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संसद में कांग्रेस के साथ मोर्चा लेकिन बाहर नहीं: येचुरी

By अपनी पत्रिका

May 04, 2015

  नई दिल्ली मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा है कि वह भूमि विधेयक और धर्मरिनपेक्षता जैसे मुद्दों पर संसद के भीतर कांग्रेस के साथ मोर्चा बनाने को तैयार है, लेकिन उसने संसद के बाहर किसी राष्ट्रीय मोर्चा या गठबंधन का हिस्सा बनने से इंकार किया है क्योंकि उसके मुताबिक ‘ये विश्वसनीय नहीं हैं।’ पार्टी के नवनिर्वाचित महासचिव सीताराम येचुरी ने स्वीकार किया कि बिहार का आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा विरोधी दलों के लिए बड़ा इम्तिहान होगा और यह इंतजार करना एवं देखना होगा कि रणनीति का फैसला करने के संदर्भ जनता परिवार का विलय का क्या स्वरूप लेता है। हाल ही में सोनिया गांधी के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ मार्च में शामिल रही माकपा के नेता ने कहा कि पार्टी पहले खुद को मजबूत करने का प्रयास करेगी। येचुरी ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘संसद के भीतर हमने कहा है कि हम (भूमि विधेयक जैसे) इन सभी मुद्दों पर एकजुट होंगे जिनके बारे में हम सोचते हैं कि ये देश और जनता के हित में नहीं हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘संसद के बाहर, हमारी पार्टी ने कहा कि कई क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर मोर्चा बनाना फिलहाल सही नहीं रहेगा क्योंकि ऐसे किसी मोर्चे के पास वैकल्पिक नीति होनी चाहिए, जिसके बारे में हमारा खयाल की मौजूदा समय में ऐसा हालात पैदा नहीं हो सकते।’’ उनसे सवाल किया गया था कि भाजपा का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस और दूसरे दलों के साथ गठबंधन पर माकपा का क्या रूख है।

व्यावहारिक राजनीति करने की पहचान रखने वाले येचुरी ने कहा कि भूमि विधेयक जैसे मुद्दों पर राहुल गांधी का हालिया अभियान अच्छा है। उन्होंने कहा, ‘‘परंतु कांग्रेस फिलहाल कोई सुसंगत नेतृत्व नहीं दे रही है। अभी हमें अगली महत्वपूर्ण चीज के लिए इंतजार करना और देखना होगा।’’ माकपा नेता ने कहा कि जीएसटी विधेयक और श्रम कानून सुधारों को लेकर सरकार जोर दे रही है तथा यह भी साझा कदम के लिए अवसर हो सकता है। यह पूछे जाने पर कि क्या वह सिर्फ इसलिए कांग्रेस के साथ मोर्चे से इंकार कर रहे हैं क्योंकि फिलहाल निकट भविष्य में कोई चुनाव नहीं है तो माकपा महासचिव ने कहा कि चुनाव चार साल दूर हैं। उन्होंने कहा, ‘‘परंतु नीतिगत विकल्प क्या है जिसे हम देश के लिए बेहतर मानते हैं। असहमति है। अतीत का अनुभव क्या रहा है? हमने 2009 में वैकल्पिक धर्मनिरपेक्ष सरकार का नारा देने के लिए यह कहते हुए खुद की आलोचना की थी कि यह गलत नारा था।’’ यह पूछे जाने पर समझ अथवा गठबंधन के लिए माकपा चुनाव पूर्व साझा न्यूनतम कार्यक्रम पर जोर देगी तो येचुरी ने कहा, ‘‘सबसे पहले हमारा जोर खुद को मजबूत करने पर होगा। जब कई राज्यों में चुनाव होंगे तो हम सीटों के बंटवारे के संदर्भ में बात करेंगे। परंतु कोई मोर्चा अथवा गठबंधन नहीं होगा क्योंकि ये विश्वसनीय नहीं हैं।’’ कांग्रेस के साथ मिलकर काम करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि इससे इंकार है क्योंकि कांग्रेस ने जिस तरह की आर्थिक नीतियों का अनुसरण किया है उससे असंतोष पैदा हुआ जिसके सहारे भाजपा सत्ता में आई। माकपा महासचिव ने कहा, ‘‘इसलिए कांग्रेस के साथ जाने की नीतिगत रूपरेखा से इंकार किया जाता है। हां, हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक बुनियादों के लिए खतरा है तथा अभी बहुत गंभीर खतरे आने वाले हैं।’’

येचुरी ने कहा, ‘‘अपने देश के सामाजिक सद्भाव को कायम रखने और आरएसएस-भाजपा का हमला झेल रहीं भारत गणराज्य की धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक बुनियादों को मजबूत करने के मुद्दों पर, मुद्दे दर मुद्दे हम मुख्य रूप से संसद में धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ हाथ मिलाएंगे। बाहर हमारा प्रयास खुद को मजबूत करने पर रहेगा।’’ यह पूछे जाने पर कि बिहार विधानसभा भाजपा विरोधी दलों के लिए कड़ा इम्तिहान होगा जो एक साथ आ रहे हैं तो येचुरी ने कहा, ‘‘पहले यह देखने दीजिए कि इस एकजुटता से पूर्व के समाजवादी दल किस स्वरूप में सामने आते हैं। यह महत्वपूर्ण है।’’ उन्होंने इस साल के दिल्ली विधानसभा चुनाव को याद किया जहां 70 सीटों में से चार माकपा लड़ी और शेष पर आम आदमी पार्टी का समर्थन किया और फिर आप ने भाजपा को पराजित किया। साल 2009 के आम चुनाव के बाद वाम दलों की ताकत घटने के बारे में पूछे जाने और इस सवाल पर कि भारत-अमेरिका परमाणु करार को लेकर संप्रग से अलग होना गलत था तो येचुरी ने शुरू में ‘ना’ कहा लेकिन बाद में इस कथन में संशोधन किया। उन्होंने कहा, ‘‘हमने कहा है कि यह :समर्थन वापस लेना: मुद्दा नहीं था। यह महंगाई और आम आदमी को संप्रग द्वारा छोड़ने जैसा जनहित का मुद्दा होना चाहिए था। समर्थन वापसी के समय के लेकर भी हमने खुद की आलोचना की है। परंतु परमाणु करार के विरोध के मुद्दे पर हमें कोई अफसोस नहीं है और हम मानते हैं कि ऐसा करना सही था।’’