Thursday, May 2, 2024
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जब डॉ. वेद प्रताप वैदिक की पीएचडी की थीसिस के लिए संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के लोकसभा सदस्यों ने मचा दिया था तूफान

राजकुमार जैन

तकरीबन 50 साल पहले दिल्ली के सप्रू हाउस लाइब्रेरी कैंटीन में, वैदिक जी मैं और दो मित्र गपशप कर रहे थे। सहसा एक साथी ने पूछा वैदिक भाई एक बात बताओ, तुम जनसंघी हो या सोशलिस्ट? उन्होंने कहा, ऐसे समझो कि जनसंघ पत्नी है, और सोशलिस्ट प्रेमिका। बात वैदिक जी ने मजाक में कही थी, परंतु इससे उनके अंदर की सच्चाई सामने आ गई थी। मूलतः वह संघी विचारधारा वाले थे। परंतु उनकी पीएचडी की थीसिस हिंदी में लिखी होने के कारण जेएनयू में जांची नहीं जा रही थी।

तब डॉ. राममनोहर लोहिया संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के लोकसभा सदस्यों ने तूफान मचा दिया था, जिसके कारण उनको पीएचडी की सनद हासिल हुई। इस कारण उनका सोशलिस्ट नेताओं से निकटता का संपर्क स्थापित हो गया। मेरा उनसे संपर्क 1966 -67 में अंग्रेजी हटाओ आंदोलन में हुआ था। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के बाहर सीमेंट से अंग्रेजी में बने हुए नामपट को तोड़ने में वे भी शामिल थे। इस बात का जिक्र बिना भूले वह हमारी हर कॉमन मीटिंग में करते थे। अपने लेखन में वह भरसक प्रयत्न करते थे कि मैं सरकार परस्त ना लगू। कड़ी आलोचना भी करते थे परंतु सार, सत्ता की पक्षधरता ही निकलता था। लिखते वक्त वे तारीख, तथ्यों, घटनाक्रमों के बारे में सचेत रहते थे। परंतु भाषण से लेकर निजी बातचीत में बड़ी संजीदगी, करीने और चाशनी से डूबे शब्दों में किस्से गढ़ने मे भी उनको महारत हासिल थी।
निजी संबंधों की मिठास उनमें हमेशा टपकती थी।पिछले दिनों मुझे टेलीफोन पर उन्होंने कहा कि तुम मेरे यहां रहने आ जाओ। सैकड़ों गमलों में तरह-तरह के फूलों की सुगंध, पौष्टिक भोजन के साथ -साथ बतियाए’गे।
उनके जाने से पत्रकारिता, बौद्धिक जगत, तथा खुलूस, मोहब्बत वाले साथी की कमी होना स्वाभाविक है। मेरी संवेदना उनकी पुत्री, पुत्र एवं परिवार के अन्य जन के साथ है।

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