प्रियंका आनंद
नई दिल्ली। कोरोना काल में देश के सभी धार्मिक स्थलों के बंद होने से वहां के पुजारियों का और पूजा—पाठ में सेवा करने वाले लोगों का हाल बेहाल है। बहुत से धर्मिक स्थलों पर काम करने वाले को महीनें से वेतन नहीं मिल पाया है, क्योंकि उनका वेतन धर्मस्थलों में आए चढ़ावे पर निर्भर करता है। कोरोना काल के चलते सभी धार्मिक स्थल बंद रहे, फिर चाहे वो मंदिर हो ,गुरूद्वारे हो ,चर्च या फिर कोई मस्जिद। सब पर इस महामारी का असर देखने को मिला हैं। यहां तक कि उससे जुड़े उनलोगों का कारोबार पूरी तरह चौपट हो गया, जो श्रद्धालुओं के लिए पूजा के सामान और फूल—प्रसाद की बिक्री करते थे।
पुजारिओं के पास किसी भी मंदिर में सेवा करने के आलावा या किसी के घर जा कर पूजा करने के आलावा आये का और कोई साधन नहीं होता है। मंदिर में जो भी चढ़ावा आता है उसी से उनकी तनख्वाह दिए जाने का प्रावधान किया जाता है। जब कोरोना के चलते सारे मंदिर या कोई और धर्मिक स्थल बंद रहे तो उनके घरों का गुज़ारा होना बहुत ही मुश्किल हो गया। जिसके कारण बहुत से पुजारिओं को मंदिर या किसी और धार्मिक स्थल की सेवा भी छोड़नी पड़ी। बहुत से लोगो को तो वापस अपने गांव भी जाना पड़ा या फिर किसी और काम—धंधे में लगने को मजबूर हो गए।
पंजाबी बाग के एक मंदिर के पुजारी ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि कोरोना काल का असर सब लोगो पर देखने को मिला हैं, लेकिन हम जैसे पुजारिओं को बहुत परेशानिओं का सामना करना पड़ा है। मंदिर में जो चढ़ावा आता है उसी से हमारे परिवार का गुज़ारा होता है। करीब दस माह से वह भी बंद।
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प्राप्त जानकारी के अनुसार दिल्ली में 594 छोटे—बड़े मंदिर हैं, 271 चर्च और 32 गुरूद्वारे हैं। पिछले कई महीनो से देश के सभी प्रकार के पुजारिओं और सेवादारों की कमाई का साधन बंद पड़ा हैं। पहले लोग अपना घरो में कीर्तन, पूजा, हवन भी करते थे तो भी उन्हें बहुत सहारा मिलता था लेकिन वह सब भी बंद है।
शालीमार बाग़ के एक पुजारी की माने तो लॉकडाउन में घर का गुज़ारा बहुत ही मुश्किल से होता था। जिसमे हमारे बच्चों की पढाई , घर के खर्च , बीमार माता—पिता के इलाज का खर्च और भी बहुत कुछ होता हैं, जिनके लिए इंतज़ाम करना बहुत ही मुश्किल था।
हमने सरकार से यह दर्खास्त भी की थी कि हमारे लिए भी भारतीय सरकार को कुछ ऐसा इंतज़ाम करना चाहिए, जिससे हमारे देश के पुजारिओं को महीने में कुछ मदद मिले ताकि हमारे परिवार का भी गुज़ारा होता रहे। अभी तक ऐसा कुछ भी प्रावधान लागु नहीं किया गया है। यहां तक कि किसी भी मंदिर के ट्रस्टीज की तरफ से भी कोई सहायता नहीं मिल पाई तो परेशानी होना तो स्वाभाविक है।
उम्मीद है कि आने वाले समय में हमारी परेशानी को समझा जाएगा और उससे दूर करने के लिए कोई रास्ता भी निकाला जाएगा जिससे हमारे परिवारों का भी गुज़ारा आसानी से हो सके।
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