नेहा राठौर
दुनिया में ऐसे कई लोग है जो जानवरों से प्यार करते है और अपना ज्यादा से ज्यादा समय अपने पालतू जानवर के साथ बिताना पसंद करते है। आज के दौर में लोग इंसान से ज्यादा जानवरों की वफ़ादारी पर भरोसा करते हैं क्योंकि जानवर स्वार्थी नहीं होते, लेकिन जब इन्हीं जानवरों के संरक्षण की बात आती है, तो लोग इस पर विचार नहीं करना चाहते है। इसी लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 मार्च को विलुप्त वन्यजीव दिवस को माने की स्वीकृति दी थी, ताकि वन्य जीवों और वनस्पतियों के प्रति लोगों को जागरूक किया जा सके।
इस दिन को दुनिया भर में लोग बहुत उत्साह के साथ मनाते है। इस दिन को मनाने की हर साल एक नई थीम रखी जाती है, इस साल भी इस दिन को मनाने के लिए Forest and livelihoods: sustaining people and planet रखी गई है।
इस दिन का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि वन्यजीवों की सुरक्षा और लगातार विलुप्त होती जा रही वनस्पतियों की प्रजातियों की ओर लोगों का ध्यान केंद्रित किया जाए। ताकि दुनिया के इन वन्यजीवों को बचाया जा सके और वनस्पतियों की प्रजातियों को संरक्षण दिया जाए।
जानवरों के लुप्त होने के कारण
एक रिपोर्ट के अनुसार, अभी हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग लगने से तीन मिलियन जानवर जल कर ख़ाक हो गए। उस वक्त सारे वन्यजीव आग देखकर अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे, लेकिन आग की लपटें इतनी तेज़ थी कि उन आग की लपटों ने बहुत से जानवरों को अपने चपेट में ले लिया।
कई वन्यजीव ऐसे भी है जो बहुत पहले ही विलुप्त हो चुके है और कुछ ऐसे भी है, जो विलुप्त होने की कगार पर है। इन्हीं जीवों को बचाने के लिए वन्यजीव दिवस बनाया गया है। ऐसा नहीं है सारी दुनिया में आग के कारण ही वन्यजीवों की जान गई है। उनकी प्रजाति के लुप्त होने में इंसानों का भी बड़ा हाथ है। जब किसी से भी चाहे वह इंसान हो या जानवर तो वह धीरे धीरे अपने आप खत्म होने लगता है। इसमें अगर जानवरों की बात करें तो वन्यजीव जब जंगलों से बाहर शहर की तरफ आने लगते है तो इंसान ही उनका दुश्मन बन जाता है, लेकिन वह यह नहीं समझ पाता की आखिरी जानवर जंगल से बाहर क्यों आए। इसके पीछे कारण यह है कि लोग पेड़ो को काट रहें है जंगलों को साफ कर घर बसा रहे है। जब उन्हें जगह ही नहीं मिलेगी तो वह कहा जाएंगे। आये दिन यह ख़बर सुनने में आती है कि जंगल से किसी के घर में घुस गया या उसे सड़क पर देखा गया।
भारत की बात करें तो, भारत में 1947 में यानी आज़ादी के समय ज़मीन का 49 प्रतिशत हिस्सा जंगल था और आज यह 49 से 24.56 प्रतिशत रह गई है।
CITES की स्थापना
संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 20 दिसंबर 2013 को 68वें सत्र के दौरान आज ही के दिन यानी 3 मार्च को वन्यजीवों को विलुप्त होने से रोकने की पहल और वनस्पति के व्यापार पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की स्वीकृति दी थी। 3 मार्च को दिन इसलिए चुना गया, क्योंकि 1973 में इसी दिन वन्य जीवों और वनस्पतियों (CITES) की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन के हस्ताक्षर किए गए थे। धरती पर जीवन की संभावनाओं को बनाएं रखने और पर्यावरण में जीव-जंतु और पेड़-पौधे के महत्व को पहचानते हुए CITES की स्थापना की गई थी। विश्व वन्यजीव दिवस भी इसी काम में एक सहायक का काम करता है।
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