8 अगस्त 1942 को ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित हुआ, अरुणा आसफ अली ने गोवालिया टैंक मैदान पर तिरंगा फहराया और 9 अगस्त की रात को कांग्रेस के बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए। नेताओं की गिरफ्तारी के चलते आंदोलन की सुनिश्चित कार्ययोजना नहीं बन पाई थी। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (सीएसपी) का अपेक्षाकृत युवा नेतृत्व सक्रिय था, लेकिन उसे भूमिगत रह कर काम करना पड़ रहा था। ऐसे में जेपी ने क्रांतिकारियों का मार्गदर्शन और हौसला अफजायी करने तथा आंदोलन का चरित्र और तरीका स्पष्ट करने वाले दो लंबे पत्र अज्ञात स्थानों से लिखे। कहा जा सकता है कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जनता खुद अपनी नेता थी।
लोहिया ने भारत छोड़ो आंदोलन की पच्चीसवीं सालगिरह पर लिखा, “नौ अगस्त का दिन जनता की महान घटना है और हमेशा बनी रहेगी। पंद्रह अगस्त राज्य की महान घटना थी। … नौ अगस्त जनता की इस इच्छा की अभिव्यक्ति थी – हमें आजादी चाहिए और हम आजादी लेंगे। हमारे लंबे इतिहास में पहली बार करोड़ों लोगों ने आजादी की अपनी इच्छा जाहिर की। … बहरहाल, यह 9 अगस्त 1942 की पच्चीसवीं वर्षगांठ है। इसे अच्छे तरीके से मनाया जाना चाहिए। इसकी पचासवीं वर्षगांठ इस प्रकार मनाई जाएगी कि 15 अगस्त भूल जाए, बल्कि 26 जनवरी भी पृष्ठभूमि में चला जाए या उसकी समानता में आए।’’ (‘राममनोहर लोहिया रचनावली’ खंड 9 संपा. मस्तराम कपूर, पृ. 413)
अगस्त क्रांति की पचासवीं सालगिरह देखने के लिए लोहिया जिंदा नहीं थे। उनकी यह धारणा कि लोग मरने के बाद उनकी बात सुनेंगे, मुगालता साबित हो चुकी है। अगस्त क्रांति की पचासवीं वर्षगांठ 1992 में आई। उस साल तक नई आर्थिक नीतियों के तहत देश के दरवाजे देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की लूट के लिए खोल दिए गए थे; और एक पांच सौ साल पुरानी मस्जिद को भगवान राम के नाम पर ध्वस्त कर दिया गया। तब से लेकर नवउदारवाद और संप्रदायवाद की गिरोहबंदी के बूते भारत का शासक-वर्ग उस जनता का जानी दुश्मन बना हुआ है, जिसने भारत छोड़ो आंदोलन में साम्राज्यवादी शासकों के दमन का सामना करते हुए आजादी का रास्ता प्रशस्त किया था।
प्रधानमंत्री जो नया भारत बनाने का आह्वान करते हैं उसका आगाज़ 1991-92 में हुआ था. पिछले करीब तीन दशकों में देश से उसकी संप्रभुता और संसाधन, तथा जनता से उसके संवैधानिक अधिकार छीन लिए गए हैं। भारत छोड़ो आंदोलन सहित आज़ादी के संघर्ष की चेतना का इस्तेमाल धड़ल्ले से नया भारत बनाने में किया जा रहा है। ‘लोहिया के लोग’ भी उसमें शामिल हैं. भारत छोड़ो आंदोलन की सौवीं सालगिरह आने तक नए भारत की तस्वीर काफी-कुछ मुकम्मल हो जाएगी. ऐसा न हो, तो लोहिया के शब्द लेकर संकल्प करना होगा कि नए भारत से ‘हमें आजादी चाहिए और हम आजादी लेंगे’। भारत छोड़ो आंदोलन की चेतना के बारे में लोहिया के बोध के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत को फिर से प्राप्त करने की यह क्रांति 9 अगस्त 1942 की तरह भारत की जनता ही करेगी।