Pawan Kumar
भीमराव रामजी आंबेडकर, डॉ बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, समाजसेवी ,राजनीतिक, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, शिक्षाविद, धर्म शास्त्री, इतिहासविद, प्रोफेसर, प्रभावशाली संपादक, प्रकाशक, अच्छे पाठक एवं बहुत अच्छे लेखक थे।
आंबेडकर जी ने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। उन्होंने हमेशा मजदूरों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया था।आंबेडकर जी दलितों के सर्वप्रथम संपादक ,संस्थापक एवं प्रकाशक थे।
उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक डी एस सी प्रबंध द प्रॉब्लम ऑफ द रूपी, इट्स ओरिजिन एंड इट्स सलूशन से भारत के केंद्रीय बैंक यानी भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुई।
उनके पिता का नाम रामजी राव मालोजी सकपाल और माता भीमाबाई इनका जन्म 14 अप्रैल 1891 महू मध्य प्रांत ब्रिटिश भारत, (अब – डॉ आंबेडकर नगर मध्य प्रदेश भारत) में हुआ था। अंबेडकर जी अपने भाई बहनों में माता-पिता की 14वी अंतिम संतान थे,उनका परिवार कबीर पंथ को मानने वाला मराठी मूल का था, वह हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे जो तब अछूत कही जाती थी इसी कारण उन्हें आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव सहन करना पड़ता था, भीमराव अंबेडकर जी के पूर्वज लंबे समय से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में सेना में कार्यरत थे, और इनके पिताजी रामजी राव सतपाल जी भारतीय सेना की बहू छावनी में सेवारत थे यह काम करते-करते वे सूबेदार पद पर पहुंचे थे,आंबेडकर जी ने मुंबई विश्वविद्यालय से बी ए, कोलंबिया विश्वविद्यालय लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स (एम, एस,सी ,डी ,एस,सी)(वेबस्टर एट, ली,)की शिक्षा प्राप्त की। इनका विवाह 15 वर्ष की आयु में,9 वर्ष की लड़की रमाबाई से करा दी गई है तब वे अंग्रेजी की पांचवी कक्षा में पढ़ते थे उन दिनों भारत में बाल विवाह का प्रचलन था। रमाबाई और अंबेडकर जी का साथ 1906 से 1935 तक केवल 29 वर्ष ही रहा लंबी बीमारी के कारण रमाबाई अंबेडकर का निधन हो गया। उसके बाद उन्होंने डॉक्टर शारदा कबीर से शादी कर ली जिनको बाद में डॉक्टर सविता अंबेडकर नाम से जाना गया, जिनको माई या माई साहेब भी कहा जाता था।
अंबेडकर जी ने व्यवसाय के रूप में वकालत ,प्रोफेसर एवं राजनीति को चुना।
और पेशे के रूप में विधि व्यक्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद। धर्म शास्त्री, इतिहासविद, प्रोफेसर, संपादक,। उन्होंने बौद्ध धम्म ग्रंथ की रचना की। अंबेडकर जी विपुल प्रतिभा के छात्र थे उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की तथा विधि० अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में शोध कार्य भी किए थे।अंबेडकर जी ने सारा जीवन राजनीतिक अधिकारों की वकालत और दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत की। भारत के निर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने अपने जीवन काल एवं मरणोपरांत कई पुरस्कार प्राप्त किए जिनमें -जिसमें बोद्धिसत्व (1956), भारत रत्न ( देश का सर्वोच्च नागरिक) (1990),ऑफ ईयर टाइम (2004), द ग्रेट इंडियन (2012)।
अंबेडकर जी की विरासत के रूप में लोकप्रिय संस्कृति में कई स्मारक और चित्रण शामिल हैं। विशेषज्ञों की माने तो हिंदू पंथ में व्याप्त कुरीतियों और छुआछूत की प्रथा से तंग आकर 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था। 14 अप्रैल को उनका जन्मदिन आंबेडकर जयंती के तौर पर भारत समेत दुनिया भर में मनाया जाता है। अंबेडकर जी एक अच्छे पाठक के साथ-साथ एक अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने अपने घर राजगृह में एक संग्रह ग्रंथालय का निर्माण किया था जिसमें लगभग 50000 से भी अधिक किताबें थी उन्होंने अपने लेखन द्वारा दलितों के हित की समस्याओं पर प्रकाश डाला उनके द्वारा लिखे महत्वपूर्ण ग्रंथों में आन्हिलेशन ऑफ कास्ट, बुद्ध हिज धम्म, कास्ट इन इंडिया, हु वेयर द शुद्धराज?, रिडल्स इन हिंदुइज्म, आदि शामिल है। 32 किताबेंऔर मोनोग्राफ (22 पूर्ण तथा 10 अधूरी किताबें, 10 ज्ञापन ,साक्ष्य और वक्तव्य, 10 अनुसंधान दस्तावेज,लेखों और पुस्तकों की समीक्षा एवं 10 प्रस्तावना और भविष्यवाणियां उनकी अंग्रेजी भाषा की रचनाएं है। उन्हें 11 भाषाओं का ज्ञान था मराठी भाषा मातृभाषा अंग्रेजी, हिंदी ,पाली,संस्कृत ,गुजराती , जर्मन, फारसी ,फ्रेंच ,कन्नड़ ,और बंगाली, भाषा भी शामिल है। अंबेडकर जी असामान्य प्रतिभा के धनी थे।
पढ़ाई में सक्षम होने के बाद भी उन्हें सामाजिक प्रतिरोध झेलना पड़ता था, 7 नवंबर 1900 को रामजी सकपाल ने सातारा के गवर्नमेंट हाई स्कूल में अपने बेटे का नाम भीवा रामजी आंबड़वेकर दर्ज कराया था उनका बचपन का नाम भीवा था,भीवा रामजी का उप नाम सकपाल की जगह आंबड़वेकर लिखवाया था जो कि उनके गांव आंबडवे से लिया था।बाद में एक देवरूखे ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा केशव आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे उन्होंने उनके नाम से आंबडबेकर हटाकर अपना सरल आंबेडकर उपनाम जोड़ दिया तब से आज तक वह आंबेडकर नाम से जाने जाते हैं। उनके डी,एस,सी प्रबंध ,द प्रॉब्लम ऑफ द रूपी, इट्स ओरिजिन एंड इट्स सलूशन से भारत के केंद्रीय बैंक यानी भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुई। अंबेडकर जी के संपूर्ण लेखन साहित्य महाराष्ट्र सरकार के पास सुरक्षित है जिनमें से अधिक से अधिक साहित्य प्रकाशित नहीं किए गए उनके अप्रकाशित साहित्य से 45 से अधिक खंड रखे हैं ।
पूना पेक्ट (The poona pact in hindi)ये वो समय था जब देश के दो महानायक आमने सामने थे एक तरफ बाबा साहब भीमराव आंबेडकर और दूसरी तरफ महात्मा गांधी, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी दलित वर्गों के लिए एक अलग निर्वाचक मंडल के पक्ष में थे। और यह उनके द्वारा प्रथम गोलमेल सम्मेलन में निर्धारित किया गया था गोलमल सम्मेलन में आंबेडकर जी एक मात्र व्यक्ति थे जो भारत से दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, गांधीजी इस विचार के खिलाफ थे, पीएम मैकडॉनाल्ड ने अल्पसंख्यकों और दलित वर्ग को सांप्रदायिक पुरस्कार देने का फैसला किया था, गांधी जी ने प्रधान मंत्री मैकडॉनल्ड को एक पत्र लिखकर इस फैसले के विरोध में पुणे यरवदा सेंट्रल जेल में ही 20सितंबर 1932 को अनशन शुरू कर दिया था। गांधीजी इस फैसले के खिलाफ थे क्योंकि वह अछूतों को हिंदू धर्म के दायरे से बाहर नहीं देखना चाहते थे। अंबेडकर जी के अनुसार दलित वर्ग के अधिकार राजनीतिक स्वतंत्रता की तुलना में सबसे महत्वपूर्ण थे। जबकि गांधीजी दो तरफा लड़ाई लड़ रहे थे एक भारत की स्वतंत्रता के लिए दूसरा हिंदू समाज की एकता बनाए रखने के लिए। गांधीजी की हालत खराब होने लगी तब डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद व मदन मोहन मालवीय जी के प्रयास से गांधी जी और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के बीच में एक समझौता हुआ जिसे पूना समझौता (पूना पैक्ट) The poona pact in hindi के नाम से जानते हैं। इस समझौते में दलित वर्ग के लिए प्रथक निर्वाचक मंडल को समाप्त कर दिया गया,ओर दलित वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या प्रांतीय विधान मंडल 71से बढ़ाकर 148 ओर केंद्रीय विधायिका में कुल सीटों की संख्या का 18%कर दी गई।
पत्रकारिता अंबेडकर जी एक सफल पत्रकार एवं प्रभावी संपादक थे अखबार के माध्यम से समाज में उन्नति होगी इस पर उन्हें विश्वास था वह आंदोलन में अखबार को महत्वपूर्ण मानते थे उन्होंने शोषित एवं दलित समाज को जागरूक करने (जागृति लाने) के लिए कई पत्र एवं पांच पत्रिका का प्रकाशन एवं संपादन किया इससे उनके दलित आंदोलन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण मदद मिली उनका कहना था कि किसी भी आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए अखबार की आवश्यकता होती है कोई अखबार नहीं है तो आंदोलन की स्थिति टूटे पंख के पक्षी की तरह हो जाती है। कई दशकों तक उन्होंने 5 मराठी पत्रिकाओं का सफल संपादन एवं प्रकाशन किया।।
गंगाधर पानतावने ने 1987 में भारत में पहली बार अंबेडकर की पत्रकारिता पर पीएचडी के लिए शोध प्रवेध लिखा। जिसमें पानतावने ने अंबेडकर के बारे में लिखा है कि”स्मोक नायक ने बहिष्कृत भारत के लोगों को प्रबुद्ध भारत में लाया बाबासाहेब एक महान पत्रकार थे।