बेंगलूरू कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 19 साल पुराने आय से अधिक संपत्ति मामले में आज कअन्नाद्रुम प्रमुख जयललिता को बरी कर दिया। इस फैसले के बाद उनका मुख्यमंत्री पद पर लौटना लगभग तय हो गया है। खचाखच भरी अदालत में प्रवेश करने के एक मिनट बाद ठीक 11 बजे फैसले का मुख्य अंश पढ़ते हुए न्यायमूर्ति सीआर कुमारसामी ने कहा, ‘‘सभी अपील स्वीकार की जाती हैं और दोषियों को बरी किया जाता है।’’ अदालत की कार्यवाही करीब पांच मिनट में पूरी हो गई। निचली अदालत के फैसले को निरस्त करते हुए एकल पीठ के न्यायाधीश ने अन्नाद्रमुक प्रमुख की करीबी सहयोगी शशिकला नटराजन और उनके रिश्तेदारों जे एलावरासी और जयललिता के अलग हो चुके दत्तक पुत्र वीएन सुधाकरण को भी बरी कर दिया। इन चारों को निचली अदालत ने चार साल के कारावास की सजा सुनाई थी। फैसले का मुख्य अंश पढ़ने के बाद जब न्यायाधीश औपचारिकताएं पूरी करने के लिए अपनी सीट पर ही बैठे थे, अदालत कक्ष में बड़ी संख्या में मौजूद अन्नाद्रमुक समर्थक वकीलों ने एक दूसरे को बधाई देना शुरू कर दिया और अपने हाथ उठाकर न्यायाधीश का आभार जताया।
न्यायाधीश जैसे ही अदालत कक्ष से गये, वकीलों ने अपने एक वरिष्ठ सहयोगी को अपने कंधों पर बैठा लिया और जयललिता के समर्थन में नारे लगाए। हालांकि इस घटना पर कुछ वरिष्ठ अधिवक्ताओं और पुलिस अधिकारियों ने आपत्ति जताते हुए उनसे अदालत के शिष्टाचार का सम्मान करने के लिए कहा। फैसले का स्वागत करते हुए जयललिता ने कहा, ‘‘इस (फैसले) से पुष्टि हुई है कि मैंने कुछ गलत नहीं किया। यह मामला राजनीतिक विरोधियों ने उछाला था।’’ यह फैसला जयललिता और तीन अन्य द्वारा बीते वर्ष 27 सितंबर को विशेष अदालत के न्यायाधीश जॉन माइकल डिकुन्हा के उस फैसले के खिलाफ दायर अपील पर आया है जिसमें जयललिता तथा तीन अन्य को भ्रष्टाचार का दोषी पाते हुए चार चार साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी। इस सजा के कारण जयललिता विधायक के तौर पर अयोग्य हो गई थी। निचली अदालत के फैसले से जयललिता विधायक के तौर पर स्वत: अयोग्य हो गई थीं और उनसे मुख्यमंत्री पद चला गया था। अब उच्च न्यायालय से क्लीन चिट मिलने के बाद, जयललिता के फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की संभावना है। तमिलनाडु में विधानसभा चुनावों से एक वर्ष पहले आए इस फैसले को राजनीतिक रूप से ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है। चुनाव आयोग के सूत्रों ने कहा कि जयललिता को तमिलनाडु विधानसभा में सदस्य बनने के लिए फिर से चुनाव लड़ना होगा। जयललिता के वरिष्ठ वकील बी कुमार ने अदालत कक्ष के बाहर संवाददाताओं से कहा, ‘‘तत्कालीन द्रमुक सरकार के द्वारा किया गया मामला अब खारिज हो गया है।’’ कुमार ने कहा, ‘‘इस फैसले का परिणाम यह है कि वह मुख्यमंत्री पद फिर से संभालने की हकदार हैं।’’
कुमार ने कहा कि उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के निष्कर्षों को निरस्त कर दिया और अभियोजन पक्ष इस मामले के तहत 28 करोड़ रूपये के निर्माण को साबित करने में नाकाम रहा। कुमार ने कहा कि उच्च न्यायालय ने जयललिता के इस पक्ष को सही ठहराया कि निर्माण की कीमत तर्कसंगत और स्वीकार्य है। फैसले की खबर फैलने के साथ ही तमिलनाडु के कई हिस्सो में पार्टी कार्यकर्ता पटाखे चलाकर और मिठाइयां बांटकर जश्न मनाने लगे। न्यायमूर्ति कुमारस्वामी ने उच्चतम न्यायालय द्वारा जयललिता और तीन अन्य की अपील पर सुनवाई पूरी करने के लिए तय तीन महीने की समयसीमा से एक दिन पहले यह फैसला सुनाया। फैसले के समय 67 वर्षीय जयललिता अदालत में मौजूद नहीं थीं क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता के तहत अभियुक्त को केवल निचली अदालत में मौजूद रहना होता है।
विशेष लोक अभियोजक बीवी आचार्य ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के कहने के अनुसार, कर्नाटक राज्य इस मामले में एकमात्र अभियोजन एजेंसी थी लेकिन उसे ‘‘उच्च न्यायालय के सामने पर्याप्त अवसर नहीं मिला।’’ आचार्य ने कहा कि इसका असर यह हुआ कि कर्नाटक राज्य और उसके द्वारा नियुक्त लोक अभियोजक को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को मौखिक दलीलों के जरिये बात रखने का अवसर नहीं मिला जिससे अभियोजन के मामले पर बुरा असर पड़ा। उन्होंने कहा कि आरोपियों की तरफ से अपीलीय वकीलों ने करीब दो महीने तक अपनी दलीलें दीं और इस दौरान कर्नाटक सरकार द्वारा नियुक्त कोई लोक अभियोजक नहीं था। उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए पूरी कार्यवाही वैध तरीके से नियुक्त लोक अभियोजक के बगैर हुई।’’
आचार्य ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद 22 अप्रैल को उन्हें विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया गया। न्यायालय ने इस आदेश में कहा कि विशेष लोक अभियोजक एक दिन के भीतर लिखित दलीलें दे सकते हैं जिससे मौखिक दलीलों का कोई मौका नहीं मिला। उच्चतम न्यायालय ने भवानी सिंह की विशेष लोक अभियोजक के तहत नियुक्ति को ‘‘कानून की नजर में गलत’’ बताकर उसे निरस्त कर दिया जिसके बाद आचार्य को फिर से बुलाया गया। उच्च न्यायालय में अपनी लिखित दलीलों में आचार्य ने जयललिता तथा अन्य द्वारा दायर अपीलों को निरस्त करने का अनुरोध किया था। विशेष अदालत के फैसले ने जन प्रतिनिधि कानून के तहत जयललिता को 10 साल तक के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहरा दिया था।
जयललिता को वर्ष 2001 और वर्ष 2014 में यानी दो बार भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। उन पर वर्ष 1991-96 तक के अपने पहले मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान अपनी आय के ज्ञात स्रोतों से 66.65 करोड़ रूपए अधिक की संपत्ति जुटाने का आरोप लगा था। इस मामले में कई कानूनी पेंच और मोड़ आए थे। वर्ष 2003 में उच्चतम न्यायालय ने मामले को द्रमुक की याचिका के आधार पर बेंगलोर विशेष अदालत में स्थानांतरित कर दिया था। याचिका में दावा किया गया था कि चूंकि जयललिता के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में है इसलिए चेन्नई में निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो सकती।