हरियाणा के भाजपाई दिग्गजों को लालबत्ती वाली कार पाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तरफ देखने पर मजबूर होना पड़ गया है, क्योंकि हुड्डा की सक्रियता ही खट्टर सरकार पर दवाब बना सकती है कि भाजपाई दिग्गजों के लिए वह लालबत्ती वाली कारों वाली पिटारी खोले। राज्य में प्रमुख विपक्षी दल इनैलो का जनाधार निरंतर खिसक रहा है, जबकि कांग्रेस मौजूदा प्रधान अशोक तंवर से दूरी बनाकर हुड्डा के साथ दिखाई दे रही है। हजकां की राजनीतिक कां-कां बंद हो चुकी है, जबकि हलोपा खोये पतंग को ढूंढ रही है। आम आदमी पार्टी(आप) के झाडू के तिनके हरियाणा में बिखर रहे है।
इन राजनीतिक परिस्थितियों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मौजूदा सरकार पर दवाब बना सकते है, क्योंकि 15 विधायकों में से 14 का उन्हें सरंक्षण प्राप्त है। हुड्डा फिलहाल सत्ता के दूर है, मगर राज्य के कुछ जाट नेताओं को लालबत्ती वाली कार तक पहुंचाने में अहम् भूमिका अदा कर सकते है, क्योंकि भाजपा जाट वोट बैंक में सेंधमारी की योजना लिए हुए है। वहीं हुड्डा जाटों की उपेक्षा के चलते जाट वर्ग को अपने साथ जोडने में सक्रिय हो गए है। हरियाणा विधानसभा चुनाव उपरांत भाजपाई शासन और गैर जाट मुख्यमंत्री बनने से जाट नेता अपने आप को अपेक्षित महसूस कर रहे है। जाट समुदाय गहन चिंतन व मंथन में व्यस्त हो गया है, क्योंकि प्रदेश के ज्यादातर महत्वपूर्ण विभागों में गैर जाटों को तव्वजों दी जा रही है। जाट समुदाय की इस अनदेखी से जाट वर्ग का रूझान हुड्डा की तरफ बढ़ रहा है। इनैलो सुप्रीमों ओम प्रकाश चैटाला और अजय चैटाला को मिली 10-10 वर्ष की सजा से राहत न मिलने के चलते जाट वर्ग को अपने साथ जोडने के लिए हुड्डा सक्रिय हो गए है और इसी के साथ खट्टर सरकार की परेशानी बढ़ती नजर आने लगी है, क्योंकि खट्टर को न तो वांछित सहयोगी साथ दे रहे है, न ही अफसरशाही पर पकड़ बनी है और बार-बार अधिकारियों के तबादले से सरकार अस्वस्थ होकर रह गई है।
राज्य की वर्तमान स्थिति को देखते हुए जाटो का समयोजन करना सरकार की मजबूरी बनती दिखाई दे रही है। हुड्डा की सक्रियता ने भाजपा के थिंक टैंक को बेचैन कर दिया है। दवाब की इस राजनीति में खट्टर सरकार की भूमिका कैसे रहेगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, मगर इस दवाब के चलतेे भाजपाई दिग्गजों की लॉटरी जरूर निकल सकती है। खट्टर को विधायकों व दिग्गजों की लालबत्ती वाली गाडियां वितरित करनी पड़ेगी, जिसके पीछे हुड्डा का दवाब ही माना जाएगा, क्योंकि जाट वोट बैंक में सेंधमारी के लिए जाट वोट बैंक में सेंधमारी के लिए जाट नेताओं को एडजस्ट करना ही पड़ेगा। खट्टर यदि जाट नेताओं को तव्वजों देते है, तो इसका श्रेय हुड्डा के राजनीतिक दवाब को मिलेगा, अन्यथा भाजपा के गले की फांस बनकर इस मुद्दे को भुनाने में हुड्डा को सफलता मिल सकती है, जोकि खट्टर सरकार के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता।
अब हुड्डा के साथ जुडने लगे भाजपाई जाट नेता
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