नई दिल्ली माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा है कि वाम दलों को भारत-अमेरिकी परमाणु संधि के मुद्दे पर संप्रग-1 सरकार से समर्थन वापस नहीं लेना चाहिए था। येचुरी वर्ष 2008 के उस नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में बोल रहे थे, जिसके बाद वाम दलों के कांग्रेस के साथ संबंध टूट गए थे और कम्यूनिस्टों की स्थिति में अब तक की सबसे तेज गिरावट आई थी। इसके बजाय उन्हें महंगाई के मुद्दे पर समर्थन वापस लेना चाहिए था क्योंकि वर्ष 2009 के आम चुनावों में लोगों को परमाणु संधि के मुद्दे पर एकजुट नहीं किया जा सका था।
हालांकि येचुरी ने इस बात पर जोर दिया कि परमाणु संधि का विरोध करने का पार्टी का फैसला ठीक था। येचुरी ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘हमने कहा कि (समर्थन वापस लेने के लिए) यह उचित मुद्दा नहीं था। हमने इसकी समीक्षा बाद में की। हमने कहा है कि हम इसे (चुनावों में) जनता का मुद्दा नहीं बना सके। इसके लिए महंगाई जैसे जनता के किसी मुद्दे को या संप्रग द्वारा ‘आम आदमी’ के बारे में न सोचे जाने को मुद्दा बनाया जाना चाहिए था।’’ येचुरी ने कहा, ‘‘इसके अलावा समर्थन वापसी के समय की भी हमने खुद आलोचना की। लेकिन परमाणु संधि के विरोध का हमें कोई पछतावा नहीं है और हमें लगता है कि यह सही है।’’ उन्होंने कहा कि परमाणु संधि के मामले में आगे बढ़ना इस बात का संकेत देता था कि संप्रग वाम को दरकिनार कर देना चाहती थी। उन्होंने कहा कि भारतीय-अमेरिकी परमाणु संधि संप्रग के न्यूनतम साझा कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी। लेकिन ‘‘भारत पर विश्व में अमेरिका के रणनीतिक हितों का एक कनिष्ठ सहयोगी बनने के लिए अत्यधिक दबाव था। हम इससे दूर रहे हैं।’’ येचुरी वर्ष 2009 के चुनावों के बाद माकपा समेत वाम दलों की स्थिति में गिरावट आने से जुड़े सवाल का जवाब दे रहे थे। इसके साथ ही उनसे यह भी पूछा गया था कि क्या भारत-अमेरिका परमाणु संधि के मुद्दे पर संप्रग से संबंध तोड़ना एक गलती थी? वर्ष 2004 के लोकसभा चुनावों में वाम दलों को 64 सीटें मिली थीं। यह संख्या वर्ष 2009 में गिरकर 24 और वर्ष 2014 में महज 10 रह गई थी। वर्ष 2009 में माकपा की केंद्रीय समिति ने अपनी चुनाव समीक्षा में कहा था, ‘‘जब संप्रग-1 ने परमाणु संधि को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ने का फैसला किया, तब उससे समर्थन वापस ले लेने का फैसला उचित था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारी इस समझ पर आधारित था कि पार्टी एक ऐसी सरकार को समर्थन नहीं दे सकती, जो कि अमेरिकी साम्राज्यवाद के साथ एक समग्र रणनीतिक संबंध शुरू कर रही है और जिसमें परमाणु संधि एक ‘मजबूती कारक’ है। हालांकि हम परमाणु मुद्दे पर लोगों को संगठित नहीं कर सके और चुनाव में उन्हें एकजुट नहीं कर सके।’’
हाल ही में विशाखापत्तनम में आयोजित हुई माकपा की कांग्रेस में दी गई दिशा के बारे में पूछे जाने पर येचुरी ने कहा, ‘‘माकपा भविष्य की पार्टी है और हमें उसी तरीके से आगे बढ़ना है।’’ इसी सम्मेलन में येचुरी को पार्टी का महासचिव चुना गया था। उनके अनुसार, अगले तीन साल तक पार्टी की प्राथमिकता इसकी स्थिति में आ रही गिरावट पर रोक लगाने की होगी और फिर इसकी प्राथमिकता लोगों का विश्वास इस पार्टी में दोबारा जगाने और उसे दोबारा बहाल करने की होगी। पार्टी ने सांगठनिक पुनर्निर्माण का फैसला किया है और इसका इरादा अपनी स्वतंत्र शक्ति में सुधार लाने और नीतिगत मुद्दों पर राजनीतिक हस्तक्षेप करने का है। पार्टी ने इस साल के अंत में सब सदस्यों की मौजूदगी वाली एक बैठक करने का फैसला किया है, जो कि इसकी सांगठनिक शक्ति को बढ़ावा देने पर चर्चा करने के लिए होगी। येचुरी ने कहा कि नया काम वाम को एकजुट करने का है, जो कि विभिन्न दलों के रूप में बिखरा पड़ा है। इनमें से कई दल राज्य स्तरों पर संचालित होते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमें इन वाम दलों और पार्टी से बाहर के समर्थकों एवं बुद्धिजीवियों को एक साझे एजेंडे पर एकजुट करना है। इसके जरिए हम वाम और लोकतांत्रिक बलों को एकजुट करने की कोशिश करेंगे ताकि सत्ताधारी वर्गों के सामने एक नीतिगत विकल्प पेश किया जा सके।’’