भारत के मिसाइल मैन और जनता के राष्ट्रपति थे कलाम

नई दिल्ली भारत के ‘मिसाइल मैन’ के रूप में लोकप्रिय डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम बेहद साधारण पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखते थे तथा जमीन और जड़ों से जुड़े रहकर उन्होंने ‘‘जनता के राष्ट्रपति’’ के रूप में लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बनायी थी। समाज के सभी वर्गों और विशेषकर युवाओं के बीच प्रेरणा स्रोत बने डॉ. कलाम ने राष्ट्राध्यक्ष रहते हुए राष्ट्रपति भवन के दरवाजे आम जन के लिए खोल दिए जहां बच्चे उनके विशेष अतिथि होते थे।

एक सच्चे मुसलमान और एक नाविक के बेटे एवुल पाकिर जैनुलाबद्दीन अब्दुल कलाम ने 18 जुलाई 2002 को देश के 11वें राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला और उन्हें एक ऐसी हस्ती के रूप में देखा गया जो कुछ ही महीनों पहले गुजरात के सांप्रदायिक दंगों के घावों को कुछ हद तक भरने में मदद कर सकते थे। देश के पहले कुंवारे राष्ट्रपति कलाम का हेयर स्टाइल अपने आप में अनोखा था और एक राष्ट्रपति की आम भारतीय की परिभाषा में फिट नहीं बैठता था लेकिन देश के वह सर्वाधिक सम्मानित व्यक्तियों से एक थे जिन्होंने एक वैज्ञानिक और एक राष्ट्रपति के रूप में अपना अतुल्य योगदान देकर देश सेवा की। अत्याधुनिक रक्षा तकनीक की भारत की चाह के पीछे एक मजबूत ताकत बनकर उसे साकार करने का श्रेय डॉ. कलाम को जाता है और देश के उपग्रह कार्यक्रम, निर्देशित और बैलेस्टिक मिसाइल परियोजना, परमाणु हथियार तथा हल्के लड़ाकू विमान परियोजना में उनके योगदान ने उनके नाम को हर भारतीय की जुबां पर ला दिया।

पन्द्रह अक्तूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में पैदा हुए कलाम ने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी से स्नातक करने के बाद भौतिकी और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का अध्ययन किया और फिर उसके बाद रक्षा शोध एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) से जुड़ गए। रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र में शोध पर ध्यान केंद्रित करने वाले डॉ. कलाम बाद में भारत के मिसाइल कार्यक्रम से जुड़ गए। बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण वाहन तकनीक में उनके योगदान ने उन्हें ‘‘भारत के मिसाइल मैन’’ का दर्जा प्रदान कर दिया। भारत रत्न समेत कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किए गए कलाम ने 1998 में भारत द्वारा पोखरण में किए गए परमाणु हथियार परीक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उस समय वाजपेयी सरकार केंद्र की कमान संभाल रही थी। शाकाहारी कलाम के हवाले से एक बार कहा गया था कि उन्होंने भारत में कई तकनीकी पहलुओं को आगे बढ़ाया और उसी प्रकार वह खुद भी ‘‘मेड इन इंडिया’’ थे जिन्होंने कभी विदेशी प्रशिक्षण हासिल नहीं किया।
कलाम ने केआर नारायणन से राष्ट्रपति पद की कमान संभाली थी और वह 2002 से 2007 तक देश के सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रपति रहे। राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में उनका मुकाबला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की क्रांतिकारी नेता लक्ष्मी सहगल के साथ था और वह इस एकपक्षीय मुकाबले में विजयी रहे। उन्हें राष्ट्रपति पद के चुनाव में सभी राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल हुआ था। राष्ट्रपति पद पर आसीन होने के साथ ही वह राष्ट्रपति भवन के सम्मान को नयी ऊंचाइयां प्रदान करने वाले पहले वैज्ञानिक और पहले कुंआरे बन गए। बतौर राष्ट्रपति अपने कार्यकाल में कलाम को 21 दया याचिकाओं में से 20 के संबंध में कोई फैसला नहीं करने को लेकर आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा। कलाम ने अपने पांच साल के कार्यकाल में केवल एक दया याचिका पर कार्रवाई की और बलात्कारी धनंजय चटर्जी की याचिका को नामंजूर कर दिया जिसे बाद में फांसी दी गयी थी।

उन्होंने संसद पर आतंकवादी हमले में दोषी करार दिए जाने के बाद मौत की सजा पाने का इंतजार कर रहे अफजल गुरु की दया याचिका पर फैसला लेने में देरी को लेकर अपने आलोचकों को जवाब दिया और कहा कि उन्हें सरकार की ओर से कोई दस्तावेज नहीं मिला। गुरु को बाद में फांसी दे दी गयी थी। बिहार में वर्ष 2005 में राष्ट्रपति शासन लगाने के विदेश से लिए गए अपने विवादास्पद फैसले पर भी कलाम को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। हालांकि उन्होंने यह कहते हुए आलोचनाओं को खारिज कर दिया कि उन्हें कोई अफसोस नहीं है। कलाम ने लाभ के पद संबंधी विधेयक को मंजूरी देने से इंकार करके यह साबित कर दिया था कि वह एक ‘रबर स्टैम्प’ संवैधानिक प्रमुख नहीं हैं। यह उनकी ओर से एक असंभावित कदम था जिसने राजनीतिक गलियारों विशेष रूप से कांग्रेस और उसके वामपंथी सहयोगियों के पैरों तले की जमीन खिसका दी थी। अगले दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राष्ट्रपति को यह मामला समझाने गए और किसी प्रकार ‘अयोग्यता निवारण (संशोधन) विधेयक 2006’ पर उनकी मंजूरी हासिल की। अपनी अनोखी संवाद कुशलता के चलते कलाम अपने भाषणों और व्याख्यानों में छात्रों को हमेशा शामिल कर लेते थे। व्याख्यान के बाद वह अक्सर छात्रों से उन्हें पत्र लिखने को कहते थे और प्राप्त होने वाले संदेशों का हमेशा जवाब देते थे। मिसाइल कार्यक्रम में उनके योगदान के लिए उन्हें 1997 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उन्हें 1981 में पद्म भूषण और 1990 में पद्म विभूषण प्रदान किया गया। राष्ट्रपति पद पर अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद से कलाम शिलांग, अहमदाबाद और इंदौर के भारतीय प्रबंधन संस्थानों तथा देश एवं विदेश के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में अतिथि प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थे। उन्होंने ‘‘विंग्स आफ फायर”, ‘इंडिया 2020’ तथा ‘इग्नाइट माइंड’ जैसी कई पुस्तकें भी लिखीं जो काफी सराही गयीं। कलाम के पिता के पास कई नौकाएं थीं जिन्हें वह स्थानीय मछुआरों को किराए पर देते थे लेकिन उन्होंने अपना खुद का कॅरियर समाचारपत्र विक्रेता के रूप में शुरू किया था।

 

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