झूठों के दरबार में, सच बैठा है मौन !
घेरे घोर उदासियाँ, सुनता उसकी कौन !!
कुछ सिक्कों के तोल में, बिकने लगी जुबान !
वकील,गवाह,जज बिके, कचहरी ज्यों दुकान!!
ज़ीरों ले बाबू हुए, काटे मेरिट घास !
डिग्री पैसों में बिके, ज्ञान हुआ बकवास !!
आँखें-गुर्दे सब बिके, लगे भाव भरपूर !
परचूनी दूकान हुआ, बेचारा मजदूर !!
कैसी ये सरकार है, कैसा है कानून !
करता नित ही झूठ है, सच्चाई का खून !!
बदले सुर में गा रहे, अब शादी के ढोल !
दूल्हा कितने में बिका, पूछ रहे हैं मोल !!
अपराधी अब छूटते, तोड़े सभी विधान !
निर्दोषी हैं जेल में, शर्मिन्दा संविधान !!
डॉ. सत्यवान सौरभ