(100 से अधिक गांव में सरकारी सुविधाओं का नामोनिशान नहीं )
जगदलपुर। बस्तर में इंद्रावती नदी के पार सुदूर बसे सैकड़ों गांव भगवान भरोसे हैं। प्रदेश को अस्तित्व में आये 14 साल हो चुके हैं, लेकिन बस्तर में स्वास्थ्य सुविधाएं आज भी 18वीं शताब्दी में है। इंद्रावती नदी के पार बसे 100 से अधिक गांव में तो सरकारी सुविधाओं का नामोनिशान नहीं हैै। संभाग के बीजापुर, सुकमा व दंतेवाड़ा जिला में हालात और भी गंभीर हैं। यहां ओझा गुनिया ही अदिवासियों के लिए डाक्टर हैं। बीमारी गंभीर हो तभी लोग अस्पताल तक जाने की जहमत उठाते हैं। गांव से अस्पताल की दूरी 25-30 किमी होती है। सडक़, पुल-पुलियों के अभाव में मरीज को नाव के जरिये नदी पार कर लाना पड़ता है। इसके बाद अस्पताल तक का सफर एंबुलेंस की जगह चारपाई की जगह कांधे पर होता है।
बस्तर में डाक्टरों के 722 पदों का सेटअप स्वीकृत है, जबकि 419 पद रिक्त है। सबसे ज्यादा कमी विशेषज्ञ चिकित्सकों की है। पूरे संभाग में केवल 19 विशेषज्ञ हैं, जबकि 244 पद रिक्त हैं। वहीं एमबीबीएस डाक्टरों के 310 स्वीकृत पदों में केवल 135 कार्यरत हैं। तथा 175 पद रिक्त हैं। इसके अलावा ग्रामीण चिकित्सा सहायक के 149 पदों के विरूद्ध 70 आरएमए कार्यरत हैं, जबकि 79 पद रिक्त है। यही नही बस्तर और सुकमा जिले में एक भी विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं है। वहीं बीजापुर में 36 के मुकाबले 4, व सुकमा में 33 के मुकाबले केवल 9 एमबीबीएस डाक्टर पदस्थ हैं।
बस्तर संभाग भर में करीब 1200 अस्पताल हैं। इनमें से करीब 600 अस्पताल ऐसे है, जिनके भवन न होने की वजह से दूसरे अस्पतालों में संलग्न कर दिये गये है। जनसंख्या के हिसाब से विभाग ने भले ही अस्पताल खोल दिये हो, लेकिन भवन न होने के कारण इन अस्पतालों को या तो करीब के अस्पतालों के शिफ्ट किया गया है, या तो वहां संचालित उप-स्वास्थ्य केन्द्र को ही प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का दर्जा दे दिया गया है। एक रिकार्ड के अनुसार बस्तर में लगभग 5 हजार से अधिक मौतें स्वास्थ्यगत वजहों से होती है।
2012-13 मेें अकेले बस्तर में 276 महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हुई थी, वहीं 47 बच्चों ने जन्म के दौरान दम तोड़ दिया था। जमीनी हकीकत इससे कहीं अधिक हो सकती है। मलेरिया, बुखार, उल्टी-दस्त व अन्य बीमारियों की वजह से भी हजारों मौतें होती है। जिनके रिकार्ड विभाग के पास भी नहीं होते। सबसे ज्यादा दिक्कत माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा,बीजापुर व सुकमा जिले में है।
स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त संचालक आरएन पांडे ने बताया कि माओवादी वजह से अंदरूनी ईलाकों में डाक्टर काम करना पसंद नहीं करते। अच्दी तनख्वाह के बाद भी डाक्टर नहीं मिल रहे हैं। तकनीकी स्टाफ की भी बेहद कमी है। समय-समय पर पदों पर भर्ती की जाती है। आरक्षण के चलते अनेक पद रिक्त रह जाते हैं।
बस्तर के सुदूर गांवों में आज भी ओझा गुनिया ही हैं चिकित्सक
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