Saturday, July 27, 2024
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सुंदरलाल बहुगुणा कैसे बने “चिपको आंदोलन” की नींव

आज का दिन (नेहा राठौर) 9 जनवरी

आज के दिन यानी 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के टिहरी में उस व्यक्ति का जन्म हुआ था, जिसे दुनिया उसके नाम से नहीं बल्कि उसके काम से जानती है। हम बात कर रहे है सुंदरलाल बहुगुणा की, ये वही शक्स हैं जिन्होंने “चिपको आंदोलन” में अहम भूमिका निभाई थी।

आज प्रदूषण से होने वाली तबाही को हम सब जानते है। लेकिन उसके लिए आवाज कोई नहीं उठाना चाहता। कुछ गिने-चुने लोग ही इस मुहिम में शामिल होने की हिम्मत रखते हैं। कुछ ही लोग होते हैं जो पर्यावरण को बचाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। ऐसा ही कुछ व्यक्तित्व सुंदरलाल बहुगुणा का था। वह गांधी जी के पक्के अनुयायी थे और उन्होंने अपना एक मात्र लक्ष्य पर्यावरण की रक्षा करने का तय कर लिया था

सुंदरलाल ने राजनीति में भी कदम रखा था। उन्हें राजनीति में जाने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने प्रेरित किया था। सुमन भी गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे। उन्होंने गांधी जी से सीखा की कैसे अहिंसा के मार्ग पर चलकर समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। उन्होंने अपनी पढ़ाई लाहौर में पुरी की थी।

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23 साल की उम्र में उनकी शादी विमला देवी से हुई। उसके बाद उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया और पहाड़ियों के बीच एक गांव में आश्रम खोला। वहां रहकर उन्होंने सिर्फ चिपको आंदोलन ही नहीं बल्कि और भी कई आंदोलन किए। सुंदरलाल ने मंदिरों में हरीजनों के प्रवेश के अधिकार के लिए आंदोलन और टिहरी के इलाकों में शराब के खिलाफ भी मोर्चा किया।

चिपको आंदोलन

बचपन में इस आंदोलन के बारे में किताबों में जरूर पड़ा होगा। पर्यावरण सुरक्षा के लिए 1970 से शुरु हुए  आंदोलन। धीरे-धीरे पूरे भारत में फेल गए। चिपको आंदोलन भी इन्हीं में से एक था। गढ़वाल हिमालय के पेड़ों को काटने के खिलाफ शांति से आंदोलन आगे बढ़ रहे थे। लेकिन 24 मार्च 1974 को चमोली जिले की ग्रामीण महिलाएं पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो गई। जब ठेकेदार के आदमी पेड़ो को काटने आए। सुंदरलाल ने 80 के दशक की शुरूआत में करीब 5000 किलोमीटर की यात्रा की थी। उन्होंने कई गाँवों के दौरे किए और गांव वालो को पर्यावरण सुरक्षा का महत्व समझाया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी मुलाकात की और पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का अनुरोध किया।

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सुंदरलाल ने टिहरी पर बांध के लिए भी आंदोलन किया था। उन्होंने बांध के लिए डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी। उस समय प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिम्हा राव थे। सालों के आंदोलन के बाद आखिरकार बांध बनाने का काम शुरू किया गया। सुंदरलाल का मानना था कि अगर बांध नहीं बना तो टिहरी के जंगल बर्बाद हो जाएंगे। बांध एक बार को भूकंप को सह सकता है लेकिन पहाड़ियां नहीं सह पाएंगी। पहाड़ियों में पहले से ही दरार पड़ी हुई है। अगर ये बांध टूट गया तो पूरा बुंदेलशहर तक का इलाका डुब जाएगा। सुंदरलाल ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण सुरक्षा में लगा दिया। 

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