है?

बाद के और हाल के कई लेख में कल्याण में गाँधी के विचारों का उलेख किया मिलता है, इसका ये मतलब नहीं है कि इस गोरखपुर के पुराने प्रेस को सम्मान ना मिले। मुकुल के विचार काफी संकुचित और धर्म विरोधी हैं। गीता प्रेस में हिंदुओं की बात नहीं लिखी जायेगी तो फिर किसकी बात होगी?
गीता प्रेस ने आजादी के आंदोलन में भी अपनी भूमिका निभाई है। केवल लेखनी के माध्यम से अब अगर कोई इसे हिंदू हिंदू कहता है तो इसका इलाज क्या है? कल्याण के किसी किसी लेख में शुद्र और जातिगत आलोचनात्मक टिप्पणी किया है। इन्हीं बातों को लेकर लेखक महोदय ने बिना बात की टिप्पणी की है। मोदी जी का विरोध  करना है तो इसके तरीके अलग हो सकते हैं लेकिन ये कोई विरोध का तरीका नहीं होता है। सरस्वती सम्मान मिलने से घर की प्रतिष्ठा बढ़ी है और इसको इसी नजर  से देखा जाना चाहिए। मोदी जी के कारनामों का मैं भी विरोध करता हूं लेकिन इस तरह का नहीं।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments