अपनी पत्रिका। विद्या नन्द मिश्रा।
देश में महंगी शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए केंद्र सरकार ने सख्त फैसला किया है। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की अध्यक्षता वाली एक समीक्षा बैठक में शैक्षणिक सत्र 2017-18 से देश के सभी सीबीएसई स्कूलों में एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों को ही पाठ्यक्रम में चलाने पर फैसला किया गया है। सरकार ने देश के अभिभावकों की शिकायतों पर यह फैसला लिया है। क्योंकि देशभर के अभिभावकों ने शिकायत कर कहा था कि स्कूल प्रशासन निजी प्रकाशकों की काफी महंगी किताबों को पाठ्यक्रम में शामिल कर उनसे मनमानी ढंग से पैसे वसुलते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी शिकायत की थी कि एनसीईआरटी की किताबें समय पर नहीं मिल पाती, जिससे बच्चों को काफी परेशानी होती है। मंत्रालय के अधिकारी का कहना है कि एनसीईआरटी को पर्याप्त संख्या में देश भर में पुस्तक उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है। साथ ही उन्होंने कहा कि सीबीएसई स्कूल अभिभावकों को निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदने के लिए मजबूर करती है, जबकि निजी प्रकाशकों की किताबों के दाम एनसीईआरटी के मुकाबले काफी अधिक होते हैं। इतना ही नहीं स्कूल प्रबंधन मनमाने दामों पर स्कूलों में पेंसिल और इरेजर्स जैसे स्टेशनरी भी बेचते हैं। केंद्र सरकार के इस फैसले पर देश भर में तीखी प्रतिक्रिया शुरु हो गई है। जहां निजी स्कूल बुक प्रकाशक मोर्चा खोल दिये हैं, वहीं कई स्कूल प्रबंधन भी सरकार के इस फैसले से सहमत नहीं दिखाई दे रहे हैं। निजी प्रकाशक केंद्र सरकार के इस फैसले को अव्यवहारिक और अपने साथ अन्याय मान रहे हैं। प्रकाशकों का कहना है कि यदि ऐसा हुआ तो प्रकाशन कार्य से जुड़े लाखों लोगों के सामने रोजी रोटी की समस्या खड़ी हो जाएगी। साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले का प्रभाव शिक्षा की गुणवत्ता पर भी पड़ेगा।
प्रकाशकों का कहना है कि अभिभावकों और सरकार का यह कहना है कि निजी प्रकाशकों की पुस्तकें बहुत महंगी है, जो सही नहीं है। क्योंकि निजी प्रकाशकों के प्रकाशित किताबों की क्वालिटी और कंटेंट सरकारी किताबों की अपेक्षा ज्यादा बेहतर है। साथ ही उन्होंने कहा कि निजी प्रकाशक पुस्तकों के साथ सीडी, एनिमेशन, ऑनलाइन स्पोर्ट, वर्कशॉप, ट्रेनिंग प्रोग्राम और कॉन्फ्रेंस जैसी कई सुविधाएं देते हैं और इतनी सुविधा को देखते हुए निजी प्रकाशकों की पुस्तकें महंगी नहीं है। साथ ही प्रकाशकों का कहना है कि वे जो सुविधाएं और फीचर दे रहे हैं वह एनसीईआरटी नहीं देता है। साथ ही एनसीईआरटी को सरकार से अनुदान भी मिलती है जबकि उन्हें कोई अनुदान नहीं मिलता।
प्राख्यात शिक्षाविद् और मल्टीपल इंटेलिजेंस काउंसलर डॉ. राजीव गुप्ता भी सरकार के फैसले से पूर्णतः सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि स्टूडेंट्स के लिए एनसीईआरटी की किताबें ही काफी नहीं हैं, बल्कि चीजों को बेहतर ढंग से समझने के लिए उन्हें प्राइवेट पब्लिकेशन का बुक भी अवश्य पढ़ना होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि बिना पब्लिशर्स से बातचीत किये उन्हें खत्म करना उचित नहीं है। बल्कि सरकार, पब्लिशर्स और स्कूल एसोसिएशन को इस सिलसिले में बातचीत कर देश की हित में निर्णय लेना चाहिए।
वहीं स्कूली छात्रों का कहना है कि उन्हें एनसीईआरटी किताबों को समझने में जहां परेशानी होती है, वहीं कंटेंट भी काफी कम होते हैं। जबकि निजी प्रकाशकों की किताबों में समस्याओं का हल मिल जाता है। साथ ही निजी प्रकाशकों के समझाने के तरीके और कंटेंट भी काफी बेहतर होते हैं।