पवन कुमार
किरतपुर । ब्लॉक से होते हुए एक नदी जाती है जिसे मालन नदी के नाम से जाना जाता एक समय था इसके आस पास (किनारे)पर कीकर के घन्हरे पेड़ हुवा करते थे ,लेकिन आज कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की मिली भगत से ,अथवा कुछ क्षेत्रीय स्वार्थी लोगों की वजह से पेड़ न के बराबर है।आज से लगभग तीस पैंतीस वर्ष पूर्व सुना था कि नदी में एक भैंसा(सांड) घूम रहा, जिसने नदी से होकर जाने वाले मार्ग लगभग ब्लॉक कर दिए हैं,जो काला या लाल कपड़ा देखते ही हमला कर देता था।अब सवाल उठता है कि आखिर ये भैंसा(सांड)आया कहां से मान्यता है कि कुछ लोग माता की भेट के रूप भैंस के छोटे बच्चे (लवारे) कटड़े को नदी में छोड़ आते थे।
तब एक सांड था जो आस्था के नाम पर छोड़ा जाता था और केवल मालन नदी में था लेकिन आज हर खेत खलिहान में कई – कई सांड के रूप में गोवंश घूम रहे हैं।ओर उस समय ऐसी कोई खबर नहीं थी कि किसी सांड के द्वारा किसी की मौत हुई हो लेकिन आज आए दिन गोवंश के द्वारा किसानों की मौत की खबर आ रही है।अभी हाल ही गांव रायपुर में बकरी चराने गय वृद्ध पर गोवंश ने हमला कर दिया किसान को जब डॉक्टर के पास ले गए तो डॉ ने उसको मृत घोषित कर दिया।किसान की खेती करनी मुस्किल हो गई खेत में गौवंश ग्रुप के साथ फसल का नुकसान पहुंचा रहे हैं,किसान के दुख अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
कौन है जिम्मेदार ? क्या है समाधान ?
आज उत्तर प्रदेश वर्तमान मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ जी द्वारा गोवंश की की रक्षा हेतु चलाए जा रहे अभियान के तहत किसान, मजदूर कोई भी व्यक्ति गोवंश को केवल पालने के लिए ही खरीद या बेच सकता है।
आज किसान खेती आधुनिक तकनीक से कर रहा है हल,बैल,भैंसा बूगी का काम न के बराबर है।आज आधुनिक,व्यापारिक माहोल में किसान की सोच भी व्यापारिक (कमर्शियल) हो गई है वो क्यों फालतू में खाली खड़े गोवंश को चारा खिलाएं, छोड़ आता कहीं किसी खेत में लेकिन वो भूल रहा है कि इसका खमियाजा कोई और नहीं किसान ही भुगत रहा है।इसके लिए मुख्य मंत्री द्वारा जगह जगह पर गौशाला खोली गई है।लेकिन धरातली रिपोर्ट के आधार पर वहां पर भी इनके खान पान की व्यवस्था पर सवाल उठते रहते हैं।
कोन जिम्मेदार ,ओर क्या है समाधान इस संबंध में हमने कुछ वरिष्ठ समाजसेवी एवं राजनीतिक लोगों से बात की है।
कुलदीप आर्य महामंत्री जिला आर्य प्रतिनिधि मंडल बिजनौर का कहना है कि जहां तक जिम्मेदारी की बात है तो ये वो लोग जिम्मेदार हैं जो दोहरा चरित्र लिए धूम रहे हैं दिन में बड़े बड़े मंचों से गौवंश बचाने की बात करते हैं और रात के अंधेरे में गौवंश को छोड़ रहें ,हालाकि सभी उस श्रेणी में नहीं आते।रही बात समाधान की तो आज ये समस्या विकराल रूप ले चुकी है,मेरा मानना है कि जिसे हम गौवमाता कहते हैं उनकी संख्या न के बराबर है जिसे देशी गाय कहा जाता है बाकी जितनी भी गाय अमेरिकन, जर्सी ,हरियाणवी,ओर न जाने कितनी नस्ले है उन्हे गौववंश की श्रेणी से हटा दिया जाए तो समस्या खत्म हो जाएगी क्योंकि ये जो गाय है केवल दुधारू पशुओं की श्रेणी में आते हैं जो विशेष गुण पाए जाते हैं वह देसी गाय में ही पाए जाते हैं देसी गाय का घी, दूध, दही,ही शुभ माना जाता है। उनका कहना है कि सामाजिक संगठन एवं सरकार इस पर विचार करें। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कुछ समय पहले भोपाल में गैस त्रासदी हुई थी जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत जहरीली गैस रिसाव के कारण हुई थी लेकिन इसी बीच केवल एक परिवार बचा था , इसका पता लगाने के लिए अमेरिका से भी वैज्ञानिक आए थे सर्वे करने के बाद पता लगा कि वह परिवार देसी गाय के दी से हवन कर रहा था उस हवन के कारण ही दूषित गैस उन पर दुष्प्रभाव नहीं डाल पाई।
शिवकुमार राजपूत जिला अध्यक्ष रवा राजपूत सभा जनपद बिजनौर ने जिम्मेदार पशुपालक ही बताया है उनका कहना है कि जब दूध ,दही,घी हम लेंगे तो पा पालेगा कोन,जब उनसे पूछा गया कि आज खेती आधुनिक हो गई है तो बछड़ों का क्या करें,तो उन्होंने कहा कि सरकार ने एक ऐसा बीज तैयार किया है कि उससे 90% बछिया ही होंगी।
समाधान पर उनका भी यही तथ्य है कि देशी गाय से अलग जितनी भी प्रजाति है चाहे अमेरिकन, जर्सी, हरियाणवी, कोई भी हो उसको प्रतिबंध से अलग रखा जाए तभी इसका निवारण हो सकता है क्योंकि असली गाय जिसको हम गौमाता कहते हैं वह केवल और केवल देशी गाय है बाकी सब दुधारू पशु है।
इसी श्रंखला में वरिष्ठ समाज सेवी धर्मपाल सिंह राजपूत निवासी शाहपुर सुक्खा का कहना है कि इसके लिए किसी विशेष को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि परिस्थिति ही इतनी गंभीर है।समाधान की बात करें तो सरकार ने शीमन व्यवस्था की कि जिससे बछड़ा न होकर बछिया ही होंगी,जो गाय गर्भवती नहीं रहती उनके कोर्स की भी व्यवस्था की है फिर भी समाधान नहीं है,सही समाधान तभी संभव है।वैसे तो प्रकृति का हर जीव महत्वपूर्ण है लेकिन आज की परिस्थिति को देखते हुए जब तक देशी गाय अर्थात गौव माता को छोड़कर बाकी प्रजाति की गाय दुधारू पशु को अलग नहीं किया जाए तभी समाधान संभव है।