चरण सिंह राजपूत
भले ही खालिस्तान के मामले को लेकर कनाडा और भारत में तल्ख़ हुए संबंध सुधरे या न सुधरे। भले ही इस विवाद भारत को कनाडा से चल रहे कारोबार में कितना ही नुकसान उठाना पड़े पर केंद्र खालिस्तान के खात्मे को कमर कस ली है। खालिस्तान की मांग कर रहे संगठन से जुड़े लोगों की बैक ग्राउंड देखा जा रहा है। केंद्र सरकार के इस ऑपरेशन की आंच अरविन्द केजरीवाल पर भी आ सकती है। कई किसान नेता भी इस मामले की चपेट में आ सकते हैं। एनआईए पता लगा रही है कि किसान आंदोलन को हुई फंडिंग किसी खालिस्तानी नेता ने तो नहीं की थी। उधर पाकिस्तान के मामले में कूदने से जस्टिस टुडो की मुश्किलें बढ़ गई हैं। खालिस्तानियों को बढ़ावा देने का आरोप लगा अमेरिका ने उन्हें अलग से डांट पिलाई है।
दरअसल कनाडा की खेती और राजनीति पर भारत का वर्चस्व होने के चलते भारत और कनाडा में मधुर संबंध रहे। हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिस टुडो ने खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ बताकर कनाडा-भारत को विवाद जन्म दिया। जले पर नमक छिड़कने का काम उन्होंने यह कर दिया कि भारत के राजनयिक को हटा दिया। हालांकि बाद में भारत ने भी कनाडा के राजनयिक को हटा दिया।
दरअसल अब खालिस्तान के समर्थन में काम कर रहे भारतीय प्रवासियों के प्रति अब भारत बहुत सख्त हो गया है। केंद्र के इशारे पर ही एनआईए ने प्रतिबंधित संगठन ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ के प्रमुख गुरपतवंत सिंह पन्नू की चंडीगढ़ और अमृतसर में अचल संपत्तियां शनिवार को कुर्क कर की है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पुन्नू को आतंकवादी घोषित करने का आरोप लगाया था। दरअसल पुन्नू ने कथिक तौर कनाडा में मौजूद हिन्दुओं को देश छोड़ चले जाने को कह दिया था।
दरअसल कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में 18 जून को हुई सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत और कनाडा के बीच जारी राजनयिक विवाद के बीच एनआईए ने यह कार्रवाई की है। केंद्र सरकार ने खालिस्तान की मांग को लेकर सक्रिय संगठनों और लोगों पर सरकार ने निगाहें तरेरी हैं। एनसीआर में भी खालिस्तानी समर्थकों पर शिकंजा कसने की तैयारी में मोदी सरकार है। कनाडा के मामले में भारत संभल-संभल कर चल रहा है। जल्दबाजी में ऐसा कुछ नहीं करना चाहता जिससे उसे नुकसान उठाना पड़े।
दरअसल भारत के कनाडा से व्यापारिक रिश्ते हैं। यह भी कह सकते हैं कि जितना कनाडा हम पर निर्भर है उतना ही भारत कनाडा पर निर्भर है। दोनों देशों के रिश्ते बिगड़े तो असर दोनों कंपनियों पर होगा। जहां कुछ चीजों की कीमत बढ़ जाएगी वहीं कई कंपनी बंद भी हो सकती है। ऐसा हुआ तो बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो जाएंगे। देखने की बात यह है कि जब से कनाडा विवाद शुरू हुआ है तब से ही शेयर बाजार लगातार लुढ़क रहा है। सबसे अधिक चिंता कनाडा में पढ़ रहे भारतीय छात्रों की है।
दरअसल कनाडा में खालिस्तान समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिस टुडो के भारत का हाथ होने की बात कहने के बाद दोनों और से बयानबाजी हुई है। उससे भारत और कनाडा के संबंध गड़बड़ाए हैं। कनाडा और भारत के बिगड़े संबंध का असर दोनों देशों के कारोबार पर भी पड़ने लगा है। केंद्र सरकार के लिए चुनौती यह भी है कि अगर यह असर और बढ़ा तो कनाडा का इंवेस्टमेंट भारत से बाहर जाने का अंदेशा पैदा हो जाएगा। कनाडा पेंशन प्लान इन्वेस्टमेंट बोर्ड ने भारत में 21 अरब डॉलर यानी 1.74 लाख करोड़ का निवेश किया है। कनाडा पेंशन प्लान इन्वेस्टमेंट बोर्ड का निवेश कोटक महिंद्रा बैंक , पेटीएम, जोमैटो, आईसीआईसीआई समेत भारत की 70 लिस्टिड कंपनियों में है। अगर विवाद बढ़ा तो कनाडाई फर्म अपना हाथ खींच सकती है और इकॉनमी पर इसका असर देखने को मिल सकता है।
कहना गलत न होगा कि भारत और कनाडा के बीच बिगड़ते हालात दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ रहा है। आने वाले समय में कनाडा-भारत के कारोबार पर और बुरा असर पड़ सकता है। देखने की बात यह है कि दोनों देशों के बीच साल 2023 में कारोबार 8 बिलियन डॉलर का कारोबार हुआ। मतलब इस पर भी असर पड़ रहा है और इससे आयात-निर्यात प्रभावित होगा।
जगजाहिर है कि भारत कनाडा से बड़ी मात्रा में मसूर दाल खरीदता है। अगर विवाद बढ़ा तो दालें और महंगी हो जाएंगी। भारत का कुल मसूर आयात 2020-21 में 11.16 लाख टन, 2021-22 में 6.67 लाख टन और 2022-23 में 8.58 लाख टन रहा। जिसमें से भारत ने कनाडा से साल 2020-21 में 9.09 लाख टन, साल 2021-22 में 5.23 लाख टन और साल 2022-23 में 4.85 लाख टन मसूर का खरीदा। अगर दोनों देशों के रिश्ते खराब हुए तो जाहिर है कि मसूर दाल की कीमतें बढ़ जाएंगी।
विवाद के लम्बे चलने से इसका ज्यादा असर मसूर दाल के अलावा म्यूरेट ऑफ पोटाश उर्वरक पर हो सकता है। इसकी कीमतें बढ़ सकती हैं। साल 2022-23 में 23.59 लाख टन पोटाश के कुल आयात में से भारत ने कनाडा से 11.43 लाख टन खरीदा था। हालांकि जितनी चिंता भारत की उससे कहीं अधिक कनाडा की है। क्यूंकि जितनी निर्भरता भारत की कनाडा पर है उससे कहीं अधिक उसकी कनाडा की भारत पर है। कनाडा में पैदा होने वाली आधी से अधिक मसूर भारत में निर्यात की जाती है। ऐसे में कनाडा के लिए भारत को मसूर का निर्यात रोकना मुश्किल होगा। अगर वो ये गलती करता भी है तो नुकसान उसका खुद का होगा, क्योंकि भारत के पास मसूर के लिए ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देश भी हैं।
सबसे बड़ी चिंता तो बड़ी संख्या में कनाडा में पढ़ रहे भारतीय छात्रों की है। अगर विवाद बढ़ा तो भारतीय छात्रों के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। हालांकि इसका असर कनाडा की आर्थिक स्थति पर होगा क्योंकि कनाडा की इकॉनमी बहुत हद तक भारतीय छात्रों पर निर्भर करती है । कनाडा में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों में भारतीय छात्रों की संख्या 40 फीसदी है। कनाडा की इकॉनमी में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का बड़ा रोल है। ये छात्र वहां मोटी फीस भरकर पढ़ाई करते हैं और वहां की इकॉनमी को मजबूत करने में मदद करते है। कनाडाई छात्रों के मुकाबले बाहरी छात्रों से 4 से 5 गुना अधिक फीस वसूली जाती है।कनाडा जाकर पढ़ने वाले करीब साढ़े तीन भारतीय छात्र वहां की इकोनॉमी में 4.9 अरब डॉलर का योगदान देते हैं।