नई दिल्ली, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत ने प्रसिद्ध उद्योगपति अजीम प्रेम जी के इस कथन से सहमति व्यक्त की कि सेवा का कार्य अति-विशाल है और इसके माध्यम से उत्कट राष्ट्रभाव से परिपूर्ण भारत के निर्माण के लिये सबको मिलकर काम करना पड़ेगा. सर संघचालक ने सभी प्रतिनिधियों से सेवा प्रकल्पों और उनके कार्यों की संख्या बढ़ाने की गति को दुगुनी करने के लिये संकल्प लेने का आह्वान किया. उन्होंने संगम में देश भर से आये प्रतिनिधियों को परामर्श दिया कि वे अपने कामकाज का सिंहावलोकन कर सेवा करने वाली देश की सज्जन शक्ति को अपने से जोड़कर साथ-साथ चलें.
श्री भागवत ने राष्ट्रीय सेवा भारती के तत्वावधान में राष्ट्रीय सेवा संगम के तीन दिवसीय सेवा संगम के दूसरे दिन कहा कि सेवा अभाव के चलते ही आज देश में दुर्बल वर्ग बना रहा. अब इसमें बदलाव आ रहा है और यह वर्ग समर्थ बन रहा है. अब न केवल हम देश में बल्कि देश के बाहर भी सेवा का कार्य कर रहे हैं.डॉ. भागवत ने कहा कि संघ की प्रेरणा से राष्ट्रीय सेवा भारती ने पिछले 25 वर्षों में काफी बड़ा आकार ग्रहण किया है, लेकिन अति विशाल राष्ट्र के समक्ष यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. उन्होंने कहा, “हमें सर्वांग सुंदर समाज बनाना है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति समर्थ हो. इसके लिये हमें और अधिक विस्तारित एवं व्यवस्थित कार्य करने होंगे.”
स्र संघचालक ने कहा कि 1989 में संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवारजी जन्म शती पर सेवा निधि बनाई गई थी और अगले एक वर्ष यानी 1990 में ही 10 हजार सेवाकार्य शुरू हो गये थे और अब यह बढ़कर डेढ़ लाख से अधिक हो चुके हैं. उन्होंने यह भी कहा, “ सेवा में कोई भेद नहीं होता, इसलिये इसकी पात्रता के लिये हिंदू या स्वयंसेवक होना जरूरी नहीं है. यह संबंध निरपेक्ष आत्मीयता का है, जिसमें किसी मुआवजे की अपेक्षा नहीं है.”
डॉ. भागवत ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि दुर्बल एवं वंचित वर्ग की समर्थों द्वारा उपेक्षा का पाप अब सेवा से धुल रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि हमारे सेवा कार्यों की कसौटी यही होगी कि सेवा प्राप्त करने वाले लोग इतने समर्थ बन जायें कि वे अन्य दुर्बल व्यक्तियों की सेवा प्रारम्भ कर दें. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और राष्ट्रीय सेवा भारती अन्योन्याश्रित हैं. अंतर बस इतना है कि संघ कार्य अनौपचारिक है, दूसरी ओर सेवा भारती का काम औपचारिक है.सेवा के महत्व पर जोर देते हुये डॉ. भागवत ने कहा कि सेवा धर्म है, जिसमें जीवन दान कर देना चाहिये, यह हमारी प्राचीन परंपरा का आदेश है. ऐसे में सबको सुखी देखना और इसके लिये स्वयं को अनुशासित करना ही धर्म है.
मुख्य अतिथि के आसन से अजीम प्रेम जी ने कहा कि जब वह यहां भागवत जी के अनुरोध पर आ रहे थे तो कुछ ने आपत्ति जताई थी, जिसे उन्होंने दरकिनार कर दिया. उन्होंने कहा कि वह राजनीतिक व्यक्ति नहीं हैं. वह देश और समाज को आगे बढ़ते देखना चाहते हैं और संघ के काम की प्रशंसा करते हैं. शिक्षा के क्षेत्र में विकास पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि बुनियादी शिक्षा के क्षेत्र में हम सभी को मिलकर सार्वजनिक शिक्षा क्षेत्र को मजबूत करना चाहिये. उन्होंने कहा कि निजी शिक्षण संस्थान इनके मुकाबले में कहीं नहीं हैं. हर किसी को उसकी इच्छानुरुप शिक्षा मिले, तो ही देश आगे बढ़ेगा.
विशिष्ट अतिथि के आसन से जीएमआर ग्रुप के संचालक श्री जीएमराव ने कहा कि हमें यह समझना चाहिये कि हम समाज को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं और देश को क्या दिशा देना चाहते हैं. हमें भविष्य को देखकर काम करना होगा ताकि समाज में शांति और अमीर-गरीब का अंतर मिटाया जा सके. इसके लिये हर व्यक्ति को अपनी भूमिका निभानी होगी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भविष्यदृष्टा बताते हुये उन्होंने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री ने इस दिशा में काम करना भी शुरू कर दिया है.
कार्यक्रम में परम पूज्य सरसंघचालक ने जीएमआर वारालक्ष्मी फाउंडेशन द्वारा तैयार सीडी ‘टुवर्ड्स स्किलिंग इंडिया’ का लोकार्पण किया. यह सीडी फाउंडेशन की व्यावसायिक प्रशिक्षण पहल के अंतर्गत भारत को दक्ष बनाने के उद्देश्य से तैयार की गई है. जी मीडिया समूह के स्वामी सुभाष चन्द्रा ने भारतीय परम्परा में दान के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि धर्म शास्त्र भी आय के छठवें भाग को सामाजिक कार्यों में लगाने का निर्देश देते हैं. संगम में लगी प्रदर्शनी आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है, जिसमें संघ और सेवा भारती के विभिन्न सेवा कार्यों को बखूबी दर्शाया गया है.
सर संघचालक का सेवा कार्यों की गति दुगुनी करने का आह्वान
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