देखिये खेल कैसे कैसे होता है। दरअसल अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस कैपिटल पर 40000 करोड़ का कर्जा था। केस कोर्ट में गया, बैंकों के साथ 20000 करोड़ का एडजस्टमेंट हुआ। कंपनी की सारी एसेट का रिवैल्यूशन किया गया। आंकड़ा 12000 करोड़ का बैठा। कोर्ट के आदेश पर कम्पनी बेचने के लिए बीड निकाली गई, सब से ज्यादा बोली लगी 5231 करोड़ की और खरीदने वाला ग्रुप था परिमल ग्रुप। अब ये परिमल ग्रुप कौन है ?
इस का पता लगाया तो वो निकला मुकेश अंबानी के समधी का।यानी कुल मिलाकर मामला ये हुआ कि घर की कंपनी घर में ही रही और इस बीच बैंकों को 34769 करोड़ का चूना लग गया। बैंक तो सरकारी ही थी, यानि कम्पनी पर लोन लिया अनिल अंबानी ने। कंपनी डुबाई अनिल अंबानी ने। कंपनी बेची अंबानी ने। कंपनी खरीदी भाई के समधी ने।
इस पूरे खेल में सरकार का यानि हमारे तुम्हारे टैक्स का 34769 करोड़ रुपया डूबा। और ये सब हो रहा है, हिंदू हृदय सम्राट की निगरानी में। खतरा हिंदू धर्म को है या देश के आम नागरिक को है? वैसे भी देश के आधे से संसाधन पर विदेशी कम्पनियों का कब्जा हो ही चुका हैं। आप फिर से गुलामी की जंजीर में जकड़े जा रहे है और आप को एहसास भी नहीं हैं।