Sunday, January 12, 2025
Homeअन्यसमाजवादी दिग्गजों का क्षोभ और आक्रोश स्वाभाविक पर तर्कसंगत नहीं

समाजवादी दिग्गजों का क्षोभ और आक्रोश स्वाभाविक पर तर्कसंगत नहीं

मंथन

सर्व सेवा संघ के बनारस परिसर प्रसंग में आप आज के समाजवादी दिग्गजों का क्षोभ और आक्रोश देखने को मिल रहा है । स्वाभाविक है , तर्कसंगत नहीं । इसमें कुछ वाजिब है और कुछ पुराना पूर्वाग्रह । ऐसी मानसिकता से स्वाभाविक नहीं , बनावटी एकजुटता बन सकती है । वह एकजुटता जो आज की जरूरत है ।
साथ ही अपनी वैचारिक अवस्थिति बता दूॅं । वादमुक्त समतानिष्ठा की विचारधारा । संघर्ष वाहिनी के साथियों को आमतौर पर गाॅंधीवादी बताया जाता है । उसमें भी ज्यादा लोगों को सर्वोदयी माना जाता है । कुछ लोग समाजवादी खेमे के माने जाते हैं । मैं अपने को दोनों में कहीं नहीं पाता । पर एक चुनना ही हो तो समाजवादी ज्यादा मंजूर होगा । अधिकांश सर्वोदयियों की सत्याग्रह से दूरी और जातिप्रश्न पर असंवेदना के कारण सर्वोदय से ज्यादा समाजवाद की धारा मुझे स्वीकार्य है । समाजवादियों की आत्मघाती तीखी कलहप्रियता की छवि के बावजूद ।
इन टिप्पणियों पर प्रतिवाद जरूरी नहीं मानता । कुछ धारणा है , कुछ शैली है । फिर भी निर्वीर्य शब्द के उपयोग से अपना विरोध बताना चाहता हूॅं । वीर्यता को वीरता का समानार्थक बरतना पुरूषसत्तावादी शब्द संस्कृति है । हम सब कभी कभार असावधान हो जाते हैं , हम सबको खासकर पुरूषों को ज्यादा सचेत रहना है । किसी दूसरे जेन्डर न्यूट्रल शब्द का उपयोग स्वीकार्य होता ।
उम्मीद है , आप सभी मेरी टिप्पणी को सहज भाव से लेंगे ।
आग्रह है कि टिप्पणी करनेवाले साथी भी प्रशासन के अनुचित कार्यवाही के प्रतिवाद में अपना नाम दर्ज करायें ।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments