हरीश खन्ना
बात बहुत पुरानी है शायद 70 के दशक के अंत की या 80 के दशक के शुरुआत की होगी । हमारे मित्र देवकीनंदन जो राजकुमार जैन के स्कूल के समय के मित्र थे और हमारे भी मित्र बन गए । उनके परिवार में कोई शादी थी । जिस में मैं और हमारे मित्र राजकुमार जैन गए हुए थे।समारोह चल रहा था मैं एक सीट पर बैठा था। मेहमान आ जा रहे थे खाना-पीना चल रहा था, म्यूजिक बज रहा था । इतने में मेरी बगल वाली सीट पर एक सज्जन आकर बैठे । कोट पेंट पहना हुआ था । उनको देखकर लग रहा था कि शायद इनको कहीं देखा है । मैनें बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
थोड़ा सा मुस्कराए और संगीत का आनन्द लेने लगे। कोई गाना बज रहा था । वह बार-बार उस गाने का आनंद ले कर बीच-बीच में बोलते और हाथ और उंगलियां चलाते हुए कहते – वाह क्या गाया है , क्या म्यूज़िक है !
मैंने उनकी तरफ देखा और मुस्कुराने लगा । मन में सोचने लगा कि शायद इनकी रुचि संगीत में है , इसलिए बार बार बहुत तारीफ कर रहे हैं। आखिर मेरे से रहा नहीं गया ।मैंने मुस्कराते हुए बड़े संकोच से कहा – आप को देखकर लगता है कि आप संगीत में काफी रुचि रखते हैं?
बोले – अरे साहब अपनी तो ज़िन्दगी ही इसमें निकल गई है ।
मैनें हैरान होकर पूछा वह कैसे ? क्या आप भी संगीत से जुड़े हुए हैं?
वह हंसने लगे।बोले मैं बंबई में रहता हूं। यह मेरी रोज़ी रोटी भी है और जान भी है।
मेरी उत्सुकता बढ़ गई। सोचने लगा यह कौन है।मैंने उनसे कहा – जी मैं कुछ समझा नहीं।
वह हंसते हुए बोले – क्या आपने संगीतकार शंकर जयकिशन का नाम सुना है?
मैने हंसते हुए तत्काल कहा -अरे साहब उन्हें कौन नहीं जानता। उनके संगीत की वजह से एक से बढ़ कर एक अनेक फिल्में हिट हुई हैं ।
वह सज्जन हंसते हुए बोले – मैं ही शंकर हूं। जयकिशन मेरे साथी थे। एक सेकंड के लिए मेरी समझ में नहीं आया। सोचा यह मज़ाक तो नहीं कर रहे। मैनें उन्हें ध्यान से देखा। लगा कि जाना पहचाना चेहरा तो लग रहा है। कभी अख़बार या मैगजीन में उन्हें देखा था। आश्वस्त होने के लिए फिर मैंने उन्हें पूछा – फिल्मों के म्यूजिक डायरेक्टर शंकर जयकिशन ?
हंसते हुए बोले जी वही शंकर मैं ही हूं।
मैं बहुत शर्मिंदा हुआ।
मैं एकदम हैरान हो गया और आदर में खड़ा हो गया । उन्होंने कहा -अरे साहब बैठिए ।
मैं उनको ध्यान से देखने लगा। इतना सहज और सरल व्यक्तित्व जिसमें कोई दिखावा और घमंड नहीं था। विश्वास ही नहीं हो रहा था कि फिल्मी दुनिया के इतने बड़े संगीतकार ‘शंकर जयकिशन ‘ की जोड़ी के शंकर मेरे साथ इतनी देर से बैठे थे और मैं उनको पहचान भी नहीं पाया। इतने में राजकुमार जैन भी आ गए । उस वक्त का एक यादगार चित्र जो बाद में मुझे मिला । उसे आप के साथ शेयर कर रहा हूं।
संगीतकार शंकर जयकिशन , इस जोड़ी का नाम एक ज़माने में फिल्मी दुनिया में सब से ऊपर टॉप पर था । राजकपूर की लगभग अधिकतर फिल्मों में इसी जोड़ी ने संगीत दिया था । इनकी पहली फिल्म ‘बरसात’ थी। जहां से इन्हे ब्रेक मिला।उसको अपार सफलता मिली। उसके सभी गाने हिट हुए । ‘बरसात में हम से मिले तुम ‘ , ‘ हवा में उड़ता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल दा ‘ , ‘मुझे किसी से प्यार हो गया ‘ और ‘ जिया बेकरार है आई बहार है ‘ इत्यादि गाने लोगों की जुबान पर आज भी हैं। बरसात, आवारा,श्री 420, संगम, चोरी चोरी, तीसरी कसम के अतिरिक्त अन्य अनेक फिल्में उनके संगीत की वजह से हिट हुईं।
भारतीय शास्त्रीय संगीत से इनका बहुत लगाव था । इस पर आधारित इनके बहुत से गाने हिट हुए । इनमें ‘झनक-झनक तोरी बाजे पायलिया’, ‘राधिके तूने बंसरी चुरायी’ ,’कोई मतवाला आया मेरे द्वारे’ , ‘अजहू न आए बालमा, सावन बीता जाए’ इत्यादि अनेक गीत है । “राग भैरवी ” उनका मनपसंद राग था जिसमें उन्होंने कई गीत लयबद्ध किए
शंकर-जयकिशन ने उदास , विरह गीतों की रचना करके उन्हें एक नई शैली और अर्थ प्रदान किया। “जिंदगी में हरदम रोता ही रहा” , “तेरा जाना दिल के अरमानों” जैसे कई गीत प्रसिद्ध हुए। दक्षिण की लोकधुन पर आधारित ‘ रमैया वस्ता वैय्या, रमैया वस्ता वैय्या मैने दिल तुझ को दिया ‘ ,बहुत प्रसिद्ध हुआ। इसकी वजह थी कि इनका जन्म और बचपन आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में बीता था।
शंकर जयकिशन, 1949 से 1971 तक एक साथ काम करते हुए हिंदी फिल्म उद्योग की एक लोकप्रिय और सफल संगीतकार जोड़ी थी। उन्हें हिंदी फिल्म उद्योग के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में से एक माना जाता है। 1971 में जयकिशन की मृत्यु हो गई । उनकी मृत्यु के बाद भी शंकर अकेले संगीत निर्देशक के रूप में कार्य करते रहे। 1987 तक ‘शंकर-जयकिशन’ के नाम से वह संगीत देते रहे । 1987 में उनकी मृत्यु हो गई ।
इनके संगीत की विशेषता थी कि उसमें शास्त्रीय संगीत भी था , पश्चिम का फ्यूजन संगीत और इंडो जैज़ भी। सितार, तबला, हारमोनियम के साथ , आर्केस्ट्रा,, सैक्सोफोन, वायलिन सभी का इस्तेमाल इनके संगीत में होता था। पहली बार उनके संगीत में पश्चिमी संगीत की तरह वायलिन वादकों की बहुत बड़ी संख्या में शामिल होने की शुरुआत हुई । 2013 में भारत सरकार ने इन पर डाक टिकट भी जारी किया। इन्होंने 170 से अधिक फ़िल्मों में संगीत दिया और नौ बार फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित हुए।