Tuesday, September 10, 2024
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दिल्ली में डेंगू, चिकनगुनिया का कहर, ‘आप’ के मंत्री गायब

दिल्ली में डेंगू, चिकनगुनिया का कहर, ‘आप’ के मंत्री गायब
दिल्ली में बुखार का प्रकोप इस कदर फैला है कि सरकारी से लेकर निजी अस्पताल में मरीजों की लंबी लाइन लगी है, पहले डेंगू और अब चिकनगुनिया बुखार दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए चुनौती बन गया है। चिकुनगुनिया से गंगाराम अस्पताल में एक मरीज की मौत हो गयी। जबकि एम्स में भी एक मरीज की मौत चिकनगुनिया से बतायी जा रही है , हालाँकि अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है , सितंबर में डेंगू से पांच मरीजों की मौत का मामला सामने आया है। लाख दावों के बावजूद अस्पताल में बिस्तर पर मरीजों की संख्या और मोहल्ला क्लिनिक में मरीजो का जमावड़ा ये बताने के लिए काफी है की हर साल मानसून के सीजन में दस्तक देने वाले इस तरह के बुखार से निपटने के लिए दिल्ली सरकार की तैयारियां सिर्फ कागजी हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ऐसे वक़्त पंजाब के चुनाव में मशगूल हैं तो केजरी के कुनबे के ज्यादातर मंत्री दिल्ली से बाहर, खुद स्वास्थ्य मंत्री सतेन्द्र जैन गोआ विराजमान हैं,ऐसे में बुखार से तड़प रही दिल्ली की देखरेख राम भरोसे है। वही हालात को देखते हुए दिल्ली उत्तर पश्चिम के मजिस्ट्रेट ने स्कूलों में बच्चों को फुल स्लीव शर्ट और पेंट पहन कर आने के निर्देश सम्बंधित प्रधानाचार्यों को दिए हैं। दरअसल चिकनगुनिया और डेंगू बुखार दोनों ही इजिप्ट एजिज मच्छर के काटने से होते है। ये मच्छर चिकेनगुनिया वायरस का वाहक है , जो गन्दगी में पनपता है। बरसात में जल भराव, कूलर के पानी या रुके हुए पानी में मच्छर के लार्वा आसानी से पनपते हैं , वाहक मच्छर जब किसी स्वास्थ्य व्यक्ति को काटता है तो वह इस बुखार की चपेट में आ जाता है , मरीज को तेज बुखार और जोंड़ों का दर्द होता है , छोटे बच्चों में माइक्रो सेफली रोग भी होता है , संक्रमित होने के 5-6 दिन में इसके लक्षण दिखतें हैं। इसके लिए कई तरह के चांज है जिसमें खून में WBC और प्लेटलेट्स की जाँच के अलावा IGM और IGG एंटीबाडीज की चांज की जाती है, इसके अलावा ELISA टेस्ट भी होता है. जिनमें प्रति जांच का खर्च औसतन 500 रूपये तक आता है। ऐसे में गरीब मरीजों के लिए इलाज कराना निजी अस्पतालों में खासा महंगा पड़ रहा है,तो वही दिल्ली स्वास्थ्य  मंत्रालय आंकड़ों की माने तो अस्पतालों में 33 फीसदी मरीज बाहरी राज्यों से हैं जिससे इससे निपटने में सरकारी कोशिशें नाकाफी साबित हो रही है।

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