Wednesday, October 23, 2024
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जब किराया न देने पर मकान से निकाल दिया था पूर्व प्रधान मंत्री गुलजारी लाल नंदा

पवन कुमार

आज स्वार्थी राजनीति एवं राजनीतिक लोगों को देखकर विश्वास नहीं होता कि राजनीति में  गुलजारी लाल नंदा जैसे भी लोग रहे हैं। गुलजारी लाल नंदा का जन्म 4 जुलाई 1898 में पंजाब के सियाल कोट में हुआ था। उन्होंने लाहौर, आगरा एवं इलाहाबाद से अपनी शिक्षा पूरी की थी। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1920 – 1921) श्रम संबंधी समस्याओं पर एक शोध अध्येता के रूप में कार्यरत रहे, नेशनल कॉलेज मुंबई में अर्थशास्त्र के अध्यापक बने। और इसी वर्ष वे असहयोग आंदोलन में शामिल हुए,1922 में  वे अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन के सचिव बने, उन्हे 1932 में सत्याग्रह के लिए जेल जाना पड़ा। वह देश के बहुत से महत्वपूर्ण पदों पर रहे। गुलजारीलाल नंदा भारत के पहले एवं एकमात्र कार्यवाहक प्रधानमंत्री थे वे एक भारतीय राजनीतिक, शिक्षाविद एवं अर्थशास्त्री साहित्यकार थे।

 


एक कार्यवाहक प्रधानमंत्री एक कैबिनेट मंत्री एवं सदस्य होता है।  अक्सर (वेस्ट मिनिस्टर प्रणाली वाले देशों में) जो प्रधानमंत्री की भूमिका में कार्य करता है तब जब सामान्य रूप से पद संभालने वाला व्यक्ति ऐसा करने में असमर्थ होता है।
नंदा जी को कभी पैसे से प्यार नहीं रहा वह अपने परिवार के साथ किराए के मकान में रहते थे उनके बारे में पता चलता है कि उन्होंने कभी अपने बेटों के सामने भी हाथ नहीं फैलाया।
पहली बार उन्होंने मित्र के समझने पर स्वतंत्रता सेनानी पेंशन के फार्म पर हस्ताक्षर किए थे।1997 में उन्हें भारत रत्न और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
गुलजारी लाल जी का निधन 15 जनवरी 1998 को दिल्ली में उनकी बेटी के आवास पर हुआ था। उन्हें 100 वर्ष की दीर्घायु प्राप्त हुई, 1964 में जवाहरलाल नेहरू के बाद 27 मई से 9 जून 1964 तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री पद पर, 2, 11 से 24 जनवरी 1966 तक लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे बाद में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी।


आज नंदा जी की जीवन चरित्र का कुछ अंश लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाना चाहते हैं आपको सोचने पर मजबूर कर देगा कि क्या ऐसे लोग भी राजनीति में थे आज की स्वार्थी राजनीति एवं राजनीतिक लोगों को देखकर विश्वास नहीं होता, आज के राजनेताओं को गुलजारी लाल नंदा के जीवन चरित्र से सीख लेनी चाहिए।
एक बार लगभग 94 वर्ष का एक वृद्ध आदमी पुराना सा बिस्तर एक मग,बाल्टी लिए मकान मालिक से अनुरोध कर रहा था कि मुझे कुछ समय की मोहलत और दे दो लेकिन मकान मालिक नाराज था बोल रहा था। पहले किराए का इंतजाम करो बाद में आना ये कहकर मकान से निकाल रहा था ,लेकिन पड़ोसियों को वृद्ध पर दया आ गई और मकान मालिक को समझाया, मकान मालिक ने पड़ोसियों के समझने पर वृद्ध को कुछ समय की मोहलत दे दी। वृद्ध आदमी ने मकान मालिक को धन्यवाद कहा। दूर से एक पत्रकार यह सब देख रहा था उसने कुछ फोटो भी ली और सोचने लगा कि इस मकान मालिक की क्रूरता में अपने अखबार में जरूर छापूंगा ओर उसने टाइटल (हेडलाइन) भी सोच लिया था क्रूर मकान मालिक की क्रूरता। वह अपने संपादक को सारी बात बताता है और वे फोटो दिखाता है फोटो देखते ही संपादक पत्रकार से पूछते हैं क्या आप इस वृद्ध आदमी को जानते हैं तो जवाब मिला नहीं।
अगले दिन अखबार के प्रथम पृष्ठ (फर्स्ट पेज)पर खबर छपती है (पूर्व प्रधान मंत्री गुलजारी लाल नंदा दयनीय जीवन जीने को मजबूर) वर्तमान प्रधान मंत्री को पता लगते ही मंत्रियों को काफिला उन्हें लेने पहुंचा काफिले को देख मकान मालिक एवं पड़ोसी सभी दंग थे,जब मकान मालिक को पता चला की जिसके साथ उसने दुर्व्यवहार किया है वे देश के पूर्व प्रधान मंत्री गुलजारी लाल नंदा हैं तो उन्होंने माफी मांगी। काफिले के साथ पहुंचे मंत्रियों ने वर्तमान प्रधान मंत्री के आवाहन पर पूर्व प्रधान मंत्री गुलजारी लाल को सरकारी आवास सुख सुविधा लेने को कहा, गुलजारी लाल नंदा ने सुविधा लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि इस सुख सुविधा का मैं क्या करूंगा ? ऐसे थे हमारे पूर्व राजनेता। और आज की राजनीति को राजनेताओं ने व्यापार बना दिया है। आज की राजनीति एवं राजनेताओं पर नजर डालें तो कोई राजनेता एक बार विधायक या सांसद बन गया तो आजीवन पेंशन चाहिए,ओर अगर दो या ज्यादा बार बन गया तो उतनी ही ज्यादा पेंशन लाभ चाहिए। सरकारी जायज,नाजायज सारी सुविधा चाहिए,ऐसा लगता है जैसे राजनीति व्यापार हो गया है।कोई नेता एवं राजनेता एक बार किसी पद पर पहुंच जाए तो सबसे पहले वह जायज नाजायज तरीके से दोनों हाथों से दौलत बटोरने का काम करते हैं। मेरे देश को फिर से गुलजारी लाल नंदा जैसे राजनेताओं की जरूरत है।

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