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नोएडा : डंपिंग ग्राउंड को लेकर मचे घमासान के बीच अथॉरिटी का दावा है कि सेक्टर-123 में बनने वाला वेस्ट एनर्जी प्लांट विश्व स्तर का है

By अपनी पत्रिका

June 09, 2018

गोमती तोमर,

डंपिंग ग्राउंड जो की नॉएडा के सेक्टर 123 में वेस्ट एनर्जी प्लांट विश्व स्तर का बनाया जा रहा है

दिल्ली और एनसीआर के बढ़ते कूड़े के ढेर को देख इस को इस्तेमाल में लाने की कई योजनाए बनी इन योजनाओ में वेस्ट टु एनर्जी जैसे प्लांट की योजनाए बनी हालाँकि इस प्लांट को विश्व स्तर प्लांट बताया जा रहा है।लेकिन हमारे देश में 15 साल में आठ अलग अलग स्थानों पर इन्हे खोला भी गया। इनमे से 4 जगह के प्लांट तो बंद भी हो चुके है। बार बार इस प्लांट की नाकामयाबी के बावजूद एक और नॉएडा में भी खोल देने का प्लान कर लिया गया। 

नोएडा : डंपिंग ग्राउंड को लेकर मचे घमासान के बीच अथॉरिटी का दावा है कि सेक्टर-123 में बनने वाला वेस्ट एनर्जी प्लांट विश्व स्तर का है, इस इतना बड़ा बताया जा रहा है। लोगो की माने तो ये एक विचार का मुद्दा है की जब हमारे देश में ये प्लांट अलग अलग जगह खोले जाने पर भी वह सफल नहीं हुए तो इसकी क्या जरूरत है, देश में 8 जगह पर बने वेस्ट एनर्जी प्लांट में से 4 बंद हो चुके हैं। उनके बंद होने की वजह जो भी रही हो जब हमारी सिस्टम कमेटिया इन्हे ही नहीं चला स्की जो एक छोटे स्तर पर बनाये गए प्लांट थे तो इतने बड़े प्लांट को कैसे मैंटेन करेंगे। इसके अलावा और भी बाते सामने आयी है ,रिसर्च के द्वारा ये भी सामने आया है कि इन प्लांट के आसपास में रहने वाले लोग विभिन्न तरह की बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं और उस जगह की वायु इतनी दूषित हो जाती की उसमे सांस तक लेना भारी हो जाता है।

सीएसई (सेंट्रल ऑफ साइंस एंड इन्वायरनमेंट) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ऐसे प्लांट कामयाब नहीं हैं। स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं। इनमें सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट एक्ट की गाइडलाइंस को फॉलो नहीं किया जा रहा है। पिछले 15 साल से एक भी प्लांट में सेग्रीगेशन (ऑर्गेनिक और बायोमेडिकल वेस्ट को अलग-अलग करके डिकंपोज करना) का रास्ता नहीं निकल पाया है। इसके चलते सभी प्रकार का कचरा एक साथ मिलाकर प्लांट में जलाया जाता है। इससे कैंसर को बढ़ावा देने वाले डायोक्सीन व फ्यूरल तत्व निकलते हैं जो आसपास के करीब 6-7 किमी के एरिया को प्रभावित करते हैं। ओखला, जबलपुर, पुणे व अन्य सभी प्लांट में ऐसी रिसर्च सामने आई है।

जीएआईए (ग्लोबल एलायंस इनसिनरेटेशन ऑल्टरनेटिव्स) संगठन की हेड प्रतिभा शर्मा का कहना है कि भारत में करीब 30 साल पहले यह कॉन्सेप्ट यूएस और यूके से आया है।  30 साल पहले आयी इस तकनीक में कुछ बदलाव नहीं आया है,जिससे हम ये मान ले की आज ये पूरी तरह सुरक्षित है इससे बनने वाले  रसायन से हमारे यहाँ किसी को कोई नुकसान नहीं होगा। भारत में जिस तरह की तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है वह बहुत पुरानी है। इसकी असफलता को देखते हुए वहां यूरोपियन यूनियन ने इसका बहिष्कार कर दिया है।

हम लोग पिछले 9 साल इस प्लान से आने वाली समस्याओ से झूंझ रहे है और हमारे सामने सुखदेव विहार स्थित वेस्ट टु एनर्जी प्लांट भी है जहाँ प्लांट को लेकर लोग आज भी लड़ाई लड़ रहे हैं। यहां से सैकड़ों लोग अपने अपने घर को छोड़ इस लिए पलायन कर चुके हैं क्योकि वो कैंसर जैसी भयंकर बिमारी का शिकार नहीं होना चाहते। यहां रहने वाले लोगो के रिश्तेदार तक उनके पास आने से डरते है। वहाँ रहने वाले तमाम लोग कैंसर की चपेट में आ गए हैं। एनजीटी, हाईकोर्ट के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है।

श्रीराम सेंटर ऑफ इंडस्ट्रियल की रिपोर्ट, इस प्लांट को स्टार्ट करने के लिए जितने ईंधन की जरूरत होती है,उससे वायु प्रदूषण बढ़ता है।सभी प्लांट में ऑर्गेनिक और बायोमेडिकल वेस्ट एक साथ जलाया जाता है। इसकी वजह से कैंसर व अन्य बीमारी फैलती हैं।घरों से निकलने वाले कचरे में 55-60 फीसदी गीला होता है। कुल कचरे का केवल 30-40 फीसदी तक ही इस प्लांट में इस्तेमाल होता है। इस्तेमाल न आने वाले कचरे का ढेर वायु प्रदूषण बढ़ाता है।अभी तक किसी भी प्लांट से निकलने वाले वेस्ट को डिकंपोज करने के लिए पिछले 15 साल में कोई सिस्टम नहीं बन पाया है। इससे विभिन्न केमिकल हवा में जहर घोलने का काम करते हैं।

सरकार को इसके बारे में अपनी राय बदलनी चाहिए क्योकि इसके परिणाम अच्छे नहीं है। हमारा देश पहले ही पर्यावण पल्यूशन की मार को झेल रहा है उसपर इसका जहर नहीं पचा पायेगा।