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क्रांतिकारी भगत सिंह

By अपनी पत्रिका

March 23, 2021

आज का दिन

नेहा राठौर

लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज़ आएगा, मेरे खुन का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा, ये वही शब्द हैं जिन्हें भगत सिंह ने लिखा था। अपने इन्हीं विचारों में देश में आजादी की नई सुबह लाने का सपना लिए भगत सिंह को आज ही के दिन यानी 23 मार्च को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी दी थी, लेकिन भगत सिंह वो था, जो देश को आजाद देखने के लिए कुछ भी कर सकता था तो फिर ये तो सिर्फ फांसी थी। देश की आजादी में गांधी जी की सिद्धांतों से बिल्कुल उलट भगत सिंह ने अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा कर रख दी थी।

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 में लाहौर में हुआ था। वो सिर्फ 12 साल के थे जब जलियांवाला बाग कांड हुआ था। उसी दिन से उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा ने जगह बना ली थी। उस समय देश में आजादी के लिए जगह-जगह क्रांति हो रही थी। एक तरफ आज़ादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में महात्मा गांधी अपने अहिंसात्मक तरीकों का रास्ता चुना था वहीं भगत सिंह ने क्रांतिकारी की राह को चुना।

अंग्रेजों के खिलाफ उनका गुस्से और बढ़ गया, जब काकोरी कांड में अंग्रेजों ने रामप्रसाद बिस्मिल के साथ चार क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया गया। इस मामले में कुल मिलाकर 16 क्रांतिकारियों को जेल की सजा दी गई थी। उसके बाद भगत सिंह और चन्द्रशेखर आजाद दोनों हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए।

1928 में पूरे देश में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए जबरदस्त प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में भगत सिंह के साथ लाला लाजपत राय ने भी भाग लिया, जिसमें लाला जी के सर पर एक स्कॉट नाम के अंग्रेज अफसर ने लाठी मार दी, जिस कारण उनकी मौत हो गई। भगत सिंह लाला जी को बहुत मानते थे। उनकी मौत बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों पुलिस सुप्रिटेंडेंट स्कॉट की हत्या करने की योजना बनाई। इस योजना को उन्होंने 17 दिसंबर 1928 को लाहौर कोतवाली के सामने अंजाम देना था, लेकिन उन्होंने गलती से स्कॉट की जगह अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स को मार दिया।

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उसके बाद भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर 8 अप्रैल 1929 को ब्रिटिश भारत की दिल्ली में तत्कालीन सेंट्रल असेंबली में बम फेंके, लेकिन उनका मकसद किसी को मारने का नहीं था। वो सिर्फ अंग्रेज सरकार को डराना चाहते थे, इसलिए उन्होंने बम सभागार के बीच में फेंके जहां कोई भी नहीं था।

इस घटना के बाद वो दोनों भागने के बजाय वहां खड़े होकर इंकलाब के नारे लगाने लगे और खुद को अंग्रेजों के हवाले कर दिया। उसके बाद उनके और भी कई साथियों को उनके साथ जेल में बंद कर दिया गया। जेल में करीब दो सेल रहने के बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया गया और बम फेंकने में भगत सिंह के साथी रहे बटुकेश्र्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा दी गई।

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