भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ भ्रष्ट्राचार का मामला दर्ज करने मंजूरी देने बाद से ही मनीष सिसोदिया की मुश्किलें बढ़ गई हैं। भ्रष्टाचार का यह मुकदमा दिल्ली सरकार की फीडबैक यूनिट से जुड़ा है जहां दिल्ली सरकार और मनी, सिसोदिया पर नौकरी देने के बहाने घोटाला करने का आरोप है। साथ ही एलजी को इस निर्णय से दूर रखने का भी आरोप है। यानी साफ तौर पर एक और मनी लांड्रिंग का केस मनीष सिसोदिया पर बनता दिख रहा है।
नई दिल्ली, 17 मार्च। सीबीआई ने अपनी शुरूआती जांच में पाया कि एसएस फंड से 1.5 लाख रुपये M/s Silver Shield Detectives को दिये गये और 60 हजार डब्ल्यू डब्ल्यू सीक्योरिटी को देने की बात कही, वो भी एसएस फंड से पैसे सतीश खेतरपाल को जारी होने के अगले ही दिन। जबकि जांच में पाया गया कि ये बिल फर्जी है और इन दोनों को किसी तरह के पैसों का भूगतान नहीं किया गया और ना ही इन दोनों ने इस यूनिट या दिल्ली सरकार के लिये कोई काम किया। हालांकि M/s Silver Shield Detectives के पार्टनर ने जांच में ये कहा कि कंपनी से फीड बैक यूनिट के ज्वाइंट डायरेक्टर आर के सिन्हा ने किसी महिला की जानकारी और उनके पीछा करने की बात की थी लेकिन इससे ज्यादा कोई बात नहीं हुयी। एसीबी में जिन 88 पोस्ट भरने की बात की जा रही थी उसका भी सिर्फ प्रपोजल था और एलजी की तरफ से मंजूरी नहीं ली गयी थी। भारत सरकार के गृह मंत्रालय की तरफ से जारी तीन चिट्ठियों 23 मई 1996, 1 जनवरी 1997 और 3 सिंतबर 1997 से ये साफ है कि दिल्ली में किसी भी नई भर्तियों, पोस्ट का गठन या फिर रिटार्यड कर्मचारियों की भर्ती के लिये एलजी की मंजूरी जरूरी है लेकिन इसके बावजूद इसकी अनदेखी की गयी।
सीबीआई ने अपनी शुरूआती जांच में पाया कि यूनिट में भर्ती के लिये तत्कालीन सेक्रेटरी विजिलेंस सुकेश कुमार जैन ने 6 नवंबर 2015 को मनीष सिसोदिया को प्रपोजल दिया की एआर डिपार्टमेंट से मंजूरी ले ली जायेगी जिसको लेकर मनीष सिसोदिया ने सहमति दी लेकिन सुकेश कुमार जैन ने इसकी जानकारी एआर डिपार्टमेंट को दी ही नहीं। 25 जनवरी 2016 में तय किया गया की ये भर्तियां एसीबी में की जाने वाली 88 भर्तियों में से की जायेगी जबकि इन भर्तियों की मजूरी या एआर डिपार्टमेंट से कोई जानकारी या मंजूरी नहीं ली गयी है। इस बात की जानकारी मनीष सिसोदिया को भी थी की इन भर्तियों के लिये या यूनिट के गठन के लिये उप राज्यपाल से कोई मंजूरी नहीं ली गयी है।
शुरूआती जांच में ये भी पता चला की इस यूनिट के लिये 17 लोगों को भर्ती किया गया और 1 करोड़ का बजट रखा गया था और साल 2016-17 में दो बार में 5-5 लाख कर के 10 लाख रुपये 7 जून 2016 और 13 जून 2016 में यूनिट को दिये गये। शुरूआत में 20 मई 2016 को आदेश जारी कर एसीबी के शम्स अफरोज़ को इस यूनिट के एडमिन और फाइनेंस के डिप्टी डायरेक्टर की जिम्मेदारी दी गयी जो उन्हे अपने एंटी करप्शन में एसीपी के पद के साथ पूरी करनी थी लेकिन कुछ ही दिनों बाद 31 मई 2016 को नया आदेश जारी किया गया कि मुख्यमंत्री के तत्कालीन एडवाइजर आर के सिन्हा इस यूनिट के मुखिया के तौर पर जिम्मेदारी संभालेगे। इसके बाद जब शम्स अफरोज ने यूनिट में गलत तरीकों से खर्चों को लेकर बात की तो आर के सिन्हा ने चिट्ठी लिख कर कहा कि शम्स अफरोज का इस यूनिट से कोई मतलब नहीं है और उन्हे एसएस फंड की जानकारी ना दी जाये।
सीबीआई ने अपनी शुरूआती जांच में पाया कि इस यूनिट का गठन नियमों को ताक पर रख कर किया गया, उप राज्यपाल से जरूरी मंजूरी नहीं ली गयी, ना ही इस यूनिट ने अपने विभाग के मुखिया सेक्रेटरी विजेलेंस को कभी रिपोर्ट या जरूरी जानकारी दी, सीक्रेट फंड का गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया, फर्जी बिल बनाये गये। जिसकी वजह से सरकार को 36 लाख रूपये का नूकसान हुआ। इसी के बाद सीबीआई ने मनीष सिसोदिया(उप मुख्यमंत्री), सुकेश कुमार जैन(तत्कालीन सेक्रेटरी विजिलेंस), आर के सिन्हा (स्पेशल एडवाइजर मुख्यमंत्री और ज्वाइंट डायरेक्टर फीड बैक यूनिट), प्रदीप कुमार पूंज(डिप्टी डायरेक्टर फीट बैक यूनिट), सतीश खेतरपाल( फीड बैक ऑफिसर) और गोपाल मीणा(एडवाइजर एंटी करप्शन-मुख्यमंत्री) के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच की सिफारिश की थी।