Sunday, September 8, 2024
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August Revolution : 9 अगस्त 1942 से शुरू होकर, महात्मा गांधी की समाधि से आचार्य नरेन्द्र देव मूर्ति स्थल तक सोशलिस्टों का सफर !

 

  प्रो. राजकुमार जैन 
(दूसरी किस्त)

डॉ. लोहिया 9 अगस्त 1942 के दिन को जनता की महान घटना मानते थे तथा उनकी मान्यता थी कि वह हमेशा बनी रहेगी। 9 अगस्त तथा 15 अगस्त में तुलना करते हुए उन्‍होंने लिखा कि पंद्रह अगस्‍त राज्य की महान घटना थी, क्योंकि उस दिन ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के प्रधानमंत्री के साथ हाथ मिलाया था और क्षतिग्रस्त आजादी देश को दी थी। क्षतिग्रस्त आजादी से लोहिया का इशारा अंग्रेजों द्वारा सोची-समझी चालाकी से हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रूप में भारत के टुकड़े करके 15 अगस्त को, हिंदुस्तान को आजाद करने की घोषणा से था।

15 अगस्त से ज्यादा महत्व डॉ. लोहिया 9 अगस्त को इसलिए देते थे क्योंकि 9 अगस्त को वे जनता की इच्छा की अभिव्यक्ति मानते थे। हमें आजादी चाहिए और हम आजादी लेंगे। उनका कहना था कि हमारे लंबे इतिहास में पहली बार करोड़ों लोगों ने आज़ादी की अपनी इच्छा जाहिर की। डॉ. लोहिया 9 अगस्त को जनता का दिवस तथा 15 अगस्त राज्‍य का दिन मानते थे। जिन लोगों ने आज़ादी लाने के लिए कुर्बानी दी उनको याद करने के लिए 9 अगस्त का दिन सबसे पवित्र दिन है।
डॉ. लोहिया ने अपनी मान्यता के पक्ष में दुनिया के इतिहास से दो उदाहरण भी दिए जो कि सारी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। 14 जुलाई को फ्रांस के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि उस दिन फ्रांस की राजधानी पेरिस में लाखों लोगों ने बैस्टिल की जेल को तोड़कर उन सारे कैदियों को छुड़ा लिया जिन्हें फ्रांस के बादशाह ने बंद कर रखा था। दूसरा उदाहरण डॉ. लोहिया 4 जुलाई के दिन का देते हैं, उस दिन अमेरिकी जनता ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ़ आजादी की लड़ाई में अपनी आजादी की घोषणा की थी। डॉ. लोहिया का मानना था कि 14 जुलाई और 4 जुलाई जनता के दिन थे जब संघर्ष हुआ ना कि 15 अगस्त की तरह सरकारी समारोह मनाने के दिन।

1942 से लेकर अभी तक दिल्ली के सोशलिस्ट बड़ी शिद्दत के साथ 9 अगस्त के दिवस को मनाते चले आ रहे हैं। हमारे नेता बताते थे कि 1942 से लेकर 1970 के आसपास के वर्षों तक अधिकतर वे सोशलिस्ट नेता कार्यकर्ता शामिल होते थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया होता था।
इनमें अरुणा आसफ अली, चौधरी ब्रह्म प्रकाश (दिल्‍ली के पहले मुख्यमंत्री) और मुश्‍ताक अहमद चीफ एक्‍जीक्‍यूटिव (मुख्यमंत्री के समान), लाला राम नारायण, बृजमोहन तूफान, राजेंद्र सच्‍चर (भू.पू. मुख्य न्यायाधीश दिल्ली हाई कोर्ट) इत्‍यादि के अतिरिक्त वे सोशलिस्ट स्वतंत्रता सेनानी जो कि पंजाब सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता रहे थे तथा उस समय वे पाकिस्‍तान में रहते थे। आज़ादी के बाद 1947 में वे पाकिस्तान से आकर दिल्ली में बस गए थे। वे 9 अगस्त के कार्यक्रम में बड़े उत्साह के साथ भाग लेते थे। उनमें से कई नेता कभी-कभी तो बहुत सारे नियमित रूप से शिरकत करते थे जैसे मरहूम श्री धर्मपाल चोपड़ा, जिन्होंने आज़ादी की जंग में दो साल की कैद काटी थी।

श्री विश्‍वनाथ दर्द (9 महीने का कारावास), श्री सतपाल चोपड़ा (दो साल कारावास), ज्ञान सिंह बीर (चार साल 10 महीने की सजा काटी), चंद्रप्रकाश आनंद (दो साल का कारावास), सोमदत्त शर्मा रसाल (3 महीने की सजा) राज किशोर कपूर, 1932 में गिरफ्तार हुए महेन्द्रपाल दत्‍ता, होशियारपुर तथा जालंधर जेल में बंद थे। बनारसीदास रंचक (3 साल 4 महीने), प्यारेलाल गुप्‍ता (कई महीने जेल में) जोगेन्‍द्र नाथ साहनी (3साल 2 महीने), चिंतामणि कपूर, रवेल सिंह कोहली, संतलाल आज़ाद, संतोष सखहराई, रघुवंश सरहदी, बंशीलाल, नरेन्द्रनाथ दत्ता, ईश्‍वरदास खन्‍ना (भू.पू. कौंसलर दिल्‍ली म्यूनिसिपैलिटी), जसवंत सिंह एडवोकेट, केवल कृष्‍ण वडेरा, द्वारकानाथ मल्होत्रा, पहले मुल्‍तान जेल तथा बाद में बोस्‍टल जेल में बंद रहे थे। न्‍यायाधीश हरवंश लाल आनंद, वशेसर नाथ, बंशीलाल, प्रताप सिंह सेठी, प्रेमलाल भाटिया इत्‍यादि होते थे। डॉ. स्‍वरूप सिंह (दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के भूतपूर्व वाइस चांसलर), अनवर अली देहलवी (भू.पू. विधायक), रामशरण नगीना जो कि सरहदी गाँधी खान बादशाह के सेकेट्ररी रहे थे, गोविन्‍द सिंह झण्‍डेवाला (जो कि हर स्‍थान पर सोशलिस्‍ट पार्टी का झण्‍डा लेकर जाते थे), रामशरण चौहान, आसफ अली, दिल्‍ली के एक गाँव ज्‍वाला हेड़ी जो कि अब एक बड़ा व्यावसायिक केंद्र बन गया है। प्रतिष्ठित संपन्‍न परिवार के चार भाई रामनारायण यादव, रामसिंह यादव, बलवीर यादव, श्री यादव जी की दिल्‍ली के सोशलिस्‍ट आंदोलन में बड़ी भूमिका रही है। समय समय पर वे घंटाघर की सभा में भाग लेते रहे हैं। उनसे कई रोचक किस्‍से जुड़े हुए हैं।

बताते हैं कि एक बार बलबीर यादव जी कनाट प्‍लेस के मशूहर रेस्‍टोरेन्‍ट गेलार्ड में कॉफी पीने के लिए गए थे। चूँकि वो खद्दर का साधारण-सा कुर्ता-पायजामा पहने हुए थे उनकी वेश-भूषा को देखकर रेस्‍टोरेन्‍ट वालों ने उनको गेट पर अंदर जाने से रोक दिया, क्‍योंकि गेलार्ड में उच्‍च संभ्रान्‍त वर्ग के लोग ही जाते थे। बलवीर यादव जी ने रात्रि को यह बात अपने बड़े भाई रामनारायण जी को बताई। अगले दिन रामनारायण जी ने नई दिल्‍ली रेलवे स्‍टेशन से 10-15 कुलियों को, जो कि सोशलिस्‍टों की ‘ऑल इण्डिया रेलवे मेन्‍स यूनियन’ के सदस्‍य थे, ताँगे, रिक्‍शा में बैठाकर गेलार्ड रेस्‍टोरेंट पहुँच कर धड़ाक से रेस्‍टोरेंट में घुस गए। रामनारायण जी ने 10 हजार की एक गड्डी मैनेजर की टेबल पर रखकर कहा कि हमारे ये साथी जो भी खाना-पीना चाहें इनकी सर्विस करो, और एक बात का ध्‍यान रखना कि कोई बेअदबी न हो वरना पुलिस भी तुम्‍हें बचा नहीं पाएगी।
वहाँ पर शहर का एक बड़ा अफसर भी मौजूद था, जो रामनारायण जी को पहचानता था, उसने फौरन मैनेजर के कान में बता दिया कि इनसे पंगा मत लेना। मैनेजर ने फौरन रामनारायण जी से माफी माँग कर मामले को रफा दफा किया।रामनारायण जी ने कहा, भले लोगो, कपड़ों को देखकर किसी का कभी अपमान नहीं करना।
खालिक ‘जापान वाला’ पं.हरस्‍वरूप शर्मा (जो कि दिल्‍ली में रेहड़ी, पटरी, खोंचा यूनियन के अध्‍यक्ष थे। दिल्‍ली के नये बाज़ार के व्‍यापारी बंधु रामसिंह, राधेश्‍याम, शंकर दास रोज (अध्‍यक्ष सोशलिस्‍ट पार्टी) भवानीदास ‘हिंदी’ (अध्‍यक्ष, सोशलिस्‍ट पार्टी) बिहारी लाल आज़ाद (अध्‍यक्ष, सोशलिस्‍ट पार्टी) मास्‍टर नरुद्दीन मजदूर नेता सी.पी. अग्रवाल जिन्‍होंने दिल्‍ली में पुलिस यूनियन, राष्‍ट्रपति भवन के कर्मचारियों तथा दिल्‍ली की प्रथम नर्स यूनियन बनाई थी। बिहारी लाल आज़ाद (अध्‍यक्ष, सोशलिस्‍ट पार्टी दिल्‍ली), चंद्रशेखर (भू.पू. प्रधानमंत्री) 1962 में जब सोशलिस्‍ट पार्टी के राज्‍यसभा के सदस्‍य बनकर दिल्‍ली में रहते थे।
गत 56 वर्षों से मैं इस आयोजन से जुड़ा हूँ, इसकी अनेकों स्‍मृतियाँ मेरे मानस में समायी हुई हैं। बहुत सारा जोश, उमंग तथा साथीपन की भावना इससे जुड़ी हुई है। मुझे याद आता है कि जब सोशलिस्‍ट साथी नारा लगाते हुए पहुँचते थे तो ऐसा लगता था कि अब हम दिल्‍ली को फतह कर लेंगे।
मैं दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय में बी.ए. प्रथम वर्ष का छात्र था, उस समय दिल्‍ली में सोशलिस्‍ट, पुरानी दिल्‍ली रेलवे स्‍टेशन के सामने कम्‍पनी बाग में गाँधीजी की मूर्ति के सामने सुबह-सुबह इकट्ठा होने शुरू हो जाते थे, क्‍योंकि मेरा घर बहुत पास में ही था, मेरे मोहल्ले से मरहूम प्रदुमन कुमार जैन जिनको सब ‘टामन’ साहब कह कर पुकारते थे , मीर मुश्ताक अहमद जामा म,,स्जिद से सोशलिस्ट पार्टी से  एम एल ए
का चुनाव जीत चुके थे उसके बाद चांदनी चौक से सोशलिस्टपार्टी के उम्मीदवार के रूप में लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे तो टामन साहब लाल टोपी पहनकर  घर के नीचे चौकी लगाकर मीर साहब का प्रचार करते थे। मैं स्कूल में ही पढ़ता था, झोपड़ी का चुनाव चिन्ह  का बिल्ला लगाकर बच्चों की टोलियां में हम उधम मचाते हुए गली मोहल्ले में घूमते थे। वे सबसे पहले पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर बनी गांधी जी की मूर्ति पर पहुंचते थे। मैं और मेरे साथी, मरहूम चन्‍दमोहन भारद्वाज, मरहूम नंदकिशोर वर्मा, जयकुमार जैन, पहले पहुँचने वालों में होते थे और इसके बाद दिल्‍ली देहात के सोशलिस्‍ट पहुँचते थे। उन दिनों आवागमन के लिए केवल डी.टी.सी. की बस सेवा से, साइकिल या पैदल चलकर ही आना होता था। हैदरपुर गांव के चौधरी मेहरचंद यादव, बादली गांव से रामगोपाल सिसोदिया, मलस्‍वा गांव से चौ. लायक राम ज्‍वाला, हेडी गांव से श्री यादव, उजवा गांव से मा. प्रीतम सिंह, बवाना से मेहर सिंह डबास इत्‍यादि अपने-अपने गांवों से पहली बस से जो सुबह पाँच बजे चलती थी उससे कम्‍पनी मैदान पहुँचते थे।

दिल्‍ली के उस समय के प्रमुख नेता रूपनारायण, ब्रजमोहन तूफान, साँवलदास गुप्‍ता, मोहम्‍मद इदरीश, सूरजभान गुप्‍ता, कुन्‍दर लाल, जोड़ला इत्‍यादि होते थे। जब सारे साथी इकट्ठा हो जाते थे तो सबसे पहले बड़ी कड़क आवाज़ में दिल्‍ली के नेता कुन्‍दन लाला जोड़ला ‘महात्‍मा गाँधी अमर रहें’ अमर रहें का नारा लगाते थे। उसके बाद ‘इन्‍कलाब जिंदाबाद’, ‘गाँधी, लोहिया, जयप्रकाश जिंदाबाद जिंदाबाद’, ‘अगस्‍त के शहीदों को भूलो मत, भूलो मत’, नारा करीब 7-8 मिनट तक लगातार लगाते। अगर समय से महेन्‍द्र पालदत्ता पहुँच जाते थे तो फिर वो बुलंद आवाज़ में तब तक नारे लगाते जब तक उनका गला जवाब नहीं दे देता था। जोड़ला जी के बाद नारा लगाने की मेरी बारी आती थी। उसके बाद जुलूस नारे लगाता हुआ, चाँदनी चौक घंटाघर पर पहुँचता था जहाँ पर दिल्‍ली में पहली बार संघर्ष शुरू हुआ था। घंटाघर पर जुलूस सभा में परिवर्तित हो जाता था। सभा स्‍थल पर तब तक सोशलिस्‍ट पार्टी दिल्‍ली के सिद्दकी बिल्डिंग बाड़ा हिंदुराव के पार्टी दफ़्तर के सहायक साथी गोविंद सिंह झण्‍डा, बैनर पर्चे लेकर पहुँच जाते थे तथा बैनर इत्‍यादि लगा चुकते थे। कई ऐसे साथी, जो शुरू में नहीं पहुँच पाते थे, वहाँ शामिल हो जाते थे।

उस समय के दिल्‍ली के हमारे सबसे जुझारू नेता मरहूम साँवलदास गुप्‍ता जी (भू.पू. विधायक) जिनके नेतृत्‍व में दिल्‍ली के सोशलिस्‍ट लगातार जुल्‍मों व गैरबराबरी के खिलाफ़ सड़कों पर संघर्ष करते हुए जेलों में जाते रहते थे, वे जब घंटाघर की सभा में पहुँचते थे तो दूर से ही पता चल जाता था कि गुप्‍ता जी का दस्‍ता आ रहा है। गुप्‍ता जी के साथ बड़ी तादाद में कार्यकर्ता होते थे, जोर-जोर से नारे लगाते रहते थे। उनके साथ आनेवालों में प्रमुख रूप से मास्‍टर बालकिशन, शोभाकांत झा, सनद सेठ, सुदर्शन राही, डॉ. सलीमन, प्रेम सुन्दिर याल, रफीक अहमद, महबूब लारी, जी. राम विद्याशंकर सिंह, छोटेलाल कंजर मास्‍टर, मदनमोहन दिवाकर जो कि उस समय के दिल्‍ली स्‍कूल शिक्षक संघ के सचिव होते थे। दिल्‍ली के शिक्षकों में उनका बड़ा नाम था। साथी मुकुन्‍द भाई परीख का भी निराला व्‍यक्तित्‍व था, लंबे-लंबे बाल, सदैव साइकिल से चलते थे। साइकिल के पीछे स्टैंड पर बड़ा भारी सा कागज़ का बंडल जो रस्‍सी से बँधा होता था, जिसमें वो गरीबों के लिए संघर्ष करने के विरोध पत्र, कोर्ट में दायर याचिकाएं, भूख हड़ताल, अनशन वगैरह का ब्‍योरा रखते थे। 20 मिल साइकिल चलाकर पहुँचते थे। तेजेन्‍द्र वाजपेयी, रमेश शर्मा, ज्ञान गुप्‍ता, ब्रह्म कुमार, मामचंद रिवाड़िया, गुप्‍ता जी के टोले में शामिल हो जाते थे।

सरदार थान सिंह जोश के साथ सरदार तेजा सिंह, गुरुदेव सिंह, जागीर सिंह तथा हरभजन आहूजा, हृदय रतन वाजपेयी, राम सिंह जेदिया नारा लगाते हुए पहुँचते थे। चाँदनी चौक की इस सभा में हमारे बुजुर्ग, ज्ञानी रतन सिंह उनके सुपुत्र जसवीर सिंह, सुभाष भटनागर, विजय प्रताप, रमाशंकर सिंह, सुरेन्‍द्र शील, रविन्‍द्र मिश्रा, ललित गौतम, रविन्‍दर मनचन्‍दा, प्रो. विनोद प्रसाद सिंह, प्रेम मायर, रघुवीर सक्‍सेना, ए.बी. आनंद, चंद्रशेखर मिश्रा, देशराज प्रेम, गुलशन खन्‍ना, गौरीशंकर मिश्रा, प्रो. हरभगवान मेंहदीरत्ता, के.पी. शोषित, नानकचंद अग्रवाल, प्रभु चौधरी, प्राण सब्‍बरवाल, रतिराम, रमेश अग्रवाल (सचिव, हिंद मजदूर सभा), सुशील शर्मा, एस.के. सक्‍सेना, विद्याशंकर सिन्‍हा, खेमचंद वर्मा, सरदार चरणपाल सिंह, ठाकुर शोभाराम, प्रो. ईश्‍वरप्रसाद, ओ.पी. मालवीय (एडवोकेट) प्रो. प्रदीप बोस, डॉ. राजसिंह राणा, रतिराम, सुशील आनंद, सुशील भटनागर, डॉ. मान्‍धाता ओझा, बालकिशन यादव, ईशरत अली अंसारी, आर.एन. मेहरोत्रा, (भू.पू. हाई कोर्ट जज), संतोख सिंह एडवोकेट, सुखन लाल, (मजदूर नेता), सागर अहलूवालिया, सुधीर गोयल, रजनीकांत मुद्गल, हीरालाल नानक चंद कटारिया, अशोक मलिक, रामबाबू, पं. रामानंद शर्मा, तीर्थराज सिंह चौहान, रवि नैय्यर, पारसनाथ चौधरी, रमेशचंद धिन्डियाल, मनोहर लाल (वकील), शशिभूषण खन्‍डूरी, हीरालाल, रमाकांत पांडेय, ब्रजमोहन भारद्वाज पहुँचते थे।

साथी रघुवीर सिंह कपूर (भू.पू. सदस्‍य, दिल्‍ली नगर निगम) की विशेषता थी कि वे हमेशा अपने नाम का अलग से बैनर सभा में लगाते थे, और कई बार खुद ही नारा लगाते और उसका जबाव भी खुद देते थे। वो दिल्‍ली में संघर्ष करके जेल जानेवालों की टीम में सदैव शामिल रहते थे। इसी तरह हमारे साथी मदनलाल हिंद जी हैं, जो न केवल स्‍वयं जेल जाते थे, कई बार अपनी माता जी को भी प्रदर्शन में शामिल कर जेल ले जाते थे। घंटाघर की सभा में उस समय के नौजवान साथी महेन्‍द्र शर्मा (हिंद मजदूर सभा के नेता) बाबूलाल शर्मा, (गांधी पीस फाउन्‍डेशन), प्रो. रामारमन एकसाथ पहुँचते थे। बाड़ा हिंदुराव से एक टोला, मोहम्‍मद इदरीश, रफीक अहमद, आसिफ अली, अब्‍दुल रशीद, ताहिर हुसैन, बरकत खान तथा अन्‍य साथियों के साथ आता था।

सभा की अध्‍यक्षता ब्रजमोहन तूफान अथवा रूपनारायण जी करते थे। उस समय के कई राष्‍ट्रीय नेता भी भाषण देने के लिए समय-समय पर आते रहते थे। मधु दण्‍डवते, सुरेन्‍द्र मोहन, राजिन्दर सच्चर भी भाग लेते थे। डी.डी. वशिष्‍ठ, सूरजभान गुप्‍ता, साँवलदास गुप्‍ता तथा दिल्‍ली के बाहर से उस दिन आए हुए सोशलिस्‍ट नेता 9 अगस्‍त की महत्ता पर प्रकाश डालते थे। सभा में उपस्थित साथियों को तूफान साहब के भाषण का इंतज़ार रहता था, अंत में तूफान साहब के तूफानी भाषण में बीच-बीच में जोर से नारे लगने शुरू हो जाते थे। घंटाघर के आसपास के नागरिक भी भाषण सुनने के लिए खड़े हो जाते थे। सभा स्‍थल पर एक आकर्षण का केंद्र सरदार पूर्णसिंह होते थे जो हमेशा लाल रंग की पगड़ी पहनते थे, एक लंबा कुर्ता, जो कि काले रंग का होता था तथा उस पर लाल तथा सफेद पेंट से स्‍थायी रूप से पुलिस जुल्म के खिलाफ़ सामने आगे-पीछे लिखा रहता था तथा उनके हाथ में डंडे में लाल रंग का झण्‍डा लहराता रहता था। बड़ी मुस्‍तैदी से खड़े रहते थे। उस वक्‍त के जोश और मंजर को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

सभा की समाप्ति पर देर तक नारे लगते रहते थे। सभा समाप्‍त होने पर सामने ही घंटाघर पर एक चाय का ठेला, आशाराम चाय वालों का खड़ा होता था। उनकी चाय के चर्चे उस समय दिल्‍ली में मशूहर थे। 24 घंटे वहाँ पर कार्य चलता था। पुलिसवालों को वो आधे पैसे में चाय देते थे, ठेले पर एक समय में 20 गिलास चाय एकसाथ तैयार होती थी। एक आदमी, अँगीठी पर चाय का पानी उबालता था, एक गिलास में चीनी डालता था, एक आदमी बड़े से लोटे से दूध गिलासों में डालता था, एक आदमी चाय को मिलाकर ग्राहकों को देता था, सभी साथी चाय के ठेले पर पहुँच जाते थे। उस समय रस्क तथा मट्ठी भी बिकती थी, कुन्‍दर लाल जोड़ला जी दिल्‍ली के ऐसे समाजवादी नेता थे जो नारे लगाने में भी अव्‍वल रहते थे तथा चाय, मट्ठी, रस्क का भुगतान भी वही करते थे, और साथ ही घंटे वाले की दुकान से बर्फी भी मँगवाते थे। सिद्दकीकी बिल्डिंग बाड़े के पार्टी आफिस में जितनी बार मी‍टिंग होती थी वे खुशी-खुशी दावत देते रहते थे।

अब से लगभग 20 वर्ष पूर्व तक यह सिलसिला चलता रहा। परंतु दिल्‍ली प्रदेश कांग्रेस को एकाएक 9 अगस्‍त की याद आयी, सोशलिस्‍टों के भाषणों को कई स्‍थानीय कांग्रेसी भी सुनते थे। हो सकता है उन्‍हीं के कहने पर जिला कांग्रेस कमेटी ने घंटाघर चाँदनी चौक पर शामियाने, सोफे, कुर्सी लगाकर तेज़ आवाज़ में बजनेवाले लाउडस्‍पीकर में देश‍भक्ति के गाने बजाकर 9 अगस्‍त को मनाना शुरू कर दिया। घंटाघर का माहौल बदल गया था। मैंने ही एक दिन, तूफान साहब, सूरजभान गुप्‍ता तथा रूपनारायण जी, साँवलदास गुप्‍ता जी को सुझाव दिया कि क्‍या हम सभा के स्‍थान को बदलकर अपने सबसे आदर्श पुरुष महात्‍मा गाँधी की समाधि से शुरू करके कुछ ही दूरी पर फिरोज कोटला के पिछवाड़े गुलाब वाटिका में, आचार्य नरेन्‍द्रदेव की मूर्ति स्‍थल पर नहीं मना सकते? हमारे नेताओं को यह सुझाव पसंद आया। अगले वर्ष से यह राजघाट से शुरू होकर आचार्य नरेन्‍द्रदेव के मूर्तिस्‍थल पर सभा के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।

नये स्‍थल पर प्रोग्राम शुरू करने पर काफी बदलाव आ चुका है। आवागमन तथा संपर्क के साधन भी विकसित हो गए हैं। इस बीच दिल्‍ली के सोशलिस्‍ट नौजवानों की एक नयी पीढ़ी भी तैयार हो चुकी है। अब इसके आयोजन में पिछले कुछ पुराने साथी डॉ. भगवान सिंह, श्‍याम गंभीर, विजय प्रताप, सुभाष भटनागर, मंजू मोहन, रवीन्‍द्र मनचंदा, थान सिंह जोश तथा प्रेम सिंह, केदारनाथ के अतिरिक्‍त भगवानदास जाटव, धर्मवीर रवारी, निरंजन महतो, नीरज, फैजल, अन्‍जुम, आमिर खान, पृथ्‍वीराज चौहान, राकेश कुमार (सदस्‍य दिल्‍ली नगर निगम), केदारनाथ इत्‍यादि बढ़-चढ़ के भाग ले रहे हैं। इस वक्त इसके प्रमुख आयोजक राकेश कुमार हैं, फूलमाला, बैनर, खाने-पीने व्‍यवस्‍था उन्‍हीं की टीम करती है। सुबह राजघाट पर महात्‍मा गाँधी की समाधि पर परिक्रमा करके जुलूस हाथ में 9 अगस्‍त का बैनर लेकर नारे लगाता हुआ मूर्ति स्‍थल पर पहुँचकर सभा में परिवर्तित हो जाता है। वहाँ पर हमारे वरिष्‍ठ नेता विशेषकर रूपनारायण, ब्रजमोहन तूफान, सुरेन्‍द्र मोहन, सूरजभान गुप्‍ता, प्रो. आर.के. मिश्र (एम्‍स), चंद्रभाल त्रिपाठी, प्रो. सत्‍यमित्र देव करते रहे हैं।

दिल्‍ली में उस समय बाहर से आये हुए सोशलिस्‍ट नेता साथी भी समय-समय पर आकर इसमें भाग लेकर 9 अगस्‍त का इतिहास बताते थे। परंतु समय गतिमान है अब इस कार्य को मदनलाल हिंद, थान सिंह जोश, डॉ. भगवान सिंह, विजय प्रताप, जयशंकर (पत्रकार), अरविंद मोहन (पत्रकार), सुभाष भटनागर, श्‍याम गंभीर, रेणु गंभीर, डॉ. प्रेम सिंह, अरुण त्रिपाठी, मंजू मोहन इत्‍यादि करते हैं।
आजकल इस आयोजन की मुख्य जिम्मेदारी साथी राकेश कुमार, (सदस्य दिल्ली नगर निगम) के कंधों पर है। सूचना से लेकर झंडा बैनर फूलमाला जलपान इत्यादि की व्यवस्था वही अपने साथियों के साथ करते हैं।

हमारे साथी प्रो. हरीश खन्‍ना (भू.पू. विधायक), प्रो. विनय भारद्वाज, प्रो. शशिशेखर प्रसाद सिंह, प्रो. अमरनाथ, प्रो. अनिल ठाकुर, प्रो. वीरेन्‍द्र तोमर, प्रो. द्विजेन्‍द्र कालिया, चिन्‍मयी समल, अख्‍तर हुसैन, अरशद कुरैशी, कमरे आलम, राजेन्‍द्र रवि, अतुल कुमार, भास्कर शर्मा, मरहूम डॉ. मोहम्‍मद युनूस, अरमान अंसारी, किरण अरोड़ा, अनिल नौरिया, रजनी, प्रो. अनुपम, के.पी.सिंह, अभय सिन्‍हा, अमृतलाल रावल, रमेश शर्मा (गाँधी पीस फाउंडेशन), मरहूम शशांक अत्रे, डॉ. जितेन्‍द्र शर्मा, बीबग्‍लानी मिंग, चिन्‍मयी संभल, लाखन सिंह, अरशद कुरैशी, दलीप तलवार (तूफान साहब का भांजा), किशन पासवान, प्रो. अशोक सिंह, अमर सिंह ‘अमर’, साथी महेश, राजवीर पंवार (गाँव बेरसराय), रोहतास सिंह मान (गाँव अलीपुर), चौधरी मेहर सिंह (गाँव बवाना), उम्‍मेद सिंह खत्री (गाँव टिकरी खुर्द) बड़े उत्‍साह से भाग लेते हैं। इस आयोजन को सफल बनाने में संजय कनौजिया,कृष्‍ण कुमार भदौरिया विशेष भूमिका निभाते हैं। मरहूम तुलसी शर्मा की याद हमेशा इस मौके पर आती है। उत्साह के साथ पहले से ही वे इसकी चर्चा तथा आयोजन में जुट जाते थे। एडवोकेट पुरुषोत्तम हितैषी अपनी शायरी से समा बाँधे रखते हैं तथा बहुत सारे ऐसे साथी जिनके नाम मुझे याद नहीं आ पा रहे हैं, कैसा भी मौसम हो इसमें भाग अवश्‍य लेते हैं।

मेरा पूरा विश्‍वास है कि दिल्‍ली के सोशलिस्‍टों की यह परंपरा जैसी अब तक निर्बाध गति से चलती रही है, वैसे ही आगे भी चलती रहेगी।

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